कितनी भीड़ है लोगों की !!मैं कैसे ट्रेन के आगे कूदकर अपनी जान दूँगी !!
उस आदमी ने सुना तो मेरे पास आकर बोला कि आप मरना क्यों चाहती हैं !!
मैंने रोते हुए सब बताया तो वो सुनकर उदास होकर आँसू बहाने लगा ।मैंने उससे पूछा कि आप क्यों रो रहे हो तो बोला कि मेरा कोई नहीं है ,,मैं कहाँ जाऊँ ,,यहाँ मुझे कोई नहीं जानता है ,,,
मैंने उससे कहा कि आप अच्छे भले घर के लग रहे हो ,,आपको दिक्कत न हो तो आप मेरे गरीबखाने चलो ,, मैं एक जगह बरतन साफ करके अपना पेट पालती थी, आप चलो ,मैं जो रूखासूखा खाती हूँ उसमें आप भी खा लेना ,मेरा मरद टें बोल गया तो रिक्शा तो मैं खींच न सकती हूँ ।
उसने कहा कि अगर आपको दिक्कत न हो तो मैं आपका रिक्शा खींचकर घर चलाऊँगा बहन,आप काम न करना और मैं उन्हें घर ले आई ।
तब से वो मेरे साथ रहते हैं । शिवा और अनन्या ये सब सुनकर घर आ गईं और दोनों रिक्शेवाले बाबा के बारें में बातें कर रही थीं कि उनके कमरे की खिड़की के बाहर से आवाज आई --शिवा ,अनन्या
शिवा ने खिड़की से देखा तो रिक्शेवाले बाबा खडे़ थे ।
शिवा और अनन्या अपने कमरे से उठकर बाहर आईं और शिवा ने रिक्शेवाले से पूछा -"बाबा आप यहाँ ,इस समय !! कोई काम था क्या !!"
उसे घबराहट हुई कि कहीं उस औरत ने रिक्शेवाले बाबा को बता तो न दिया कि दो लड़कियाँ आई थीं और आपके बारे में पूछताछ कर रही थीं !!
रिक्शेवाले ने शिवा और अनन्या की तरफ देखकर फिर निगाहें झुकाकर दीन भाव से कहा -" आप दोनों को काॅलेज की छुट्टी के बाद मेरे रिक्शे पर न आना था तो बता देतीं ,, मैं जितनी देर वहाँ खडा़ आप दोनों की प्रतीक्षा करता रहा उतनी देर में कुछ सवारी ही मिल जातीं मुझे !"
अरे राम ! शिवा ने अनन्या की तरफ देखते हुए अपने मन में कहा - हम दोनों अपनी योजना बनाने में ये तो भूल ही गए कि काॅलेज के बाहर दो बजे रिक्शेवाले बाबा हमारी प्रतीक्षा करेंगे ,,, ये तो बडा़ गलत हो गया !हमारी वजह से रिक्शेवाले बाबा का नुकसान हो गया !!
अनन्या ने शिवा की तरफ देखते हुए बात सँभालते हुए कहा -" बाबा दरअसल आज हमारे सर आए न थे इस वजह से हमें काॅलेज से जल्दी लौटना पडा़ और ऐसे में हम आपको सूचित कैसे करते !! आप यहीं रुको मैं कुछ रुपए लेकर आती हूँ आप रख लें ।" और वो जाने को मुडी़ पर रिक्शेवाले ने कहा -"नहीं !नहीं बिटिया , अब इसमें तो आप दोनों की भी कोई गलती नहीं है !! और रुपए किस बात के लूँ ,, चलता हूँ ।" और वे सिर झुकाकर जाने लगे ।
" यार हम तो भूल ही गए कि अपनी योजनानुसार हमें दो बजने वाले हों तब काॅलेज पहुँचना है और वहाँ से रिक्शेवाले बाबा के रिक्शे पर आना है !! हम तो उस औरत से मिलकर दूसरा रिक्शा करके अपने कमरे पर आ गए और हमारी वजह से रिक्शेवाले बाबा का नुकसान हो गया और उन्होने रुपए भी न लिए !
शिवा ने अनन्या से मन मसोस कर कहा और दोनों अंदर आ गईं और फिर से पढ़ने लगीं ।
"अनन्या ये क्या कर रही है तू वहाँ बैठे -बैठे ??" शाम को अपने कमरे में बैठे हुए शिवा ने अनन्या से पूछा ।
अनन्या शुभ्रा से एक पुराना अखबार लाई थी अलमारी में बिछाने को उसमें से एक पन्ना बच गया था जिसपर लड़की को उसके घर पहुँचाओ नामक पहेली खेल बना हुआ था ,,, अनन्या उसी को उसमें बनी अनेक डोरियों की सहायता से खेल कर लड़की को घर पहुँचाने का प्रयास कर रही थी मगर जिस डोर को चुनती वो ही आगे जाकर उलझ जाती थी ।
"देखो न यार लड़की को उसके घर पहुँचा ही न पा रही हूँ !"अनन्या ने उस पहेली खेल वाले अखबार में नज़र गडा़ए हुए कहा ।
" वही तो !! लड़की अपने घर पहुँच ही कहाँ पा रही है !!" शिवा ने मायूसी से कहा ।
अनन्या ,शिवा की बात सुनकर समझ गई कि उसका इशारा किस तरफ है !!
"शिवा ,तुम अपने घर पहुँच सकती हो ,,, जानती हो कैसे !!" अनन्या ने अखबार एक तरफ रखकर कहा ।
"कैसे ?" शिवा ने पूछा ।
"सिंपल,, अपने मामा से तगडा़ वाला हठ करो कि मुझे अपने घर ले चलिए मतलब ले चलिए !!" अनन्या ने कहा।
शिवा के मन में कुछ और ही विचार आया पर उसने अनन्या से न कहा और दोनों अपनी पढा़ई करने लगीं।
शिवा और अनन्या दोनों महसूस कर रही थीं कि इधर वे पढा़ई के प्रति कुछ लापरवाह हो रही हैं ।दोनों ने एक दूसरे से कहा कि रिक्शेवाले बाबा के लिए कुछ करना हमारे हाथ में नहीं है तो अपने उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित करें और वे अपना ध्यान रिक्शेवाले बाबा से हटाकर मन से पढा़ई करने लगी थीं ।
पढा़ई करते हुए शिवा को बेसब्री से प्रतीक्षा थी कि जल्दी से लम्बी छुट्टियां हों और वो ननिहाल जाकर वो करे जो वो सोचे हुए है ।
शिवा की प्रतीक्षा पूर्ण हुई थी और उन दोनों की महीने भर की छुट्टियां हो गई थीं और शिवा जयपुर जाने को और अनन्या बरेली जाने को अपना -अपना सामान रख रही थीं।
अगले दिन तड़के ही दोनों अपने अपने गंतव्य जाने को अपनी -अपनी ट्रेन में बैठी हुई थीं ।शिवा ट्रेन की खिड़की से बाहर देखती हुई सोच रही थी कि इस बार मामी उसको देखकर तो बहुत ही जल उठेंगी ,,महीने भर की छुट्टी जो है !! पर इस बार तो कुछ भी हो वो तो अपने घर कानपुर जा कर ही रहेगी !!
मामी का तमतमाया हुआ चेहरा उसे अपने सामने दिख रहा था ।
मामी की कोई गलती भी तो न थी !!इतनी मँहगाईं के जमाने में मेहमान तो हर किसी को खलते हैं !!
अपने विचारों में खोई हुई शिवा को पता ही न चला था कि कब जयपुर आ भी गया था । ट्रेन जयपुर स्टेशन पहुँचने वाली थी और शिवा ने देखा कि उसके मामा उसको लेने आए थे ।वो ट्रेन से उतरी तो मामा ने हाथ बढा़कर कहा -"लाओ अपना बैग मुझे दे दो ।" और उन्होने उसके हाथ से बैग ले लिया और घर जाने को आटो रोकने लगे ।
मामा के साथ शिवा घर आ गई थी और उसने जैसा सोचा था वैसा ही हुआ था ,, घर के बाहर ही मामी मिल गई थीं और मामी ने उसको देखते ही ऐसा मुँह बनाया था जैसे मानो कह रही हों -तुम्हारा और कोई ठिकाना नहीं ,,हमारे यहाँ आने के अलावा !!.......शेष अगले भाग में।