शिवा की आँखों में धुंधली सी यादें तैरने लगीं-- गोलू,,,, उधर सीढियों की तरफ नहीं,,, उधर गिर जाओगी ! इधर आओ इधर ,,, गोलू ,,, तुमसे से चापाकल न चलेगा ,,, हा हा हा ,,, आ जाओ इधर ,,,,
शिवा के मामा ने दरवाजे पर लगी घण्टी बजाई ।कुछ क्षण पश्चात घर का दरवाजा एक औरत ने खोला जो शिवा की माँ थीं -लम्बा कद, साँवला रंग, घने काले कमर तक बाल, हल्की गुलाबी छाप वाली साडी़ पहने हुए शिवा की माँ सामने खडी़ थीं ।शिवा को देखकर उनकी आँखों में खुशी कम ये बात ज्यादा थी कि अब शिवा को वो सब पता चल जाएगा जो वो अब तक उससे छुपाती आई हैं और जिसकी वजह से उन्होने अब तक शिवा को उसके ही घर से दूर रखा था ।वो मन ही मन सोच रही थीं कि शिवा को कैसा लगेगा जब उसे सारा सच पता चलेगा ,,,, वो तो टूट जाएगी !!
शिवा के मामा ने अपनी दीदी की तरफ देखा और वो उनके मन के भाव समझ गए और आँखें झुकाकर संकेत में उन्हें कुछ समझाया और फिर झुक कर उनके चरणस्पर्श किए --
"खुश रहो विशाल ।"
विशाल को शिवा की माँ अर्पिता ने आशीर्वाद देकर थरथराते स्वर में शिवा से कहा -"आओ शिवा ।"
शिवा घर के भीतर जाते हुए सोचने लगी - कोई तो रहस्य है जो माँ सोच रही हैं कि शिवा आ गई है तो अब इसे पता चल जाएगा जिसकी वजह से उसको देखकर उनका स्वर थरथरा गया है ,, पर वो रहस्य है क्या !! कोई बात नहीं अब आ गई हूँ तो जानकर ही रहूँगी ।
अर्पिता ने अपने बालों को समेटकर जूडा़ बनाते हुए घर के नौकर श्रीनिवास को आवाज लगाई -"श्रीनिवास।"
आवाज सुनकर श्रीनिवास आया - जलेबी जैसे बाल ,चौढा़ माथा ,भरा हुआ चेहरा ,छोटी हल्की मूँछें , स्वस्थ काया , हल्के क्रीम रंग का कुर्ता व सफेद पैजामा पहने ,कंधे पर लाल अँगौछा डाले हुए श्रीनिवास बाहर से शिवा का सामान उठाने चला गया और शिवा अर्पिता के साथ भीतर आकर घर की तरफ देखने लगी -
अंदर चारों तरफ चौडे़ बरामदे के मध्य में आँगन था जिसमें तुलसीचौरा बना हुआ था बरामदे के दाएं और बाएं दोनों तरफ दो -दो कमरों के दरवाजे थे ।सामने एक कमरा,उसकी बगल में रसोंईघर और रसोंईघर के पास से पतला गलियारा गया था जहाँ बाथरूम और शौचालय बना हुआ था ।बाएं तरफ बरामदे से ही ऊपर मंजिल पर जाने के लिए सीढियाँ लगी हुई थीं।
"शिवा ये तुम्हारा कमरा है ।" अर्पिता ने बाएं तरफ बने दो कमरों में से पहले वाले कमरे की तरफ उँगली करके कहा तब तक श्रीनिवास शिवा का सामान लेकर भीतर आया और शिवा के कमरे में उसका सामान रखकर सिर झुकाए हुए सामने के रसोंई की बगल में बने कमरे में चला गया।
"शिवा तुम थक गई होगी ,उधर वो गलियारा देख रही हो !उधर बाथरूम है ,तुम जाकर हाथ-पैर धो लो और फिर आराम कर लो तब तक मैं तुम्हारे लिए चाय -नाश्ता तैयार करती हूँ ।"
अर्पिता ने कहा और वो विशाल के साथ शिवा के कमरे से आगे वाले कमरे में चली गईं।
शिवा अपने कमरे में गई - बडा़ हाॅल जैसा कमरा ,जिसमें एक तरफ बेड पडा़ हुआ था और दूसरी तरफ फर्श से थोडा़ ऊंचे पर एक बडा़ सा सोफा पडा़ था और उसके पीछे बडी़ सी खिड़की थी जो बरामदे में खुलती थी और उसपर पर्दा पडा़ हुआ था ।सोफे के सामने काँच की एक मेज पडी़ हुई थी जिसपर सुंदर सा फूलदान रखा हुआ था जिसमें बेला के फूल रखे हुए थे।
बेड के पास ही वार्डरोब थी ।शिवा का सामान बेड पर रखकर श्रीनिवास चला गया था ।शिवा ने अपना बैग खोलकर कपडे़ निकाले और बाथरूम चली गई।
शिवा हाथ -पैर धोकर आई तो देखा कि बरामदे के दाएं तरफ बने दोनों कमरों में ताला पडा़ हुआ था ,वो सोचने लगी - ये इधर के दोनों कमरों में ताला क्यों लगा हुआ है ?ये कमरे किसके हैं !!
शिवा सोचती हुई अपने कमरे की तरफ बढी़ तो उसके कानों में उसके कमरे के आगे वाले कमरे से धीमे-धीमे माँ व मामा के बात करने के स्वर पडे़ - विशाल , मेरा मन बहुत घबरा रहा है ,शिवा को अब सब पता चल जाएगा ,,, उसके मन को कैसा लगेगा सब जानकर !!
दीदी , एक न एक दिन तो उसे सब पता चलना ही है और वही समय आ गया है,, और उसे हम रोक न सकते हैं अतः जो होगा वो होने दो बस अपनी तरफ से कुछ न कहना !!
शिवा ने कमरे का पर्दा हटाया और भीतर आने को हुई ,,
" अरे शिवा अपने मामा के साथ अपने कमरे में चल मैं अभी तेरे व विशाल के लिए वहीं चाय व नाश्ता लाती हूँ ।" कहती हुई अर्पिता उठ खडी़ हुई और रसोंई में चली गई।
शिवा को ऐसा महसूस हुआ जैसे माँ न चाहती थीं कि वो इस कमरे में रुके ,,, क्योंकि वो कमरा माँ का था ।
"माँ , घर में कोई दिख न रहा ! आप यहाँ अकेली रहती हो !पापा कहाँ हैं ?" चाय व नाश्ता लाई अर्पिता से शिवा ने पूछा और अर्पिता ने सकपकाकर विशाल की तरफ देखा ।
"माँ ! क्या है जो आप दोनों मुझसे छुपा रहे हो !!पापा कहाँ हैं !!"शिवा ने अर्पिता का हाथ पकड़ कर हिलाते हुए पूछा ।
"अरे शिवा देखो ना ,मैंने तुम्हारी पसंद की आलू,प्याज की पकौडियां बनाई हैं ,तुम्हें बहुत पसंद हैं ना !"
अर्पिता ने शिवा की बात का उत्तर न देकर विशाल की तरफ देख कर फिर उसकी तरफ देख कर कहा ।
ये हो क्या रहा है !शिवा को समझ न आ रहा था मगर वो कुछ न बोलकर चुपचाप से चाय व नाश्ता करने लगी ।
"दीदी मैं सुबह ही जयपुर के लिए निकल जाऊँगा ।" विशाल ने चाय पीते हुए कहा।
"ठीक है ।"अर्पिता ने उत्तर दिया ।
"माँ घर में नौकर है फिर भी चाय व नाश्ता तुमने बनाया !श्री क्या करता है ?" शिवा ने पकौडी़ उठाते हुए कहा।
"उससे रसोंई का कार्य न कराती हूँ और बाकी सारा कार्य श्री करता है ।" अर्पिता ने कहा .......शेष अगले भाग में।