"कुछ भी !! पर मुझे तो लगता है कि रिक्शेवाले बाबा का कानपुर से कुछ तो नाता है ,, वरना वो ऐसे चौंकते नहीं पर वो कुछ बताते भी तो नहीं !!"शिवा ने कहा और दोनों अंदर प्रवेश कर गईं ।
" अनन्या ,शुभ्रा काकी को उनके किराए के रुपए देने हैं , तू अपने रुपए भी दे दे ,देकर आती हूँ फिर साथ में खाना खाते हैं ।"काॅलेज से आकर कपडे़ बदलते हुए शिवा ने अनन्या से कहा और अनन्या ने उसे अपने हिस्से के रुपए पकडा़ए और कपडे़ बदलने लगी ।
शिवा सीढियां चढ़कर ऊपर गई और "शुभ्रा काकी " आवाज लगाती हुई सीढियों के पास बने बरामदे में पहुँची।
सीढियां चढ़कर ऊपर बरामदा था और उसी बरामदे से भीतर जाने के लिए दरवाजा बना था ।बरामदे में झूला पडा़ हुआ था और बरामदे से लगे आँगन के मध्य जाल के चारों और किनारे -किनारे गमलों में पौधे रखे हुए थे जिसमें बहुत सुंदर गुलाब,गेंदा,सूरजमुखी इत्यादि के फूल लगे हुए थे ।बरामदे में एक तरफ एक पिंजरे लटका हुआ था जिसमें तोता जी विश्राम कर रहे थे ।बरामदे में ही एक कोने में बडा़ सा कांच का जलाशय था जिसमें रंगबिरंगी मछलियां तैर रही थीं।
शिवा बरामदे में पहुँची तो देखा कि लाल रंग की मैक्सी पहने,बालों का जूडा़ लगाए शुभ्रा काकी झूले पर बैठी थीं ,उनके हाथ में चाय का प्याला था और उनके सामने ही फर्श पर पडी़ टाट पर एक दुबली-पतली सी काले रंग की महिला मैली-कुचैली साडी़ पहने बैठी हुई थी । उसके सामने भी चाय का प्याला रखा हुआ था ।शुभ्रा काकी उस महिला से बात कर रही थीं।शिवा को देखकर शुभ्रा काकी ने कहा --
"अरे शिवा आ ना !इधर बैठ !" झूले पर अपने पास बैठने का इशारा शुभ्रा ने किया और शिवा झूले पर शुभ्रा के पास बैठती हुई बोली -"काकी ये इस महीने का हम दोनों का किराया ।"
"अरे !किराया कहीं भागा जा रहा था क्या !!अच्छा चाय पिएगी !!जा अंदर जाकर अपने लिए चाय छान ला ।"
कहने को तो शुभ्रा की रसोंई नीचे थी ,वहीं दोनों समय का खाना ,रसोंइया पकाता था मगर शुभ्रा को अपनी चाय अपने हाथ ही बनाकर पीने की आदत थी सो अंदर एक छोटी रसोंई में चाय का सामान रखे हुए थी ।
"नहीं काकी ,काॅलेज से आई हूँ तो बहुत जोरों की भूख लगी है ,सीधा खाना खाने ही जा रही हूँ ।"शिवा ने फर्श पर बैठी उस मैली-कुचैली महिला की तरफ देखकर कहा।
"अच्छा!अच्छा ! इससे मिलो ,तुम दोनों के आने से पहले यही मेरे अकेलेपन की साथी थी ।" शुभ्रा ने उस महिला की तरफ संकेत करते हुए शिवा से कहा और उस महिला ने शिवा की तरफ देखकर अपने मैले,पीले दांत फैलाकर मुस्कुराया ।शिवा ने भी हल्की मुस्कान छोडी़ ।
" अरे दांत फैला चुकी हो तो ये बताओ ,काम क्यों छोड़ दिया था !! कितना रास्ता देखा तेरा ,कहाँ मर गई थी ,आज जिंदा हुई तो मेरी याद आई तुझे और तू आज यहाँ प्रकट हुई !!" शुभ्रा ने उस महिला से पूछा ।शिवा नीचे जाने को उठ खडी़ हुई ।
" मैं क्या करती मैडम जी !! मेरा मरद टें बोल गया था ,,,और उसके बिना कुछ अच्छा ही न लगता था ,, वही तो था जो रिक्शा खींचकर अपना और मेरा पेट भरता था ,वो रिक्शा खींचता और मैं आपके यहाँ बरतन धोती,व सफाई कर देती ।अपनी छोटी सी दुनिया में हम बहुत खुश थे मगर मरद ही चला गया !!"वो औरत कहते कहते उदास होकर अपना सिर झुका ली थी और शिवा धीमे-धीमे कदमों से सीढियों की तरफ जाते हुए उसकी बात सुन रही थी ।
" अरेए !!ये तो बहुत बुरा हुआ मगर तेरा मरद गुजर गया और तूने मेरे यहां काम छोड़ दिया तो तेरा घर कैसे चलता है !! अपना पेट कैसे भरती है तू !!" शुभ्रा ने अफसोस प्रकट करते हुए उस महिला से पूछा ।
वो तो ,,, शिवा सुनते हुए नीचे उतर आई और अपने कमरे में आ गई ।
"शिवा देर लगा दी तूने ऊपर शुभ्रा काकी के पास ! वो अपने पास झूले पर बैठाकर चाय पिलाने लगी थीं क्या ??"अनन्या ने शिवा को आया देखकर पूछा ।
शुभ्रा की ऐसी ही आदत थी ,एक तो चाय की बडी़ शौकीन थी तो जब देखो उसके हाथ में चाय का प्याला होता और वो अपने झूले पर होती थी ।शिवा या अनन्या किसी काम से जातीं तो उनसे वह कहती जा अपनी चाय छान ला , और मेरे पास बैठकर पी आकर ।
"नहीं ,वो कह तो रही थीं चाय पीने को पर मैंने मना कर दिया ,वो उनकी कामवाली बाई आई थी ,, उससे वो बात कर रही थीं ,बता रही थीं कि तुम दोनों के आने से पहले यही मेरे अकेलेपन की साथी थी ,, अब तू जा और खाना लेकर आ फटाफट बहुत जोरों की भूख लगी है।" शिवा ने अपने बेड पर बैठते हुए अनन्या से कहा।
"खाना तो मैं ले आई थी ,तुम्हारी ही राह देख रही थी ,उठो और खाना खाओ आकर मेरे साथ ।" अनन्या ने शिवा से कहते हुए अपनी तरफ की मेज पर से खाने की थाली शिवा की तरफ बढा़ई और दोनों खाना खाने लगीं।
" शिवा , मेरी माँ ने मुझे ये कुर्तियां दी हैं देख कैसी हैं ? अनन्या ने खाना खाने के बाद अपना बैग खोलकर शिवा की तरफ कुछ कुर्तियां बढा़ते हुए कहा ।
"हाँ अच्छी तो हैं ।"शिवा देखते हुए बोली।
"मैडम जी ,शाम को चलते हैं ,इन्हें सिलवाने को डालना होगा ना !!" अनन्या कुर्तियां एक तरफ रखते हुए बोली।
"हा ! सिलवाने ,मतलब निराली बस्ती !!"शिवा ने एक लम्बी सांस छोड़ते हुए कहा और अपने बिस्तर पर पसर गई।
" सुन ना शिवा ,शाम को पैदल ही टहलते हुए चलते हैं ,टहलना भी हो जाएगा और कुर्तियां सिलवाने को भी पड़ जाएंगी ।"अनन्या ने शिवा का हाथ पकड़ कर उसे उठाते हुए कहा ।
"ओहो !! निराली बस्ती और वो भी पैदल !! ऐसा है मुझे अपनी टांगें तुड़वाने का कोई शौक नहीं है ,,, निराली बस्ती क्या पास है !! अपने यहाँ से अपना काॅलेज तीन किलोमीटर दूर है और अपने काॅलेज से विपरीत दिशा में निराली बस्ती भी इससे कम दूर न होगी ।"शिवा ने हाथ हिलाते हुए कहा और अनन्या कुछ सोच में पड़ गई।
"क्या हुआ !क्या सोचने लगी !अरे आटो से चलेंगे ना !!" शिवा ने कहा ।..........शेष अगले भाग में ।