छमिया ये सब देखकर समझ गई कि ये सब भाऊ के घरवाले हैं और भाऊ किसी वजह से अपना घर छोड़कर आए थे और ये लोग उन्हें मनाने आए हैं ।वो बैठे बैठे सब सुनने लगी।
"उठो,उठो,उठो,श्रीनिवास।" श्रीनिवास को उठाते हुए सुबोध चंद्र राव बोले -"ये सब क्या हो रहा है !आप लोगों को कैसे पता चला कि मैं यहाँ हूँ,, शिवा,अनन्या ,, तुम दोनों को कैसे पता चला कि मैं तुम दोनों का बाबा,नाना हूँ !! मैं यहाँ हूँ ये तो किसी को न पता था !!"
"मैं सब बताती हूँ बाबा ।" कहते हुए शिवा ने सुबोध चंद्र राव को सारा वृत्तांत बता डाला ।
" पापा जी ,घर वापस चलिए ।" अर्पिता ने सुबोध चंद्र राव से कहा ।
गीतिका भी बोली -"पापा घर चलिए ।"
सुबोध चंद्र राव अपना सिर पकडे़ हुए बोले -"कैसा घर !कौन सा घर और किसका घर ??? मैं तो दुनिया की नज़रों में मर चुका हूँ !!
आह !!मेरी शापित संतान ,,,
मेरी परवरिश में कहाँ कमी रह गई थी !! मेरी ये शापित संतान और गीतिका बच्चे ही थे जब इनकी माँ गुजर गई थीं , मैंने इन दोनों को बाप और माँ दोनों का प्यार देकर इनकी इच्छाओं की पूर्ति में ,इनके लालन-पालन में , कोई कसर न छोडी़ , पर इसने मुझे सदा निराश किया ,,
मेरी शापित संतान ने मुझे क्या क्या दिन दिखाए !!
दुनिया की नज़रों में मैं मर ही चुका हूँ ,, मुझे मेरे हाल पर छोड़कर तुम लोग घर लौट जाओ ।"
" नहीं पापा जी , इनकी करनी की सजा आप हम लोगों को न दीजिए ,पापा जी हमें आपकी जरूरत है ,घर चलिए पापा जी ।"अर्पिता रोते हुए बोली और गीतिका भी सुबोध चंद्र राव के घुटनों पर सिर रखकर रोते हुए बोली -"हाँ पापा घर चलिए ।"
सुबोध चंद्र राव ने गीतिका के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा -" अब बहुत देर हो चुकी है गीतिका,समझो ,मैं यहीं ठीक हूँ ,यही मेरी नियति है ।"
" बडे़ सर मुझे क्षमा कर दीजिए ,, मैं विवश था बडे़ सर !" श्रीनिवास गिड़गिडा़कर बोला ।
"तुम्हारी कोई गलती नहीं है श्रीनिवास ! मेरे बंधक बनाए जाने के बाद मेरी शापित संतान ही तुम्हारी मालिक थी और तुम्हें अपने मालिक का हुक्म तो बजाना ही था ,,जाओ तुम सब घर लौट जाओ ।"श्रीनिवास से कहते हुए सुबोध चंद्र राव ने सबसे कहा ।
बाबा जी उस इंसान की सजा ,जिसको मुझे पापा कहते हुए भी शर्म आ रही है, आप हम सबको मत दीजिए ,, पापा की तरफ से मैं आपसे क्षमा माँगती हूँ ,, उनके कारण आप मुझे व अनन्या को अपने स्नेह से वंचित न कर सकते हैं !
आप घर नहीं चलेंगे तो पापा तो अपनी मनमानी करते ही रहेंगे और माँ और मैं बरबाद हो जाएंगे !! बुराई जीत जाएगी बाबा ,, आप चाहते हैं कि आपकी खून पसीने की कमाई पर पापा गुलछर्रे उडा़ते रहें !!
घर चलकर आपको अपना स्थान वापस लेना है बाबा ,,
,, आपको घर चलना ही होगा वरना मैं, अनन्या ,माँ और गीतिका बुआ यहीं आपके समक्ष आत्मदाह कर लेंगे ,, क्यों अनन्या !!" शिवा ने रोते हुए सुबोध चंद्र राव से कहते हुए अनन्या की तरफ देखकर कहा और अनन्या भी आगे बढ़कर बोली -"हाँ नाना जी ,आपके बिना हम सब अधूरे हैं आप नहीं चलेंगे तो हम सब आत्मदाह कर लेंगे ।"
" ऐसा मत कहो मेरी बच्चियों ,, मेरी शापित संतान ने मुझे जीते जी मार डाला है और इस चलती फिरती लाश को घर ले जाकर क्या करोगी तुम सब !!
मैं यहीं सही हूँ ।" सुबोध चंद्र राव बोले ।
" पापा जी अगर आप घर नहीं चलेंगे तो मुझे यही लगेगा कि आप इनके किए की सजा मुझे दे रहे हैं ,, घर चलिए पापा जी ,,, " अर्पिता हाथ जोड़कर रोते हुए बोली और शिवा ने कहा -" बाबा वो आपका घर है आप घर चलें और मेरे पिता ने जो किया उसकी सजा तो उन्हें मिलकर रहेगी ,घर पहुँचने के बाद उनकी रिपोर्ट करूँगी और कडी़ से कडी़ सजा दिलवाऊँगी ।"
"नहीं शिवा ,तुम ऐसा कुछ न करोगी ,, औलाद कुमार्गी होकर अपने माँ और बाप को प्रताडि़त कर सकती है मगर वही कार्य माँ और बाप करें तो उनमें और उनकी औलाद में अंतर क्या रह जाएगा !!
मैं बाप होकर औलाद को कारागार भेजकर उसका घर बरबाद कर दूँ ये कहाँ उचित है ! " सुबोध चंद्र राव ने कहा ।
" आपकी बात से सहमत हूँ बाबा ,मगर शरीर के जिस हिस्से में कैंसर हो जाता है उस हिस्से को काटकर स्वयं से अलग किया ही जाता है ,वरना पूरे शरीर में विष फैल जाता है ,पापा हमारे जीवन के वही कैंसर हैं जिन्हें अपने से काटकर अलग करना अत्यावश्यक है ,, ये कार्य बहुत पहले हो जाता तो आपको ये दिन न देखने पड़ते ।"
अनन्या,अर्पिता,गीतिका सबने शिवा की बात से सहमति जताई और सुबोध चंद्र राव से घर वापस चलने के लिए बिलख बिलखकर मिन्नतें करने लगे ।
सुबोध चंद्र राव सबके आँसुओं और व्यथा को देखकर बोले -"ठीक है ,मैं चलता हूँ घर ,चलो ।"
सुबोध चंद्र राव के ऐसा कहते ही सब हर्षित होकर वापस कानपुर जाने के लिए उठे और सुबोध चंद्र राव भी उठकर खडे़ होकर दो कदम बढाए ही थे कि छमिया ने अपनी बडी़ बडी़ आँखों में मोटे मोटे आँसू भरकर कहा -"भाऊ मुझे किसके सहारे छोड़कर जा रहे हो ??"
" तुम्हें छोड़कर कैसे जा सकता हूँ छमिया !! मेरे बुरे दिनों की तू ही तो साथी रही ,, तू भी साथ चल और मेरे साथ मेरे घर में रह ।" सुबोध चंद्र राव बोले ।
सब कानपुर के लिए निकल लिए थे और उधर कानपुर में सुबोध चंद्र राव की शापित संतान ,शिवा के पिता घर पर ताला देखकर क्रोध से आग बबूला हो रहे थे कि सबके सब कहाँ चले गए!!
उसने श्रीनिवास को फोन मिलाया , मगर श्रीनिवास ने फोन ही काट दिया जिससे उसके क्रोध का पारावार न रहा और वो क्रोध में घर के बाहर टहलने लगा ।
सुबोध चंद्र राव को लेकर सब घर पहुँच गए और उसे घर के बाहर टहलता हुआ पाया ।उसने सबके साथ सुबोध चंद्र राव को देखा तो वो हैरान रह गया कि ये वापस आ गए !!और श्रीनिवास की तरफ आग्नेय नेत्रों से देखा मगर श्रीनिवास बोला -" ऐसे घूर कर मत देखो मुझे ,, तुम्हारा खेल अब खत्म हो चुका है ।"
शिवा और अनन्या ने रास्ते में ही पुलिस को फोन करके सारी बात बता दी थी और कुछ क्षण पश्चात पुलिस आ गई और सुबोध चंद्र राव को मृत घोषित कर उनकी चल व अचल संपत्ति का दुर्पयोग करने के आरोप में शिवा के पिता को गिरफ्तार करके ले गई।
अगले दिवस एक नवीन रवि उदय हुआ था ।सुबोध चंद्र राव के जीवन पर ,शापित संतान का जो ग्रहण लगा था वो मिट चुका था और उनका महाविद्यालय जिसपर नकल कराने व अनैतिक गतिविधियां संचालित करने का जो दाग लगा था वो धुलकर पुनः शिक्षा के केंद्र के रूप में प्रसिद्ध हो गया था जहाँ नकल के लिए कोई स्थान न था ।
समाप्त।