इंसान अपने भीतर किसी बात का बोझ लेकर कैसे चल लेता है ,,, मन की गाँठें किसी से तो खोलकर अपने मन का बोझ हल्का कर सकता है ,, उसे करना चाहिए वरना उस बोझ के तले सबकुछ दबकर रह जाता है ,, होंठों की हँसी,आँखों की चमक, चेहरे की ताजगी ,, सब कुछ
"बस!!बस!!मुझे यहीं उतरना है ,, "शिवा ने आटो वाले से कहा और पर्स से रुपए निकाल कर आटो वाले को देती हुई सड़क पार कर नानी के घर की तरफ चली ।
नाना जी घर के बाहर बने छोटे से लाॅन में पौधों को पानी दे रहे थे ।
उसे देखते ही बोले -"आ गई मेरी शिवा ,, चलो भीतर चलो , तुम्हारी नानी तुम्हारी ही राह देख रही थी ।"और वो हल्का सा मुस्कुराकर नाना से हाथ जोड़कर अभिवादन करती हुई घर के भीतर गई और आँगन में लगे चापाकल पर हाथ -मुँह धोने लगी ।
आँगन में ही बने रसोंई घर से मामी बुदबुदाते हुए निकलीं -आ गईं मेरी छाती पर फिर मूँग दलने !!
नानी के छोटे से घर में बस आँगन ही थोडा़ सा बडा़ था बाकी पतले से बरामदे में खुलते घर के चारों कमरे छोटे ही थे ।
आँगन में नानी अपने कमरे के सामने चारपाई डाले हुए आरती करने के लिए रुई की बाती बना रही थीं ।वो मामी का बुदबुदाना सुन न पाईं और उसे देखकर बोलीं -" आजा मेरे पास बैठ आकर "और मामी से बोलीं -चेतना अब चाय और नाश्ता ले आओ ,मैं अपनी नातिन का ही रास्ता देख रही थी कि वो आ जाए तो उसके साथ ही चाय ले लूँ "और बाती एक तरफ रखकर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं -"कोई दिक्कत तो न हुई आने में !!तेरे मामा किसी काम से बाहर गए तो तुझे लेने न आ पाए !"
"नहीं नानी ,कोई दिक्कत न हुई " शिवा कहते हुए नानी के कमरे में अपना बैग रखने चली गई।
अनन्या बरेली पहुँच गई थी ।
बरेली में उसका भी घर मुख्य सड़क पर था ।उसके पिता विद्युत विभाग में थे ,अच्छी-खासी आमदनी थी तो घर भी बडा़ और अच्छे तरीके से बनवाया था ।स्टेशन पर उसके पिता उसे लेने आए थे और अपने पिता की गाडी़ से वो अपने घर पहुंची थी । घर पहुँचने पर दरवाजा अनन्या की माँ गीतिका राव ने खोला था । लम्बी ,छरहरी काया की गीतिका देखने में आकर्षक व्यक्तित्व की थी और उसने अनन्या के मनपसंद धानी रंग की साडी़ पहने हुए मुस्कुराकर दरवाजा खोला था ,और बोली थी -" आ गई मेरी लाडो अब इन दो चार दिनों में हम माँ और बेटी खूब मजे करेंगे ।"
अनन्या माँ के चेहरे पर उसके आने की खुशी देख रही थी।
वो अंदर आते -आते सोचने लगी कि माँ उससे प्यार तो बहुत करती हैं पर उसे इतना भी नहीं बता सकतीं कि वो कभी मायके की चर्चा क्यों न करती हैं !!
कितनी ही बार तो उसने माँ को छुपकर आँसू बहाते देखा था जिससे स्पष्ट था कि उन्हें अपने घर की याद आती है मगर वो कह क्यों न पातीं हैं ये उसकी समझ से परे था ।
"कहाँ खोई हुई हो लाडो ??" अनन्या के हाथ से उसका बैग लेते हुए उसकी माँ गीतिका ने पूछा मगर अनन्या ,"कुछ नहीं " कहकर चुप हो गई ।
शिवा मायूस हो गई थी कि इस बार मामा के घर पर न होने से इस बार वो मामा से पूछ ही न पाएगी कि माँ उसे उसके घर कानपुर क्यों न आने देती हैं !!
देखते ही देखते दोनों की छुट्टियां खत्म हो गई थीं और अगले दिन दोनों को वापस लुधियाना जाना था ।मामा के न होने से शिवा का पूछना न बन पाया था और अनन्या को तो माँ से पूछने का समय ही न मिला था ,जब भी उसने पूछना चाहा था तब तब या तो माँ को कोई काम याद आ गया था या अनन्या से मिलने ही उसकी कोई न कोई सहेली आ गई थी ।कुल मिलाकर दोनों के हाथ निराशा ही लगी थी और अगले दिवस दोनों वापस लुधियाना के लिए निकल ली थीं और नियत समय पर लुधियाना शुभ्रा काकी के घर भी पहुँच गई थीं ।
दोनों ही सफर की थकान की वजह से अपने अपने बिस्तर पर आराम करने लगी थीं ।अगले दिवस फिर काॅलेज जाना था।
सफर की थकान के कारण दोनों को ही बिस्तर पर पड़ते ही गहरी नींद आ गई थी और सीधे सुबह चिडियों की मधुर चहचहाहट से ही उनकी आँख खुली थी ।दोनों नहा-धोकर नाश्ता करके ,तैयार होकर काॅलेज के लिए जाने को कमरे से बाहर आ गई थीं जहाँ रिक्शेवाले बाबा अपना रिक्शा लिए उन्हीं की प्रतीक्षा कर रहे थे ।वे दोनों रिक्शे पर बैठकर काॅलेज के लिए चल दीं ।शिवा बहुत चुप थी जैसे उसके मन में कुछ चल रहा हो ।अनन्या ने उसे चुप देखकर कहा -"शिवा ,तू क्या सोच रही है !! कल तो इतनी थकावट थी कि एक दूसरे का हम हाल-चाल ही न पूछ पाए ,,, हा !हा!हा! " और हँसने लगी ।
"हाँ वही तो !!" शिवा बोली ।
"चल कोई बात नहीं अब बता ,कुछ पता चला तुझे !!" अनन्या ने उससे पूछा ।
शिवा मायूस होकर बोली -"नहीं यार ,, इस बार तो निराशा ही हाथ लगी ,तू बता तू पूछ पाई अपनी माँ से !!"
"नहीं ना ! जब भी पूछने चलती मेरी कोई न कोइ नासपीटी सहेली आ धमकती थी और मेरा उनसे पूछना रह ही जाता था!!"अनन्या ने कहा ।
" इस बार हो गया अनन्या ,अगली बार मैं मामा के साथ कानपुर जा कर ही रहूँगी !" शिवा ने अनन्या से दृढ़ निश्चय करते हुए कहा ।
"कककानपुर,,, रिक्शेवाले के मुँह से निकला और रिक्शा चलाते उसके हाथ यकायक थम गए
शिवा और अनन्या ने एक दूसरे की तरफ देखते हुए रिक्शेवाले बाबा की तरफ देखा और शिवा ने हैरानी से रिक्शेवाले बाबा से पूछा -"क्या बात है बाबा !आप कानपुर का नाम सुनकर ऐसे चौंक क्यों गए !!"
"नननहीं ,, कुछ नहीं बिटिया !!" रिक्शेवाले बाबा ने कहा और पुनः रिक्शा चलाने लगे ।
शिवा और अनन्या दोनो एक बार फिर एक दूसरे को देखने लगीं और अपने अपने मन में सोचने लगीं कि कुछ तो बात है ,, जो रिक्शेवाले बाबा कानपुर का नाम सुनकर चौंक गए और उनका रिक्शा चलाना रुक गया ।
दोनों का काॅलेज आ गया था और वे रिक्शे से उतर कर अंदर जाने लगीं ।
"शिवा देख मैंने तुझसे कहा था ,, पक्का कानपुर में कुछ भूतिया है ,,, देखा नहीं रिक्शेवाले बाबा कानपुर का नाम सुनते ही कैसे चौंक गए ! " अनन्या ने शिवा से कहा।............शेष अगले भाग में।