यूँ तो आदर्श रूप में सत्य सिर्फ सत्य होता है इसके आगे किसी विशेषण की आवश्यकता नहीं। फिर भी इस बात से फर्क पड़ता है सत्य कहाँ बोला जा रहा है ,किस उद्देश्य से बोला जा रहा है और किसके द्वारा बोला जा रहा है । कानून की प्रक्रिया में सत्य का अलग महत्व है और समाज और देश काल में अलग। समाज और परिवार में यदि आप सत्य बोलना और स्थापित करना चाहते है और चाहते हैं कि लोग उसे सुने और माने तो आपको सही समय पर सही तरीके से उसे कहना होगा तब ही वो प्रभावी होगा ।
विज्ञानं परास्नातक ,भारतीय राजस्व सेवा से सेवा निवृत ,कविता कहानी पढ़ने लिखने का शौक ,कुछ ;प्रकाशित पुस्तकें -संवाद कविता संग्रह , मेरी पाँच कहानियाँ , द गोल्ड सिंडीकेट (उपन्यास ), लुटेरों का टीला चंबल (लघु उपन्यास )।;D