आसमा के आने से जाने तक। मां की आंखो में उसका चेहरा, काम से घर लौटे कदमों की आहट कानों में समा रहे थे। वह काम से नही लौटी, यह खबर पूरे पड़ोस में फैल गई। पड़ोस में अफरा तफरी, हम उम्र लड़कियों
रात गुजर गई लोरी में, रात गुजर गई लोरी में, वह लोरी अभी बाकी है। तेरे फन के गुलाम हम, उसे बताना अभी बाकी है। करवटों से सिकुड़ी चादर को, झाड़ना अभी बाकी है। बिखरी हुई जुल्फों को, कंघे से सुलझाना अभ
अबनिन्द्रनाथ टैगोर, एक प्रसिद्ध भारतीय कलाकार और बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट के संकल्पक, ने आधुनिक भारतीय कला स्तर को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1871 में पैदा हुए, उन्होंने प्रसिद्ध टैगोर परिवार
अशापुरना देवी, बंगाल की एक महिला लेखिका, ने अपनी उदात्त साहित्यिकता के साथ महिलाओं के मुक्ति के पक्षधर और समर्थनकर्ता के रूप में प्रकाशित होने के रूप में प्रमुख योगदान किया। वह उत्तर कोलकाता के एक अत्
1880 में, भारत में ब्रिटिश शासन के शिखर पर, रुकया सखावत हुसैन, जिन्हें बेगम रुकया के नाम से भी जाना जाता है, ने एक छोटे लेकिन मायनेदार जीवन जिया। बंगाली लेखिका और क्रियाशील, उन्हें अक्सर बंगाल की प्रथ
माइकल मधुसूदन दत्त, बंगाली साहित्य के क्षेत्र में एक ऊंचा प्रतिष्ठित व्यक्ति, 19वीं सदी के साहित्यिक परिदृश्य में रचनात्मकता और नवाचार के प्रतीक के रूप में खड़े हैं। उनके कविता, नाटक और भाषा पुनर्जीवन
रित्विक घाटक, भारतीय सिनेमा में एक प्रत्याशी चित्रकला के प्रति अपने अद्वितीय योगदानों के लिए प्रसिद्ध है। एक दृष्टिकोणी सिनेमाई, घाटक के काम एक विशिष्ट भावनात्मक तीव्रता, एक गहरे-रूढ़ सामाजिक जागरूकता
"तितास एकटी नदीर नाम" एक साहित्यिक उपन्यास है जो पाठकों को एक दुखद और मोहक यात्रा पर ले जाता है, बांगलादेश में तितास नदी के किनारे स्थित एक दूरस्थ गांव के निवासियों के जीवन के माध्यम से। प्रसिद्ध बंगा
भारतीय सार्वजनिक संबंध सोसायटी (पीआरएसआई), कोलकाता चैप्टर, ने 23 जुलाई, 2023 को ऐतिहासिक कलकत्ता टाउन हॉल में आयोजित एक शानदार कार्यक्रम में राजा राममोहन रॉय की 251वीं जन्म जयंती की स्मृति की, जिन्हें
कादंबरी देवी, 14 जुलाई 1858 को, 19वीं सदी के भारतीय बंगाल के साहित्यिक और सांस्कृतिक मंजर में एक रहस्यमय और प्रभावशाली महिला थीं। वह मशहूर बंगाली लेखक और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ ठाकुर की भाभी
गर्व था मुझे मेरे, मन के विश्वामित्र पर, अभिमान था मुझे मेरे, चित्त के स्थायित्व पर, स्वच्छंद मृग सा घूमता था, डोलता था हर समय, स्वयं के ही अंतर्मन से, खेलता था हर समय। पर उसी क्षण द्वार पर, म
मुझे लेखक और लेखिकाओं की एक बात समझ नही आती। नायक नायिका की तारीफ करते रहो तो वे फूले नहीं समाते और अगर उनमें कमी निकाल दो या फिर खलनायक की किसी खूबी की तारीफ कर दो तो वे ना जाने क्या क्या कहने लगते ह
भजन मंडली ने एक भजन छेड़ रखा था | रात मे खेत में पानी लगाते रामू के कानों में शब्द किसी रस की भांति प्रवेश कर रहे थे | " कहत कबीर सुन है साधो पाप लगे यहाँ आध
प्यार से ही सदा पेश आओ वैर नफरत न दिल में बढ़ाओ दुश्मनी ये नहीं आग अच्छी हो सके तो अगन ये बुझाओ देख मौसम हुआ आशिकाना आज नज़रों से नज़रे मिलाओ तुम निगाहों से यूं तीर फेंको हम
डॉ. नरेन्द्र वाल्मीकि द्वारा संपादित 'ओमप्रकाश वाल्मीकि : व्यक्तित्व और कृतित्व' शीर्षक पुस्तक में विविध आयामों के अंतर्गत प्रतिष्ठित आलोचकों द्वारा जो विश्लेषणात्मक मूल्यांकन किया है वह हमें ओमप्रकाश
माँशाम के साढे़ छह..... पौने सात बजे का समय रहा होगा। एक अनीश नाम का लड़का, दुकान पर आता है, गांव का रहने वाला था, वह चतुर व चालाक था।उसका बातें करने का तरीका गांव वालों की तरह का था, परन्तु बहुत ठहरा
माँ : जिसके बिना हमारा अस्तित्व नहींमाँ एक मिश्री घुला शब्द है जिसकी व्याख्या नहीं हो सकती । वह एक ऐसी शख्सियत है जो हर कीमत पर संतान का साथ देती है। स्नेह और देखभाल का इससे बड़ा दूसरा उदाहरण देखने मे
आज चार महीने हो गये लेकिन लगता है कल की ही बात है... जैसे कोई हसीन खुशनुमा ख़्वाब था जो पल भर रहा और पल भर में ही गुज़र गया। बात है अक्टूबर के ट्रेन के उस सफ़र की जिस ने जिसने मेरी ज़िंदगी में एक अधूराप
क्या जानना पर्वतों को कब पूजा जाएगा जब जरूरत होगी उनको तब पूछा जाएगा। रहो मौन ,स्थिर, शांत चित्त शिवाय सा होकर जब विषपान का समय होगा तब पू
जिंदगी के अनुभव - मेरा एक दोस्त था उस के साथ मेरा पैसे का लेन देन चलता था , एक बार मेरे पैसे उसके पास आ गए जो कि मेरे ही थे, जो उस ने मुझे लौटाए नही , उसने कहा मेने पैसे किसी को दे दिये है, वो