मैंने अपने घर में बात की तो तुम्हारे नाना,मामा तैयार हो गए और तुम्हें उनके यहाँ पढ़ने भेज दिया गया ,तब तुम्हारे मामा का विवाह न हुआ था पर तुम्हारे मामा के विवाह होते ही ,चेतना ने साफ कह दिया कि मैं किसी किच-किच में न पड़ना चाहती हूँ ,, तुम्हारी बहन की बच्ची की देखरेख, का उत्तरदायित्व मुझसे न उठाया जाएगा ,, उसका टिफिन बनाना,उसे स्कूल के लिए तैयार करना,उसके कपडे़ धोना ये सब मैं क्यों करूँ!!
तुम्हारे मामा ने चेतना को कुछ भी न बताया था ,, तुम्हारे वहाँ रहने का कारण ,तुम्हारे पापा की हरकतों के बारे में ,, कुछ भी चेतना को न बताया था विशाल ने और माँ और पापा को भी बताने को मना कर दिया था ताकि वो हमारा उपहास न उडा़ए !
चेतना ने अपने हाथ खडे़ कर दिए तो विशाल ने तुम्हें हाॅस्टल में डाल दिया था ।
तुम्हारे पापा इससे भी बहुत चिढे़ हुए थे कि उनको उनकी बेटी से ही दूर कर दिया गया जबकि उनको अपनी आवारागर्दी के आगे सारे रिश्ते तुच्छ लगते थे ।
एक शाम की बात है तुम्हारे बाबा और तुम्हारे पापा के मध्य बहुत भयंकर बहस हो गई ,,, उस समय गीतिका भी यहाँ आई हुई थी ।अपनी बच्ची को वो उसके पापा ,मेरे नंदोई के पास छोड़ आई थी ।
तुम्हारे बाबा ने तुम्हारे पापा से कहा था कि मैंने तय कर लिया है कि मैं अपनी सारी चल व अचल संपत्ति गीतिका के नाम वसीयत कराने जा रहा हूँ ,, मेरे बाद मेरा जो भी है वो सब गीतिका का होगा ।
तुम्हारे पापा ने क्रोध में भरकर तुम्हारे बाबा से कहा - गीतिका का क्यों ? उसका विवाह हो चुका है और उसे उसका हिस्सा दहेज के रूप में आप दे चुके हो और अब जो है उसपर मेरा अधिकार है ,मैं रखूँ या उडा़ऊं ,,इससे किसी को कोई मतलब न होना चाहिए !
गीतिका ने कहा - पापा ऐसा मत कहिए ,मुझे कुछ न चाहिए मगर तुम्हारे बाबा ने कहा कि मैं तय कर चुका हूँ और मैं जो निर्णय ले चुका हूँ होगा वही बस ,, और वो अपने कमरे में चले गए थे ।
दो दिन बीते थे उसके बाद की सुबह मुझे तुम्हारे बाबा घर में कहीं न दिखे ,मैंने गीतिका से पूछा ,, उसने भी कहा कि मैंने भी सुबह से पापा को घर में न देखा ।श्रीनिवास ने भी यही कहा ।थोडी़ देर बाद तुम्हारे पापा ने आकर बताया कि पापा घर छोड़कर कहीं चले गए हैं ।
गीतिका ने घबराकर कहा -" पापा कहीं चले गए !! भाभी पापा कहाँ जा सकते हैं ,,पुलिस में रिपोर्ट लिखवानी होगी
तो तुम्हारे पापा ने गीतिका को क्रोध में भरकर कहा -"तुम अपनी तशरीफ ले जा सकती हो ,, तुम्हारा ब्याह हो चुका है न तो अपना घर देखो ,मुझे क्या करना है मैं देख लूँगा ,,तुम्हें सलाह देने की जरूरत नहीं है ,, तुम अपना देखो ।
जो स्वप्न तुम देख रही थीं कि सब तुम्हें मिल जाएगा ,वो स्वप्न देखना छोड़ दो ,, और सीधे अपने घर का रुख करो ,फिर कभी यहाँ मुँह उठाकर मत आना क्योंकि अब तुम्हारे खैरख्वाह पापा भी घर छोड़कर जा चुके हैं ।
और भी जाने क्या -क्या वो बेचारी गीतिका से कहते रहे मैं तुम्हारे पापा के आगे गिड़गिडा़ती रही कि ऐसा मत कहें मगर उनके आगे मेरी एक न चली और गीतिका रोते हुए ये कहकर घर से चली गई कि मैंने कभी पापा की संपत्ति का लालच न किया ,कभी पापा की संपत्ति पाने के स्वप्न न देखे ,मेरे पति अच्छा -खासा कमाते हैं और ईश्वर की दया से हमें किसी चीज की कोई कमी नहीं है ,,जा रही हूँ मैं अब कभी यहाँ पाँव न रखूँगी ।
कुछ समय बाद तुम्हारे पापा जब घर से बाहर गए थे तब उनका फोन आया कि मैने पापा को रास्ते में देखा था ,मैं उनके पास जाता उसके पहले उनके साथ दुर्घटना हो गई और वो चल बसे ।तुम्हारे बाबा का शव घर आया तब गीतिका घर आई थी पर वो बाहर ही रही उसने घर में कदम भी न रखा था ,फिर उसके बाद कभी भी घर न आई।
तुम्हारे बाबा के गुजरने के बाद तो तुम्हारे पापा पूरी तरह स्वतंत्र हो गए और दिन रात आवारागर्दी करने लगे ।तुम्हारे बाबा ने जो महाविद्यालय खोला था ,जिसमें तुम्हारे पापा को वे प्रवेश तक न देते थे उस पर तुम्हारे पापा का स्वामित्व हो गया और जो महाविद्यालय शुचिता के लिए पूरे कानपुर में प्रसिद्ध था वो नकल के अड्डे के लिए बदनाम हो गया क्योंकि तुम्हारे पापा उसमें छात्रों व छात्राओं से मोटी रकम लेकर उन्हें नकल करने की खुली छूट देते थे ........
...वहाँ अराजक गतिविधियां संचालित होने लगीं थीं जिसके कारण शिक्षा के प्रति प्रेम करने वाले ,अपना भविष्य बनाने का स्वप्न देखने वाले छात्र व छात्राओं ने वहाँ दाखिला लेने के प्रति मन मोड़ लिया ।
तुम्हारे पापा ने उस महाविद्यालय को क्या से क्या बना दिया है ।" कहते कहते अर्पिता फफक फफक कर रोने लगी ।
शिवा सब सुनकर उदास होकर खडी़ हो गई और अनन्या की माँ का फोटो अपनी माँ की तरफ बढा़कर अपने कमरे में जाने लगी तभी अर्पिता ने उसका हाथ पकड़ कर रोते हुए कहा -" गोलू इसीलिए मैं तुम्हें कुछ न बता रही थी ,,,,हर लड़की के लिए उसके पापा उसके हीरो होते हैं , मगर तुम्हारे पापा तो ,, " कहते कहते रुक गई और शिवा ने अर्पिता के हाथ पर अपना हाथ रखकर अपने कमरे की तरफ जाते हुए कहा -"मैं सही हूँ माँ ,आप रोइए मत "
इस सबमें रात हो गई थी पर न अर्पिता और न ही शिवा ने खाना खाया था क्योंकि अर्पिता के पुराने घाव ताजा हो गए थे और शिवा की भूख ये सच जानकर मर गई थी ।
इन दोनों के खाना न खाने से श्रीनिवास ने भी खाना न खाया और रसोंई की सफाई करके वो अपने कमरे में चला गया ।
शिवा का मन बहुत भारी हो गया था तो वो अपने कमरे से निकलकर रसोंई के बगल वाले कमरे से होती हुई बाहर निकल गई और वहाँ भारी मन लिए ,सोचते हुए टहलने लगी कि माँ के घाव हरे हो गए ,वो बुरी तरह रोने लगीं तो उनसे उन कमरों में पडे़ तालों के बारे में न पूछकर सही किया मैंने ,,
उन कमरों की चाभी श्री के पास रहती है ,उसी से पूछूँ कि उन कमरों में ताला क्यों पडा़ रहता है !! अब ये तो साफ हो गया कि उन दो कमरों में से एक कमरा बाबा का व दूसरा गीतिका बुआ का होगा ।.......शेष अगले भाग में।