शिवा स्नान करके अपने कमरे में आई ही थी कि उसके फोन की घण्टी बजी ।
शिवा ने फोन उठाकर कहा -" हाँ अनन्या ,कैसी है तू ?"
उधर से अनन्या की आवाज आई -"मैं सही हूँ तू बता तुझे कारण पता चला कि तेरी माँ तुझे कानपुर क्यों न आने देती थीं ?"
"नहीं ,अभी तो नहीं ,पर कुछ तो है ऐसा जो मुझसे छुपाया जा रहा है और जानती है मुझे मेरे पापा मिले पर उन्हें जैसे कोई फर्क ही न पडा़ मेरे आने से ,,, उन्होने तो मुझसे बात तक न की !! शिवा ने अनन्या से फोन पर कहा ।
"जानती हो ,ये जो दूरियां होती हैं वो प्रेम खत्म कर देती हैं ,तू पहली बार अपने घर गई है ,छोटे पर से अपने घर से दूर रही है तो तेरे प्रति तेरे पिता के मन में कोई प्रेम उपजा ही न होगा " अनन्या की आवाज आई ।
"हाँ शायद तू सही कह रही है ,,, " शिवा अनन्या से बात करते करते ऊपर छत पर आ गई थी और छत से नीचे देखते हुए बात कर रही थी तभी उसे माँ की आवाज सुनाई दी -श्रीनिवास
ये माँ श्री को क्यों आवाज दे रही हैं !चलकर देखूँ ,, सोचते हुए शिवा दबे पांव नीचे उतरकर आई तो देखा कि माँ के कमरे का पर्दा थोडा़ सा खुला हुआ था ।
शिवा ने झांककर भीतर देखा -
"श्रीनिवास ये रुपए लो और सब्जी व फल ले आओ ,खत्म हो गए हैं ।" शिवा ने देखा कि माँ ने श्री को रुपए देकर अलमारी की चाभी ली और वहीं रखी एक मूर्ति की कमर को घुमाया और उसमें डाल कर उस मूर्ति की कमर फिर घुमाकर सही कर दी ।
श्रीनिवास बाहर निकलने जा रहा था तो शिवा जल्दी से रसोंई में चली गई ।श्रीनिवास रुपए लेकर चला गया और शिवा सोचने लगी ,,ओह तो माँ अपने वार्डरोब की चाभी इस मूर्ति के भीतर रखती हैं !!
"शिवा ,तुम रसोंई में !कुछ चाहिए था क्या ?"अर्पिता ने रसोंई में आकर शिवा से पूछा ।
"हाँ माँ ,वो पानी चाहिए था ।" कहते हुए शिवा ने फ्रिज से पानी की बोतल निकाली और घर के बाहर पडी़ कुर्सी पर बैठकर पानी पीने लगी ।
शिवा पानी पी ही रही थी कि उसने देखा कि घर के बाहर जो छोटा लोहे का गेट लगा था उसे खोलकर एक आदमी भीतर आ रहा था ,उस आदमी के हाथ में स्टील की बाल्टी थी ।
"आप कौन ?" शिवा ने उससे पूछा ।
"मैं तो दूधवाला हूँ ,पर आप कौन हो ?आज पहली बार देखा आपको यहाँ ?" उस आदमी ने शिवा की बात का उत्तर देकर शिवा से पूछा ।
"मैं इस घर की बेटी हूँ ,बाहर रहती हूँ , छुट्टियों में आई हूँ।" शिवा ने दूधवाले के हाथ से दूध की बाल्टी लेते हुए कहा ।
"अच्छा ! अच्छा बिटिया जरा अपने पापा को बुला दोगी ?" दूध वाले ने कहा ।
"पापा को !कुछ काम था क्या ?" शिवा ने पूछा ।
"हाँ वो तुम्हारे पापा के काॅलेज में मेरी बिटिया ने दाखिला लिया है उसी संबंध में उनसे कुछ बात करनी थी ।"दूध वाला बोला।
पापा का काॅलेज !! पापा का कोई काॅलेज भी है !! शिवा सोच में पड़ गई ।
"बिटिया !!"दूधवाले ने शिवा से कहा ।
"पापा तो घर पर नहीं हैं ,मैं माँ को भेजती हूँ ।"शिवा ने कहा और वो दूध की बाल्टी लेकर भीतर आ गई।
अर्पिता रसोंई में शिवा के लिए सैंडविच बना रही थी ।
"माँ ये लीजिए दूध की बाल्टी और दूधवाला पापा को पूछ रहा था ,मैंने कह दिया कि पापा घर पर नहीं हैं माँ को भेजती हूँ तो आप देख लीजिए जाकर ।"शिवा ने रसोंई के प्लेटफार्म पर दूध की बाल्टी रखते हुए कहा तो अर्पिता बाहर चली गई।
अर्पिता भीतर लौटकर आई तो उसके चेहरे पर पसीना था।
शिवा समझ गई कि दूधवाले के द्वारा माँ को पता चल चुका है कि शिवा जान गई है कि उसके पापा का कोई काॅलेज है ,पर उसने माँ से कोई प्रश्न न किया और अपनी चाय व सैंडविच लेकर अपने कमरे में आ गई।
दस दिन हो गए थे मगर शिवा को कुछ पता न चला था उन कमरों के दरवाजों पर पडे़ तालों का रहस्य ,, माँ के कमरे में उसके जाने की अनिच्छा का रहस्य ,,, कुछ भी वो पता न लगा पाई थी सिवाय इसके कि उसके पापा का कानपुर में कोई काॅलेज है ।शिवा ने माँ के कमरे में जाने के प्रयास भी बंद कर दिए थे ताकि वो आश्वस्त हो जाएं कि अब शिवा को उनके कमरे में जाने में कोई दिलचस्पी नहीं है ।
"शिवा मैं मंदिर जा रही हूँ तुम्हें चलना है? "एक शाम अर्पिता ने शिवा से पूछा ।
यही अवसर है जब माँ के कमरे में जाकर पता लगाया जा सकता है कि उन्हें मेरा उनके कमरे में जाना पसंद क्यों नहीं है ,, शिवा ने सोचते हुए कहा -"नहीं माँ मुझे नींद सी आ रही है तो मैं जरा लेटकर झपकी लूँगी ।"शिवा ने कहा और अर्पिता मंदिर चली गई।
श्रीनिवास अपने कमरे के बाहर पडे़ परिसर की सफाई कर रहा था ।
शिवा ने रसोंई के बगल वाले कमरे में जाकर उसके अंदर के दरवाजे की भीतर से कुंडी़ लगा ली और माँ के कमरे में जाकर मूर्ति से चाभी निकाल कर उनकी वार्डरोब खोलने लगी ।
माँ की वार्डरोब में तो सिर्फ कपडे़ ही हैं और कुछ ऐसा तो दिख ही न रहा जो उससे छुपाया जा रहा हो !! शिवा ने अर्पिता की वार्डरोब खँगालते हुए स्वयं से कहा और अपना हाथ वार्डरोब के भीतर रखे कपडो़ं पर मारा और पलटी तो कुछ कपडे़ अव्यवस्थित होने के कारण गिर गए।
अरे ये कपडे़ तो गिर गए इन्हें सही से रख दूँ वरना माँ को पता चल जाएगा !! स्वयं से कहती हुई शिवा वो कपडे़ रखने लगी तभी उसकी नज़र किनारे रखे एक फोटो पर पडी़ ।
ये फोटो किसकी है !! शिवा ने स्वयं से कहते हुए वो फोटो उठाया और देखा तो वो भौचक्की रह गई -
अरे ! उसकी माँ के साथ अनन्या की माँ की फोटो !!
शिवा के सामने वो दृश्य घूम गया --
अनन्या ये तेरी प्रोफाइल में किसकी फोटो लगी है ??
ये , ये माँ की फोटो है ,
हूंममम् तू तो बिलकुल अपनी माँ पर गई हो ,,
इसका मतलब मेरी माँ और अनन्या की माँ के मध्य कोई रिश्ता है !! शिवा सोच ही रही थी कि अर्पिता की आवाज आई -"शिवा तुम मेरे कमरे में !! और मेरे वार्डरोब की तुम्हें चाभी कैसे मिली ??"........शेष अगले भाग में।