सत्य को तुमने देखा कहाँ है
झूठ के दलदल में
ग्रीवा तक धंसे तुमसब
एथेंस के सत्यार्थी को नहीं जानते ?
किस मशाल को लेकर
किस अँधेरे में निकल पड़े हो
वह मशाल
जिसमें तुम्हारी अपनी सोच का धुंआ है ?
मूर्ख !
वह प्रज्ज्वलित होगा ही नहीं
जो अँधेरा तुमने किया है
वहाँ सूरज निकलेगा ही नहीं
सूरज को कैद करने की चाह
सूरज के आगे दीया दिखाना
मानसिकता की ऐसी स्थिति
पूरे ग्रहण का कारण तो बन सकती है
लेकिन सूरज की प्रखरता को
निगल नहीं सकती है !
शबरी से बाज़ी लगाना
तुम सोच सकते हो
शबरी को होश कहाँ
वह तो राम को मिठास देने में मगन है ...
तुम्हें अपनी संकीर्णता पर होगा भरोसा
पर उसे पता है
भरी सभा में द्रौपदी का मान रखनेवाले कृष्ण से
कोई नहीं जीत सकता !
सुदामा के मुट्ठी भर चने का मोल
कृष्ण से परे कौन जान सकता है !
मीरा के विष में अमरत्व की घूंट
यह चमत्कार बिरले ही होता है !
नृत्य विधा कितनी भी दिखा लो
तांडव सिर्फ सत्य का होता है ....