"अच्छा वो सब छोड़ ,,,सुन न शिवा,हमको मिले छह महीने हो गए और हम अभी एक दूसरे के बारे में कुछ न जानते हैं सिवाय इसके कि तू कानपुर और मैं बरेली से हूँ,चल पहले तू अपने बारे में बता फिर मैं अपने बारे में तुझे बताती हूँ।"अनन्या नाश्ते की प्लेटें व चाय के कप अपनी मेज पर रखकर पुनः शिवा के बेड पर धम्म से पलथी मारकर बैठते हुए बोली।
"हमम् बात तो तेरी सही है !हमने एक दूसरे के बारे में न कभी जानना चाहा न ही पढा़ई की व्यस्तता के चलते हमारा इस तरफ ध्यान ही गया ,कोई बात नहीं ,,,,अब जान लेते हैं एक दूसरे के बारे में ,मैं कानपुर से हूँ ,ये तो तुझे पता ही है ,,, मेरी पढा़ई-लिखाई जयपुर में हुई उसके बाद तो कानून की पढा़ई पढ़ने लुधियाना आ गई।
छुट्टियों में ही बस,, ,,,,,,, अरे !ऐसे कैसे पचास रुपए हो गए!! जितने मुँह में आ जाएं उतने बोल दोगे क्या ????
बाहर से आती तेज आवाज सुनकर शिवा अपनी बात कहते हुए रुकी और खिड़की से बाहर देखने लगी।
उसको बाहर देखता देख और तेज आवाज की वजह से अनन्या ने भी खिड़की से बाहर देखा।
"अरे ये तो वही रिक्शे वाले बाबा हैं !!"अनन्या के मुँह से निकला।
"हाँ यार और ये आदमी इनसे तेज आवाज में क्यों बात कर रहा है !!इधर आ खिड़की से सटकर सुनते हैं ।"शिवा ने अनन्या को अपनी तरफ खींचते हुए कहा और दोनों खिड़की से सटकर सुनने लगीं --
"बाबूजी आप लाल चौक से यहाँ घण्टाघर तक आए हैं और वहाँ से यहाँ तक का पचास रुपए ही होता है बाकी आप जो देना चाहो दे दो "वो बुजुर्ग सिर झुकाकर कंधे पर पडे़ अँगौछे से अपना पसीना पोछते हुए बोला।
"हाँ तो जो दूँगा वही तो लोगे !!लूटने का धंधा बनाकर रखा है !"कहते हुए उस आदमी ने तीस रुपए बुजुर्ग रिक्शेवाले को पकडा़ए और जाने को मुडा़।
"अरे !ये कैसा आदमी है !बेचारे बाबा को उनकी मेहनत के पूरे रुपए भी न दिए और उनकी उमर का भी लिहाज न कर रहा है !!चल!चल!चल"कहते हुए शिवा,अनन्या का हाथ पकड़ कर कहते हुए तेजी से कमरे से बाहर निकलते हुए सड़क पर आ गई।
वो आदमी जा रहा था ।
"अंकल जी !!!" अनन्या ने आवाज दी और शिवा ने बुजुर्ग रिक्शेवाले बाबा को रुकने को कहा ।
"जी, आपने मुझसे कुछ कहा !!" उस आदमी ने अनन्या से पूछा ।
"जी हाँ,आपसे ही कह रही हूँ महोदय, लाल चौक से घण्टाघर तक पचास रुपए ही होते हैं और आपने बूढे़ बाबा को तीस रुपए ही दिए ! उनका मेहनताना मारा और उनकी उम्र का लिहाज भी न कर रहे हैं !! " अनन्या उस आदमी से कहे जा रही थी और बुजुर्ग रिक्शेवाला अपने दोनों हाथ आगे करके दीन स्वर में कह रहा था -" जाने दो न बिटिया! जाने दो न बिटिया !!"
शिवा अपना हाथ उठाकर "निश्चिंत रहिए बाबा !" का संकेत कर रही थी।
--- अगर अभी आपकी बेटी आपसे सौ रुपए माँगे तो आप उसे सहर्ष दे देंगे !तब तो न कहेंगे कि बेटी चालिस ही ले लो ,,, पर इन बुजुर्ग बाबा की मेहनत की कमाई देने में आना-कानी करेंगे!!"
अनन्या को तेज स्वर में कहते देखकर उस आदमी ने बुजुर्ग रिक्शेवाले को पूरे रुपए देना ही श्रेयस्कर समझा और उसने बाकी के बीस रुपए ऐसे थमाए जैसे उस पर बडा़ भारी एहसान कर रहा हो और उसे आग्नेय नेत्रों से देखता हुआ वहाँ से तेज कदमों से रवाना हो लिया ।
बुजुर्ग रिक्शेवाले की आँखों से आँसुओं की धार बह चली,,,,,,, ये आँसू ,इन अहसान धरकर दिए गए बीस रुपयों की वजह से न आ रहे थे ,,,
कुछ और ही था,,,,,, कुछ अनकहा दर्द
"बाबा आपने सुबह से कुछ खाया है ?" शिवा ने पूछा पर बुजुर्ग रिक्शेवाला कुछ न बोला और सिर झुकाकर ,उदास कदमों से वापस जाने को मुडा़ ।
शिवा और अनन्या जब से इस बुजुर्ग रिक्शेवाले बाबा से मिली थीं तब से देख रही थीं कि बाबा बहुत कम बोलते हैं ,, मुस्कुराते हुए उन्हें तो उन दोनों ने कभी देखा ही नहीं था ।
कुछ तो ऐसा था जो रिक्शेवाले बाबा अपने अंदर समेटे थे पर क्या !! ये,वो दोनो समझ नहीं पा रही थीं।
"बाबा,चलिए न ,, हमारा कमरा भी देख लीजिए और कुछ खा भी लीजिए " अनन्या ने कहते हुए उन रिक्शे वाले बाबा का हाथ पकडा़ और जबरन उन्हें अपने साथ लाने को मुडी़ं पर उन्होने धीमे स्वर में कहा -" नहीं बिटिया,घर जाना है " और वो जाने लगे।
वे दोनों उन्हें जाते हुए देखती रहीं और फिर अपने कमरे में लौट आईं और मायूस होकर बैठ गईं ।
दोनों का मन उन बुजुर्ग रिक्शेवाले बाबा में लगा हुआ था ।
" शिवा ,सो गई क्या ??" रात को अपने बिस्तर पर स्कर्ट व टाॅप पहने लेटी हुई अनन्या ने शिवा की तरफ करवट बदलते हुए पूछा ।
" इन्ना !!" शिवा ने अपने सिर को झटका देते हुए और बहुत जोर देते हुए किसी बच्चे की तरह से कहा ,फिर अनन्या से पूछा -"तुझे भी नींद न आ रही है क्या ?" और अनन्या ने एक लम्बी श्वास छोड़ते हुए उत्तर दिया -"नहीं ना यार !!"
"हाँ ,वही तो !!" शिवा ने मुँह बिचकाकर कमरे की खिड़की से बाहर की तरफ मुँह करते हुए कहा ।
अभी बहुत रात बाकी थी भोर होने में और चंदा जैसे अपनी चांदनी की गोद में सुकून से अपना सिर रखे,मुस्कुराता हुआ अपने नक्षत्रों रूपी संतानों को सोता हुआ देख रहा था"
अरे हम लोगों की बात अधूरी रह गई थी , तू अपने बारे में बता रही थी ना ! नींद तो आ न रही है तो चल बता !" अनन्या ने अपने बिस्तर से उठकर पलथी मारकर बैठते हुए कहा ।
शिवा भी उठकर बैठ गई और बोली-"हाँ तो मैं बता रही थी कि मेरी शिक्षा-दीक्षा जयपुर,,,,,,, अरे ये तो बता चुकी है तू ,, आगे बता न ! तू कुछ कह रही थी कि बस छुट्टियों में ही,,,,, अनन्या ने शिवा की बात को बीच में ही काटकर कहा ।
"हाँ वही तो !,,,,,,,," शिवा ने अपनी बात प्रारंभ की ।
'हाँ वही तो' उसका तकियाकलाम था ।
..........शेष अगले भाग में।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'