गधे की औलाद, मुझसे प्रश्न करेगा!!चटाआक !!
गाल सहलाना छोड़ और कान खोलकर सुन ले मैं जो करने जा रहा हूँ उसमें अगर मेरे साथ रहने में आनाकानी की तो तेरी चमडी़ उधेड़कर कुत्तों को खिला दूँगा,, अब जा और जो कहा है कर ,,,,
जी सर,,,,
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बडे़ सर ,,, बडे़ सर !!
अरे श्रीनिवास तुम !कुछ काम था क्या ??
बडे़ सर मेरे कमरे के अंदर जो एक दरवाजा बाहर सड़क पर खुलता है वो दरवाजा तोड़ कर कोई मेरे कमरे में घुस आया है ,, मैं किसी तरह उससे बचकर इधर से दरवाजा बाहर से बंद करके आया हूँ शीघ्र चलिए ,,, ।
क्या !! वो दरवाजा तो बहुत मजबूत है !उसे कोई कैसे तोड़ सकता है ,,, चलो देखता हूँ चलकर !!
बडे़ सर अपने कमरे से उठकर मेरे साथ चल दिए थे और मैं उनके पीछे पीछे चलते हुए सोच रहा था कि सर करने क्या वाले हैं ,,
बडे़ सर मेरे कमरे के दरवाजे पर पहुँचे थे और मैंने अपने कमरे के दरवाजे की कुण्डी खोली और बडे़ सर भीतर प्रवेश किए ही थे कि पीछे से छोटे सर उनके गले में हाथ डालकर जबरन घसीटते हुए मेरे कमरे के अंदर बने स्नानागार में ले गए थे जहाँ उन्होने वहाँ पहले से ही मेरे कमरे में रखी हुई कुर्सी डाल रखी थी ,,, और उसपर बैठा दिया था ,, बडे़ सर चिल्लाते हुए कह रहे थे --"क्या कर रहे हो !!
छोडो़ मुझे ,, पर सर उन्हें कसकर जकडे़ हुए मुझसे बोले थे -" तू खडा़ खडा़ क्या कर रहा है ! तेरे कमरे में एक मजबूत रस्सी रखी है उसे फौरन उठाकर ला और इन्हें बांधने में मेरी मदद कर तब तक मैं इनके मुँह पर टेप चिपकाता हूँ ,,,
मरता क्या न करता ,, मैं रस्सी उठाने गया तब तक सर बडे़ सर के मुँह पर टेप चिपका चुके थे और बडे़ सर हूँम् हूँम् कर रहे थे ।
मेरे हाथ से रस्सी लेकर वो बडे़ सर को बांधने लगे थे जिसमें मुझे भी उनकी मदद करनी पडी़ थी ।
बडे़ सर को अच्छी तरह बाँधकर सर उनसे बोले थे -"सबकुछ गीतिका के नाम करेंगे !! अब देखते जाइए मैं क्या करता हूँ " और मुझसे बोले थे -" इनकी रस्सी खुलनी नहीं चाहिए और तू दोनों समय रसोंई समेटकर अपना खाना अपने कमरे में लाकर खाता है ना ,, अबसे अपने खाने के साथ साथ इनका भोजन भी यहाँ लेकर आना ,, मैं इनको खाना खिलाकर फिर इनका मुँह बंद किया करूँगा ।
और किसी को अगर भनक भी लगी कि ये यहाँ हैं तो तेरी खैर नहीं ,,
ये यहीं खाएंगे और इस स्नानागार से ही शौचालय भी जुडा़ है ,,,और इनको कुछ नहीं चाहिए,, समझा ,, " इतना कहकर सर स्नानागार का दरवाजा बंद कर चले गए थे और मैं रात भर रोता रहा था ये सोचकर कि सर ये सही नहीं कर रहे हैं ,,,
उस दिन से सर बडे़ सर को दोनों समय खाना खा लेने को ही उनका मुँह खोलते थे और फिर उनका मुँह बाँधकर स्नानागार के दरवाजे पर ताला डालकर चले जाते थे ।सुबह के समय बस इतनी देर को स्नानागार खोलते जितनी देर में पहले बडे़ सर और बाद में मैं स्नान कर सकूँ !!
मैं जब स्नानागार में स्नान करने जाता तो बडे़ सर मुझे कातर निगाहों से देखते ,उनकी आँखों में आँसू होते थे , जैसे वो मुझसे कहना चाहते थे कि श्रीनिवास मुझे खोल दो ,, उन्हें ऐसे देखकर मेरा ह्रदय रोता था पर मैं उन्हें कैसे खोल सकता था!!
मेरा बहुत मन होता कि किसी तरह मैडम या गीतिका दीदी यहाँ आ जातीं तो वो बडे़ सर को खोल देतीं मगर न मैडम और न ही गीतिका दीदी का इधर कुछ कार्य था जो वो यहाँ आतीं ,,,, बहुत समय तक ऐसे चला फिर जिस दिन बडे़ सर के निधन की सूचना सर ने घर में दी उसके एक दिन पहले सर मेरे कमरे में आए और बडे़ सर के पास जाकर बोले -" सुन बुड्डे ,, अब तू सुन मैं आगे क्या करने वाला हूँ ,, तुझे बता दूँ वरना तू कहेगा कि मुझे बताया तक नहीं !!
अब मैं तुझे दुनिया की निगाहों में मरा साबित करने जा रहा हूँ,, उसके बाद तुझे कहीं घुमाने ले चलूँगा ,, एक ही जगह ,एक ही स्थिति में बैठे बैठे बोरियत तो होती ही है,,समझ सकता हूँ ,,, हा हा हा
हँसते हुए सर मुझे अपने साथ लेकर वहाँ से निकल लिए थे और रास्ते में मुझसे कहा था -"श्रीनिवास सुन , इस बुड्डे के डीलडौल का एक आदमी मैंने देखा है , उसे मैंने मिलने के लिए बुलाया है ,, वो मेरी प्रतीक्षा में एक सूनसान सड़क पर खडा़ होगा उसे अपनी गाडी़ से उडा़ने वाला हूँ ,, तुम जाकर उसे अपनी बातों में उलझाओ और मैं अपनी गाडी़ तेज रफ्तार में लाकर उसके ऊपर चढा़ दूँ ,,,
"ऐसा मत करिए सर ,मैं आपके हाथ जोड़ता हूँ " कहकर मैं रोने लगा था क्योंकि सर का खेल मेरी समझ में आ गया था मगर सर ने एक बार फिर मुझे थप्पड़ जड़ते हुए कहा था -" जैसा कहता हूँ वैसा कर वरना उसके साथ -साथ तेरा भी काम तमाम कर दूँगा ।"
मैं सर की मार से बहुत डरता था क्योंकि मैं देखता ही था ,सर जुआ खेलने जाते थे ,जीत जाते तो सीना तान कर वहाँ से निकलते मगर हार जाते तो जीतने वाले को मार मार कर अधमरा कर देते थे ।उनकी मार के भय से जो जीत रहा होता वो भी जानबूझ कर हार जाता था ।
अपनी नियति को कोसते हुए मैंने सर की बताई सूनसान सड़क पर जाकर उस आदमी को अपनी बातों में उलझाया और सर ने पीछे से तेज रफ्तार से अपनी गाडी़ से उस आदमी को ठोंक दिया ,उसके बाद सर ने उस आदमी के चेहरे को बुरी तरह खराब करके उसे बडे़ सर के कपडे़ पहना दिए और घर फोन किया था ।
घर में उस आदमी के शव को सबने बडे़ सर का पार्थिव शरीर समझा और रोना बिलखना प्रारंभ कर दिया और उधर सर ने बडे़ सर के मुँह में कपडा़ ठूंस कर उन्हें अपने साथ दबोच कर लाकर एक कोने में खडे़ होकर दिखाया कि देख बुड्डे सब तुझे मरा समझ चुके हैं !! मैं भी उन दोनों के साथ था , बडे़ सर को ये सब देखकर बहुत धक्का लगा........शेष अगले भाग में।