दोनों के मन में प्रश्न थे पर उन्होने उस रिक्शेवाले बाबा से कुछ भी पूछना उचित न समझा ।
शिवा ट्रेन में बैठी जयपुर जा रही थी ।जितना ट्रेन आगे बढ़ रही थी उतना ही उसका मन उसको पीछे की ओर खींच रहा था। उसका मन जयपुर ननिहाल जाने का बिलकुल भी न था मगर विवशता थी ,जाना तो था ही ! उसका तो कभी कभी मन होता कि शुभ्रा काकी से कह दे कि छुट्टी में भी वो उनके यहाँ रुकेगी मगर ये सोचकर कह न पाती थी कि शुभ्रा काकी क्या सोचेंगी कि छुट्टियों में भी ये घर क्यों न जाना चाहती है !!
जयपुर ननिहाल में बूढे़ नाना और नानी थे जो उससे प्यार तो बहुत करते थे मगर प्यार ही कर सकते थे और कुछ नहीं ,,, मामा थे वो भी उसे चाहते बहुत थे मगर क्या फायदा !!
उसने अनन्या से झूठ ही तो बोला था कि मामा से जिद करने पर उन्होने बताया था कि उसका घर कानपुर में है जबकि असलियत तो वही जानती थी !!
वो दिन उसे भूला ही कहाँ जब उसे पता चला था कि उसका घर कानपुर में है !!
सोचती हुई शिवा जैसे उन्हीं पलों में पहुँच गई-- दोपहर का समय था ,
नाना जी कुर्सी पर बैठे हुए थे और माँ नानी के बालों में तेल लगा रही थीं और वो वहीं बैठे हुए अपने मोबाइल में अपनी जरूरी फाइल देख रही थी कि नानी ने कहा था कि शिवा जरा ग्लास भर पानी ले आ , खाना खाने से पहले वाली दवा खा लूँ फिर अभी खाना खाना होगा ।
वो नानी के कमरे से निकलकर बरामदे से आँगन होते हुए रसोंई के पास पहुँची ही थी कि उसे रसोंई से मामा व मामी के आते स्वर सुनाई पडे़ थे -" चेतना तुम इतना क्यों झल्लाने लगती हो ,मुझे समझ न आता है !! मामा की आवाज आई थी।
" झल्लाऊँ न तो क्या करूँ !! महारानी जी की जैसे ही छुट्टी होने वाली होती है ,,वैसे ही उनकी माँ यहाँ धमक पड़ती हैं जैसे कोई धर्मशाला हो और फिर उनकी लाड़ली,महारानी जी पधार जाती है ,, खाना बनाने के लिए नौकरानी तो है ही जो अपने घर के लिए खाना बनाए और इनके लिए भी बनाए ,,, "मामी की आवाज आई थी।
" मेरे लिए ,माँ और बाबू जी के लिए,अपने लिए बनाते हुए तुम थकती नहीं हो पर जैसे ही मेरी बहन व भाँजी के आने का सुनती हो वैसे ही तुम्हें दिक्कत होने लगती है !!" मामा ने कहा था ।
" हाँ तो दिक्कत तो होगी ही ! छुट्टियों के लिए हमारा ही घर दिखता है ! अपनी महारानी को वो लाटसाहिबा अपने घर कानपुर न बुलाकर यहाँ मरने क्यों आ जाती हैं !!" मामी का तीखा स्वर आया था ।
"तमीज से बात करो ,,वो मेरी बहन है !मेरी इकलौती बहन और दीदी तुम्हारे काम में तुम्हारा हाथ बँटाने को कहती तो हैं मगर तुम ही मना कर देती हो कि नहीं दीदी मैं कर लूँगी तो वो क्या करें !!"मामा बोले थे ।
"हाँ तो उन्हें ये सोचने का अवसर दे दूँ कि मैं कौर तोड़ती हूँ तो काम भी करती हूँ !"
मामी ने कहा था ।
" वाआआह ! जब वो तुम्हारे काम में हाथ बँटाने को कहें तो तुम मना कर दो और बाद में उन्हें कोसो !! ,,ये तुम्हारा अच्छा है !!"कहकर मामा रसोंई से निकल गए थे ।वो उसे न देख पाए थे ।
उसे बहुत खराब लगा था ये सब सुनकर और मामी का तैश में ये सब कहना गलत तो नहीं था !!
आखिर ऐसी क्या विवशता थी माँ की जो माँ उसे उसके ही घर कानपुर न ले जाती थीं ! कुछ तो था जो माँ उससे छुपाए थीं मगर क्या !!
वो छोटी थी तब समझ आता है कि उसे बताना सही न होगा मगर अब ,,,, अब तो वो बडी़ हो गई है ,परिपक्व है ,चीजों को समझ सकती है फिर भी उससे कुछ न कहना !!ये तो सही नहीं है !!
नाना और नानी से पूछने की हिम्मत ही न होती है ,मामा ही हैं जो उसे सच बता सकते हैं मगर उन्हें बताना होता तो बता न देते ! माँ की तरफ से मनाही होगी तभी न मामा और न ही नाना और नानी उसे अपनी तरफ से कुछ बताते हैं ,,, जब वो नानी के घर होती है तो कानपुर की चर्चा भी न होती है ,,
अनन्या बरेली जाती हुई सोच रही थी कि इस बार माँ से पूछ ही लूँ जिद करके कि आखिर वो ननिहाल का नाम तक क्यों न लेती हैं उसके सामने !!
कौन ऐसी बेटी होगी जो अपने मायके न जाना चाहे !! पर यहाँ तो माँ मायके की चर्चा तक उससे न करती हैं ।शायद मायके से माँ की कुछ कड़वी यादें जुडी़ हों जो माँ उससे बताकर अपने मन को कष्ट न पहुँचाना चाहती हों !! कुछ तो है जो माँ उससे छुपाती हैं ,, माँ अपनी बेटी पर इतना भी विश्वास न करती हैं कि उससे अपना मन खोल सकें !!
एक बेटी के लिए उसकी माँ और माँ के लिए उसकी बेटी सबसे अच्छी दोस्त होती हैं ना !!
शिवा उदास मन से ट्रेन की खिड़की से बाहर देख रही थी - चीजें पीछे छूटती जा रही थीं और ट्रेन आगे भागती जा रही थी ।यही तो जिंदगी है ,, जहाँ हम आगे बढ़ते रहते हैं और हमसे आगे बढ़ने में कितना कुछ है जो पीछे छूट जाता है ,, कुछ अच्छा तो कुछ बुरा ,,,
हम रुककर पीछे जाकर उन चीजों को अपने साथ ले भी न सकते हैं ,, आगे बढ़ते हुए पीछे मुड़ने वाला आगे जा ही कहाँ पाता है !!
माँ भी शायद उसे आगे धकेल रही हैं और उसे आगे धकेलने में वो ये भूल रही हैं कि पौधे को उसकी जडो़ं से दूर न किया जा सकता है ,,,
जयपुर आ गया था और शिवा बेमन से अपना बैग अपने कंधों पर डालकर ट्रेन से उतरी थी और आटो करके नानी के घर के निकल ली थी ।
आटो करते हुए उसे रह -रह कर रिक्शे वाले बाबा याद आ रहे थे ।उनका भी कुछ ऐसा अतीत अवश्य था जो वो अपने भीतर दबाए थे और उसके बोझ तले उनकी मुस्कुराहट भी शायद दब कर दम तोड़ चुकी थी।.......शेष अगले भाग में।