शिवा चुपचाप सिर झुकाकर मामा के साथ घर के अंदर चली गई ।नानी उसको देखकर खुश भी हुई और कुछ सोचकर उनकी आँखों के कोर भी भीग गए थे ।
वो याद करने लगी - जब वो पिछली बार नानी के घर आई थी तब एक दिन मामा के कमरे के पास से गुजर रही थी तो मामी के मामा से झगड़ने के तीव्र स्वर आ रहे थे -" ऐसा कब तक चलेगा !! जब छुट्टी हो तब माँ और बेटी मुँह उठाकर चल देती हैं ,, मैं तंग आ गई हूँ ,,, इस सबसे !"
" चेतना ,छुट्टी में इंसान अपनों के ही घर जाता है और वो तो मेरी दीदी व भांजी हैं ,, और इस बार तो दीदी आई भी नहीं हैं !!"
उसे बहुत जोर रोना आया था और वो कमरे में जाकर सिसकते हुए माँ को फोन मिलाकर धीमे स्वर में कहने लगी थी -"माँ एक बात बताओ ,मैं तुम्हारी शापित संतान हूँ क्या जो तुम मुझे मेरे ही घर से दूर रखे हो !!माँ मुझे अपने घर आना है !!"
नानी उसे खोजते हुए आई थीं और उसे रोते देख लिया था मगर कुछ बोली न थीं ।
फिर जब वो वापस जाने को थी उसके कुछ क्षण पूर्व नानी ने उसे अपने पास बुलाकर कहा था -- शिवा ऐसा नहीं है कि मुझे कुछ सुनाई न देता या दिखाई न देता है मगर मैं क्या करूँ ,हम बुड्डे बुड्डी को दो समय की रोटी चेतना ही देती है ,कुछ कहेंगे तो वो भी मिलनी बंद हो जाएंगी ।तू यहाँ आती रहना ,कम से कम तब तक जब तक हम बुड्डे बुड्डी जीवित हैं ।
शिवा भीतर गई तो उसके नाना जी ने उसे देखकर कहा -"अरे ,मेरी शिवा आ गई !!"
शिवा ,नाना जी से अभिवादन कर अपना सामान भीतर रखने चली गई फिर वापस आकर वो नानी व नाना के पास बैठ गई ।
मामी बेमन से उसे चाय व नाश्ता परोस रही थीं , और वो प्रतीक्षा कर रही थी कि मामी अकेले मिलें तो उनसे पूछूँ कि कानपुर में मेरा घर कहाँ है,मुझे वहाँ क्यों न माँ बुलाती हैं !!
शाम का समय था ।शिवा मामी के कमरे में गई तो वो कपडे़ तह कर रही थीं ।शिवा उनके सामने जाकर बोली -" मामी मैं जानती हूँ कि आप मुझे पसंद नहीं करती हैं ,मामी मुझे बता दीजिए कि कानपुर में मेरा घर कहाँ है ,मेरी माँ मुझे मेरे ही घर क्यों न बुलाती है ?आप बता दो तो मैं चली जाऊँ या मामा से कहकर मुझे कानपुर भिजवा दीजिए ,मैं फिर कभी आपको तंग करने न आऊँगी पर मुझे बता दीजिए कि कानपुर में मेरा घर कहाँ है, किस वजह से मुझे मेरे ही घर जाने को न मिल रहा है !!"
चेतना कपडे़ तह करते हुए रूखेपन से बोली -" मुझे नहीं पता !!मुझे तुम्हारे मामा ने बस इतना बताया था कि तुम कानपुर में रहती हो बस ,,।"
चेतना का उत्तर सुनकर शिवा जाने को मुडी़ ही थी कि उसे सामने से अपने मामा आते दिखाई दिए ,,
शिवा ने उन्हें रोककर कहा -"मामा मुझे आपसे कुछ बात करनी है ।"
शिवा के मामा समझ गए कि ये क्या पूछना चाहती है और बोले -"चलो बाहर चलकर बात करते हैं "और वे शिवा को लेकर एक काॅफी शाॅप में आ गए और दो काॅफी मँगाकर एक शिवा के सामने रखकर दूसरी से सिप करते हुए बोले -"बोलो ,क्या बात करनी है ?"
"मामा मुझे कानपुर अपने घर जाना है , मुझे मेरे ही घर क्यों न जाने दिया जाता है !!मैं जानना चाहती हूँ कि मुझे किस अपराध की सजा मिल रही है जो मुझे मेरे ही घर से दूर रखा जा रहा है ,, मुझे घर जाना है ,,घर जाना है"शिवा कहते कहते फफक फफक कर रोने लगी और विशाल उठकर शिवा से थोडी़ दूर पर जाकर किसी को फोन मिलाकर बात करने लगा ।
बात करने के बाद विशाल आकर शिवा के पास बैठकर बोला -"सामान रख लेना ,कल हम कानपुर चल रहे हैं ।" और शिवा खुश होकर मामा के साथ वापस आकर अपना सामान रखने लगी थी ।अगली सुबह शिवा मामा के साथ बस में कानपुर जा रही थी ।
अपनी आदतानुसार शिवा खिड़की की तरफ बैठी ,खिड़की से बाहर देखते हुए सोच रही थी -आखिर अपने घर कानपुर जा रही हूँ ,अब वहाँ जाकर पता करूँगी कि मुझे मेरे ही घर से क्यों दूर रखा गया !घर में कौन-कौन है!मेरे पापा कौन हैं !! सारे प्रश्नों के उत्तर लूँगी मैं ।
जिस चीज को दिल से पाना चाहो उसे पाने का समय बहुत लम्बा लगता है और जिससे दूर भागना चाहो वो चीज़ आपसे जैसे पीछा ही न छुडा़ना चाहती ।
शिवा भी सोच रही थी कि कानपुर जल्दी क्यों न आ रहा है !!
सोचती हुई शिवा के मुँह से निकला -कब आएगा कानपुर !! और बस में यात्री उसकी तरफ देखकर मुस्कुराने लगे और एक यात्री ने कहा -"बस थोडी़ ही दूर बचा है ।"
कानपुर को तो आना ही था सो आ गया ।विशाल शिवा को लेकर बस से उतरा और घर के लिए आटो करके शिवा को लेकर उसके घर चल दिया ।
आटो तेजी से गंतव्य की ओर भाग रहा था और शिवा के हर्ष का ठिकाना न था ।
देखते ही देखते शिवा का घर आ गया ।
"बस !बस! यहीं रोक दो !" शिवा के मामा ने आटो वाले से कहा और आटो वाले ने आटो रोका ।शिवा के मामा आटो वाले को रुपए देने लगे और शिवा घर की तरफ देखने लगी - एक छोटा सा लोहे का गेट लगा हुआ था और उससे अंदर का पतला ,लम्बा बरामदा दिख रहा था और बरामदे में घर का मुख्य दरवाजा था ।
"आओ शिवा ।" शिवा के मामा ने उसके बैग आटो से उतारकर पकडे़ हुए शिवा से कहा और आगे बढ़कर एक हाथ के बैग रखकर वो लोहे का गेट खोला और भीतर गए।शिवा भी उनके पीछे -पीछे देखती हुई बढी़ - लोहे के गेट के अंदर प्रवेश करते ही पतला सा खुला परिसर था जिसमें एक तरफ एक चापाकल लगा हुआ था और दूसरी तरफ कुछ गमलों में दिखने में आकर्षक पेड़ लगे हुए थे।
उस परिसर के बिलकुल बीच में तीन सीढियों के बाद पतला और लम्बा बरामदा था ।बरामदे में चार कुर्सियां व उनके बीच एक मेज पडी़ हुई थी और बरामदे में ही घर का मुख्य दरवाजा था जिसके ऊपर व्हील चैम लगा हुआ था जो हवा से हिलकर वातावरण में एक मधुर संगीत उत्पन्न कर रहा था ।
घर के मुख्य दरवाजे के पास ही एक बडी़ खिड़की लगी थी जिसपर पर्दा पडा़ हुआ था ।.........शेष अगले भाग में।