,,,,, मुझे छोटे से ही जयपुर के हाॅस्टल डाल दिया गया ,जयपुर जहाँ मेरा ननिहाल है , मुझे धुँधला -धुँधला याद है वहाँ माँ मिलने आती थीं और मुझसे मिलने मेरे बाबा भी आते थे ,,,, वहीं मेरी सारी शिक्षा हुई । मेरे नाना,मामा तो मुझसे मिलने आते ही रहते थे ।
मैं अपनी शिक्षा पूरी करते बडी़ हो रही थी और मुझे समझ न आता है कि जब भी मेरी छुट्टियां होती थीं तब मैं से माँ घर आने को कहती मगर माँ हर बार मुझसे यही कहतीं कि तू नानी के यहाँ पहुँच मैं वही आ रही हूँ और मामा मुझे लेने आते और ननिहाल ले जाते थे । मैं आज तक कभी भी अपने घर कानपुर न गई! मुझे तो पता भी नहीं है कि कानपुर में मेरा घर कहाँ है !!"
"अच्छा !! तूने कभी भी अपनी माँ से पूछा नहीं कि मुझे कानपुर क्यों न आने देती हो ?? और तुझे फिर किसने बताया कि तेरा घर कानपुर में है ??" अनन्या ने हैरानी से भौहें चढा़कर अपने एक हाथ को अपने गाल पर रखते हुए शिवा से पूछा ।
" माँ से तो जब भी कुछ पूछती थी तो वो इधर इधर की बातें करके मेरी बात को टाल ही देती थीं पर एक बार मैं अपने मामा के साथ घूमने जा रही थी तब मैंने अपने मामा से पूछा पर वो भी पहले कुछ भी बताने से इंकार ही करते रहे मगर जब मैं जिद पर अडी़ रही तब बस इतना बताया कि तुम्हारा ददिहाल कानपुर में है मगर कहाँ ये नहीं ही बताया ।
मैं तो ये भी न जानती कि मेरे ददिहाल में कौन -कौन है ! मेरे पापा कौन हैं !! बाबा का तो अब चेहरा भी मुझे याद नहीं है !!" शिवा ने मायूसी से अनन्या को बताया ।
"अच्छा ,,, जानती हो मेरी माँ का मायका कानपुर में है पर मुझे भी हैरानी होती है कि जब से मैं समझने वाली हुई तब से मैंने माँ को मायके जाना तो दूर की बात है ,,मायके की चर्चा भी उनके मुँह से कभी न सुनी !!
मैं भी न जानती कि कानपुर ,मेरे ननिहाल में कौन -कौन है ?? और माँ ननिहाल की चर्चा तक क्यों न करती हैं ,, मैंने भी पापा से बहुत बार पूछा तब उन्होनें बस इतना ही बताया कि तुम्हारा ननिहाल कानपुर में है ।" अनन्या ने शिवा से कहा
"यार कानपुर में ऐसा क्या है जो न मेरी माँ मुझे वहाँ जाने देती है और न तुम्हारी माँ वहाँ का नाम तक लेती है !!" शिवा ने हैरानी जताते हुए अनन्या से कहा ।
"कहीं कानपुर की सीमा प्रारंभ होते ही कोई भूत बँगला तो न पड़ता है !" हा हा हा हा
अनन्या ने बुक्का फाड़कर हँसते हुए और अपने हाथों से ताली पीटते हुए शिवा से कहा ।
"कुछ भी !!" शिवा ने सिर हिलाते हुए कहा और अनन्या की तरफ करवट करके लेट गई।
अनन्या भी लेट गई और कमरे की छत की ओर शांत होकर देखने लगी ।कुछ क्षण पश्चात अनन्या कमरे की छत की ओर ही देखते हुए शिवा से बोली -" यार उन रिक्शेवाले बाबा को इस उम्र में कितनी मेहनत करनी पड़ती है तब जाकर उन्हें रुपए मिल पाते हैं ।"
"हाँ ,वही तो !!" शिवा बोली ।
दोनों की बातें शुरु चाहे जहाँ से हों पर घूमफिर कर दोनों की बात उस बुजुर्ग रिक्शे वाले बाबा पर ही आकर खत्म होती थी।
रजनी ने अपने नाखूनों से अँधकार खुरच-खुरच कर आसमान में भोर का उजाला फैला दिया था । चिडियों ने चहचहाकर उन दोनों के लिए नित्य की तरह अलार्म का काम किया था और दोनों उठकर नित्य क्रियाओं से निपटकर,नाश्ता करके काॅलेज के लिए तैयार हो रही थीं।
"अरे शिवाआआआ,,, अनन्याआआआ !!" ऊपरी मंजिल से मकान मालकिन शुभ्रा ने शिवा और अनन्या को आवाज दी ।
मकान मालकिन शुभ्रा के कोई संतान न थी ।उनके पति भी अपने व्यापार के सिलसिले में ज्यादातर बाहर ही रहते थे और शुभ्रा पूरा दिन अकेले ऊबा करती थी तो उसने अपने घर में किराएदार रखने का सोचा पर मन में ये भी था कि पता नहीं कैसे किराएदार मिलें ,,, फिर कुछ सोचा और घर के दरवाजे पर बोर्ड लगा दिया -काॅलेज जाने वाली लड़कियाँ किराए पर रहने हेतु संपर्क करें ,रहने के साथ भोजन की व्यवस्था भी उपलब्ध है और पलकें बिछाए राह देखने लगीं कि कोई लड़कियाँ आएं और उनके रहने से उन्हें ये अहसास न हो कि वे अकेली हैं ,, घरेलू लड़कियां मिलें जो मिलनसार हों तो पौ बारह हो और ईश्वर ने उनकी सुनकर पहले शिवा को और फिर अनन्या को भेज दिया ।
इन दोनों का व्यवहार उन्हें इतना भाया कि घर के बाहर लगा बोर्ड उतार कर रख दिया ।अब उन्हें किसी और की आवश्यकता ही न थी ,उनके अकेलापन इन दोनों की उपस्थिति के अहसास भर से ही दूर हो गया था ।
एक रसोंइया तो लगा ही रखा था जो दोनों समय का भोजन,नाश्ता बनाता, बर्तन साफ करता , नीचे की साफ-सफाई करता था ।ऊपर मंजिल की साफ-सफाई शुभ्रा स्वयं करती थी ।
"हाँ काकी !" शिवा अपने बालों में कंघी करती हुई कमरे से निकलकर आँगन में आकर ऊपर छज्जे की तरफ देखते हुए बोली।
"शिवा , तुम दोनों काॅलेज से लौटते में क्या मेरे कपडे़ ले आओगी !! मैंने सिलवाने को दिए थे ,आज मिलने हैं ,,, वो जो निराली बस्ती में शाँति मार्केट है,, वहीं सोमराज दर्जी की दुकान से लाने हैं ,, ला सको तो रसीद दे दूँ ,, रुपए मैं पहले ही दे आई थी ।" मकान मालकिन शुभ्रा ने अपना पल्लू हाथ में पकडे़ हुए नीचे देखकर शिवा से कहा।
"आहाआं काकी ,, ले आऊँगी ,आप रसीद दो ।" शिवा ने हल्की मुस्कान लाकर कहा और शुभ्रा अंदर जाकर रसीद ले आई और सीढियों से उतर कर शिवा के हाथ में थमा दी।
शिवा रसीद लेकर कमरे में आई और कमरे की खिड़की से बाहर की ओर देखकर फिर अनन्या की तरफ देखकर बोली -" तेरा हो गया हो तो चलें ,देख रिक्शेवाले बाबा आ गए हैं ।"
अनन्या अपना गले में पडा़ दुपट्टा सही करते और शीशे में स्वयं को निहारते हुए बोली -"हाँ चलती हूँ ना ।"
" अरे बस बहुत अच्छी लग रही है अब चल !!" शिवा ने हँसते हुए कहकर अनन्या का हाथ पकडा़ और कमरे से निकलकर कमरे में ताला डालकर चाभी रख ली और दोनों बाहर आ गईं जहाँ बुजुर्ग रिक्शेवाला खडा़ था । दोनों बैठकर काॅलेज के लिए निकल लीं ।
अनन्या ने रिक्शे बैठे हुए शिवा से पूछा -" शुभ्रा काकी ने क्यों बुलाया था ??"........शेष अगले भाग में।