'सत्य' एक 1998 हिंदी फिल्म है जिसमें उर्मिला मातोंडकर, मनोज वाजपेयी, जेडी चक्रवर्ती, गोविंद नामदेव, परेश रावल, सौरभ शुक्ला, मकरंद देशपांडे, शिफाली शाह, राजू मावानी, आदित्य श्रीवास्तव, नीरज वोरा, राजेश जोशी, स्नेहल धाबी, जीवन , ज्योति डोगरा, राजीव मेहता, सुशांत सिंह, अनुपम श्याम, मिथिलेश चतुर्वेदी, म
कक्षा मेंशिक्षक ने पूछा : "गांव और शहर में क्या अन्तर है ... ???"एक बालक नें बहुत सुन्दर उत्तर दिया: " इतना ही अन्तर है कि गांव में कुत्ते आवारा घूमते हैं और गौ माता पालीजाती है ... और शहर में कुत्ता पाला जाताहै और गौ माता आवारा घूमती
कहने वाले कह रहे हैं, सुनना कोई चाहता नहीं,‘मैं’ का मिजाज है ऐसा, परे कुछ दिखता नहीं...अपने विचार क्या, तर्क क्या, ‘मैं’ ही मिथ्या है,वजूद के कमरे से मगर कोई निकलता ही नहीं...सत्य, यथार्थ की मिल्कियत विरासत में नहीं मिलती,पराक्रम के पौरुष को मगर रणभूमि भाता ही नहीं...ईश्वर को, जीवन को समझने की जिद ल
“भगवान या ईश्वर ” है या नहीं ? इस विषय पर अनादिकाल से वाद-विवाद चलता हुआ आ रहा है किन्तु इस चर्चा का आजतक कोई सर्वमान्य ठोस जवाब नहीं मिला है । इस बाबत न तो पौराणिक ग्रन्थों, न ही आधुनिक वि ज्ञान के पास कोई भी ठोस सबूत अथवा जवाब है । अधिकतर लोग मानते है कि,’भगवान’
दोपहर तक बिक गया बाज़ार का हर एक झूँठ, और मैं एक सच को लेकर शाम तक बैठा रहा ! (फेसबुक ज्ञान ) आज के जमाने का मनुष्य काफी स्मार्ट बन चुका है, उसे किसके साथ कितना और किस तरीके से
सत्य को तुमने देखा कहाँ हैझूठ के दलदल में ग्रीवा तक धंसे तुमसब एथेंस के सत्यार्थी को नहीं जानते ?किस मशाल को लेकर किस अँधेरे में निकल पड़े हो वह मशाल जिसमें तुम्हारी अपनी सोच का धुंआ है ?मूर्ख !वह प्रज्ज्वलित होगा ही नहीं जो अँधेरा तुमने किया हैवहाँ सूरज निकलेगा ही नहींसूरज को कैद करने की चाह सूरज क
यूँ तो आदर्श रूप में सत्य सिर्फ सत्य होता है इसके आगे किसी विशेषण की आवश्यकता नहीं। फिर भी इस बात से फर्क पड़ता है सत्य कहाँ बोला जा रहा है ,किस उद्देश्य से बोला जा रहा है और किसके द्वारा बोला जा रहा है । कानून की प्रक्रिया में सत्य का अलग महत्व है और समाज और देश काल में अलग। समाज और परिवार में यदि