"नहीं ,वो नहीं मैं सोच रही थी कि रिक्शेवाले बाबा कितनी मेहनत करते हैं ,दिन रात रिक्शा खींचते हैं तब जाकर उनके घर चूल्हा जलता होगा ।"अनन्या ने कहा।
"हाँ वो तो है पर हम कर भी क्या सकते हैं !!"शिवा बोली।
"कर सकते हैं ना !शुभ्रा काकी से बात करते हैं कि वो उन रिक्शेवाले बाबा को रख लें ,उनसे छोटा-मोटा काम करा लें ,, उनके रहने की फीस हम दे देंगे ,जिससे ये होगा कि रिक्शे वाले बाबा को उतनी मेहनत न करनी पडे़गी।"अनन्या ने कहा ।
"हाँ पर शुभ्रा काकी के पास काम करने के लिए रसोंइया है ,वो सारा काम करता है तो ऐसे में वो किसी और को क्यों रखेंगी !!" शिवा ने आशंका जताते हुए कहा पर अनन्या बोली -"एक बार बात करने में क्या हर्ज है !!" और दोनों शुभ्रा के पास गईं और उनसे अपनी बात कही मगर शुभ्रा ने कहा -"मैं तुम दोनों की भावनाएं समझती हूँ मगर मैं यहाँ अकेली रहती हूँ तो किसी अपरिचित को कैसे रख लूँ और वैसे भी पूरे लुधियाना में जाने कितने बुजुर्ग रिक्शाचालक होंगे तो किस किस को तुम दोनों यहाँ रख पाओगी !!"
शुभ्रा की बात से निराश होकर दोनों वापस अपने कमरे में आ गई थीं और सोचने लगी थीं कि हम चाहकर भी रिक्शेवाले बाबा के लिए कुछ न कर पा रहे हैं !!
अगले दिन दोनों काॅलेज से जल्दी निकलकर निराली बस्ती पहुँच कर कुर्ती डालकर वापस आ रही थीं कि शिवा की नज़र फिर उसी रिक्शे पर पडी़।
"अनन्या देख ये रिक्शा , रिक्शेवाले बाबा का ही लग रहा है !!"शिवा ने कहा ।
"नहीं तो , तुझे यही लगता है "अनन्या ने कहा तब तक उन्हें एक औरत अंदर जाती हुई दिखी जिसका चेहरा शिवा और अनन्या देख न पाई थीं और बाहर रिक्शेवाले बाबा दिखे जो उस औरत को कह रहे थे -अरे छमिया जरा चाय बना देना ।"
"अरे ये तो रिक्शेवाले बाबा हैं ,चल ना अनन्या मिलने चलते हैं ।"शिवा बोली ।
"नहीं शिवा उन्हें हमें यहाँ उनके यहाँ देखकर पता नहीं कैसा लगे !!
एक काम करते हैं कल काॅलेज गोलकर करके यहाँ आते हैं और कुर्तियां भी ले लेंगे और घर में जो औरत है उससे रिक्शेवाले बाबा के बारे में कुछ जान भी लेंगे ,वो स्वयं तो कुछ बताते नहीं हैं ।"अनन्या ने कहा और दोनों योजना बनाकर वापस लौट आईं ।
अगले दिवस वे दोनों काॅलेज जाने को तैयार हुईं और नित्य की तरह रिक्शेवाले बाबा आए और उन दोनों को उनके काॅलेज छोड़कर निकल गए ,उनके जाते ही शिवा और अनन्या ने दूसरा रिक्शा किया और निराली बस्ती के लिए निकल लीं ।निराली बस्ती पहुँचकर दोनों ने रिक्शेवाले बाबा के घर के पास रिक्शा रुकवाया और उतर कर खडी़ हो गईं ।
" घर के बाहर वो औरत तो है नहीं ,, आवाज लगाती हूँ।" शिवा ने अनन्या की तरफ देखकर कहा और आवाज लगाई -" घर में कोई है ?"
अंदर से वो औरत निकली और वो औरत शिवा को देखकर और शिवा उस औरत को देखकर चौंक गई ।
"अरे अनन्या ये तो वही हैं जो ऊपर शुभ्रा काकी के पास बैठी थीं !" शिवा ने अनन्या से कहा और अनन्या मुस्कुरा दी ।
"आप यहाँ ?" वो औरत शिवा की तरफ देखकर हल्का मुस्कुरा कर आश्चर्य से बोली ।
"हाँ वो आपसे एक काम था ,क्या हम बैठकर बात कर सकते हैं ?" शिवा ने उस औरत से कहा ।
"हाँ काहे नहीं , पर यहाँ धूप की वजह से गर्मी है ,, अंदर आएंगी क्या ?" उस औरत ने अपना एक हाथ अपनी कमर पर रखे हुए पूछा ।
"नहीं ,यहीं सही है ।"अनन्या ने कहा ।
"अच्छा।"कहकर उस औरत ने खपरैल के नीचे बाँस की चारपाई डाल दी और उसे अपने साडी़ के पल्लू से पोछते हुए बोली -" बैठिए "।
शिवा और अनन्या चारपाई पर बैठ गईं और वो औरत वहीं उनके पास जमीन में बैठ गई और शिवा की तरफ देखकर बोली -"बताइए ,आपको हमसे क्या बात करनी थी !!"
"देखिए हम जो बात आपसे करने आए हैं वो क्या इस विश्वास से कर सकते हैं कि आप वो बात अपने तक ही रखेंगी ,हम यहाँ आए थे ये वो रिक्शेवाले बाबा से नहीं बताएंगी ?" शिवा ने पूछा ।
"आप तो हमको घबड़वा रही हैं ,ऐसी क्या बात है !!" वो औरत आश्चर्य से बोली ।
"नहीं बस ऐसे ही ,घबराने की कोई बात ही नहीं है !" शिवा ने कहा ।
"अच्छा बताइए आप "वो औरत बोली।
" आपकी उम्र रिक्शेवाले बाबा से कुछ ज्यादा ही कम न लगती है !!" अनन्या ने पूछा ।
"ऐऐऐं" उस औरत ने प्रथमतः कुछ न समझने की स्थिति में भौहें सिकोड़कर और मुँह फैलाकर कहा पर फिर कुछ समझते हुए कानों पर हाथ रखकर बोली -"राम !राम!राम!! वो हमारे भाऊ हैं !हमारे मुँहबोले भाऊ ,,, वो ,वो कहते हैं न ,भाई,, हमारे मुँहबोले भाई हैं वो ।"
"पागल, इनके आदमी गुजर गए हैं ,शुभ्रा काकी से ये बता रही थीं तब मैंने सुना था ।"शिवा अनन्या के पैर पर अपना हाथ मारते हुए बोली ।
"उप्स ! क्षमा चाहती हूँ ।"अनन्या ने हाथ जोड़ते हुए कहा।
" हम लोग तो ये जानना चाहते थे कि वो रिक्शेवाले बाबा इतना उदास और बुझे बुझे क्यों लगते हैं ! हमने उन्हें कभी मुस्कुराते हुए भी न देखा है ,, कुछ तो है जो वो अपने अंदर समेटे हैं मगर कहते नहीं हैं ,, हमारी उनसे पूछने की कभी न हिम्मत हुई और न ही उन्होने कभी अपने बारे में हमें बताया मगर उनसे एक अपनापन सा हो गया है तभी जानना चाहते हैं ।"अनन्या ने कहा ।
" वो तो हमें भी लगता है पर क्या है ना कि हम भी कभी उनसे कुछ पूछे नहीं ,, ऐसे किसी के जीवन में तांकझांक करने को कुछ पूछना अच्छा लगता है क्या !! उन्हीं की वजह से तो हमारी रोटी का प्रबंध होता है और हम उनके छुपे हुए घाव कुरेंदे !!ये तो सही नहीं है !!"
उस औरत ने अपना हाथ हिलाकर कहा और शिवा और अनन्या एक दूसरे की तरफ देखने लगीं और फिर शिवा ने कहा -" हमारा इरादा भी उनके मन की बातों को कुरेदना नहीं है पर हम उन्हें ऐसे उदास देख न पा रहे हैं इसलिए जानना चाहते हैं , अच्छा वो सदा से आपके साथ रहते आए हैं क्या ?"
"अरे नहीं ,, वो तो ये उस रात की बात है जिस रात मेरे मरद टें बोल गए थे और हमें उनके बिना कुछ भी अच्छा न लग रहा था तो उस रात मैंने सोचा कि मैं उनके बिना जी तो पाउंगी नहीं तो क्यों न ट्रेन के आगे कूदकर अपने प्राण खो दूँ तो मैं रोते हुए स्टेशन की तरफ बढ़ चली थी ।
स्टेशन पहुँचकर मैं वहाँ एक बेंच पर बैठ गई और ट्रेन आने का रास्ता देखने लगी कि ट्रेन आए और मैं पटरी पर लेट जाऊं और मेरी जीवन लीला खत्म हो जाए ।
शिवा और अनन्या उस औरत की बात बहुत ध्यान से सुन रही थीं और उसकी बात सुनते हुए उन्हें ऐसा लग रहा था कि ये जो भी बता रही है सब उनके सामने ही घटित हो रहा हो ।
वो रात का समय और तेज हवा चल रही थी ।स्टेशन पर बहुत से आदमी,औरत और बच्चे ट्रेन के आने की राह देखते वहीं टहल रहे थे और मेरे रोते हुए चेहरे पर भी बीच-बीच निगाह डाल लेते थे जिसके कारण मुझे लग रहा था कि ट्रेन आने पर मैं पटरी पर कैसे लेट पाउँ !!
तो मैं वहाँ से उठकर पीछे की तरफ जाकर एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर रोने लगी ।
तभी मैंने देखा कि एक व्यक्ति बेंच पर बैठा बुदबुदा रहा है
और उसकी आँखों में आँसू थे ,मेरी हिम्मत न हुई कि मैं उससे पूछूँ कि आप क्यों रो रहे हो !! पर उसे रोता देखकर मुझे और रोना आया और मैं जोर जोर से रोने लगी और कहने लगी.......शेष अगले भाग में ।