श्रीनिवास आया और चाय व नाश्ते के जूठे बर्तन ले जाने लगा ।
"माँ मैं जाकर पूरा घर देखकर आती हूँ ।"शिवा ने कहा और वो अपने कमरे से निकलकर रसोंईघर देखकर फिर रसोंईघर के बगल वाले कमरे में गई। विशाल रसोंई के बगल वाले कमरे में जाकर बैठ गया और चेतना को फोन करने लगा ।
रसोंई की बगल वाला कमरा बैठक का कमरा था ।वो भी हाॅल जैसा पर्याप्त बडा़ कमरा था जिसमें सोफासेट पडा़ था ,एक तरफ दीवान रखा हुआ था और अलमारियों में सजावटी चीजें रखी हुई थीं ।हाॅल में एक दरवाजा और भी था ,शिवा उसे खोलने जा ही रही थी कि अर्पिता ने आवाज लगाई -"शिवा,रात के खाने में क्या खाओगी?वो ही बनाऊँ !"
शिवा रसोंई में जाकर माँ से बोली -"मां दमआलू की सब्जी और रोटी बना दो ,साथ में बूँदी का रायता बना लेना"
"ठीक है ।"अर्पिता ने कहा और शिवा अपने कमरे में जाकर अनन्या को फोन कर बताने लगी कि मैं कानपुर अपने घर आ गई हूँ ।
उसे आए कितनी देर हो गई थी मगर अभी तक वो पापा से न मिली थी ।रात के खाने पर उसने फिर अर्पिता से पूछा कि पापा कहाँ हैं माँ मगर अर्पिता ने फिर उसकी बात को टाल दिया ।शिवा समझ न पा रही थी कि माँ बता क्यों न रही हैं कि पापा कहाँ हैं !!
रात को अपने कमरे में लेटी हुई शिवा के मन में बार -बार यही आ रहा था कि माँ और पापा के मध्य कुछ हुआ है क्या जो माँ पापा की बात ही न कर रही हैं !!
करवटें बदलते हुए उसे कब नींद आ गई थी ,वो जान न पाई थी ।
सुबह हो गई थी ।शिवा अपने कमरे से उठकर बरामदे में आई तो देखा कि मामा रसोंई के बगल वाले कमरे में सो रहे हैं और उस कमरे में जो दरवाजा था वो खुला हुआ था।
अरे !ये दरवाजा ही तो मैं देखने जा रही थी पर माँ ने आवाज देकर बुला लिया था ,अब देखूँ जाकर ! स्वयं से कहती हुई शिवा उस दरवाजे से बाहर गई तो देखा कि बाहर बहुत बडा़ सा खुला परिसर था जिसके तीन ओर आम,केला, इत्यादि के पेड़ थे और भी बहुत से पेड़ थे और उस विशाल परिसर के आगे बाहर जाने के लिए एक मजबूत बडा़ लोहे का दरवाजा लगा हुआ था जिसपर मोटा सा ताला लगा था ।उसी परिसर में बाईं तरफ देखो तो एक दरवाजा लगा हुआ था ।
"इधर भी कोई कमरा है क्या ?" स्वयं से कहती हुई शिवा उधर बढी़ तब तक उसे भीतर से आता हुआ श्रीनिवास दिखा ।
"श्री , इधर ये कमरा है क्या ?"शिवा ने श्रीनिवास से पूछा।
"वो मेरा कमरा है बिटिया ,वहाँ मैं रहता हूँ ।" श्रीनिवास ने अपने कमरे के पास रखे झाडू़ को उठाते हुए कहा और अपना कमरा बंद करके भीतर चला गया ।
शिवा कल से लेकर अभी तक श्रीनिवास के चेहरे पर भी एक उदासी सी महसूस की थी ।
कैसी उदासी थी ये !! वो ये तो जानती थी कि कुछ तो ऐसा है जो उससे छुपाया जा रहा है पर क्या ये वो समझ न पा रही थी ।
दो दिन हो गए थे उसे आए हुए मगर उसकी उसके पापा से मुलाकात न हुई थी ।
तीसरे दिन की शाम थी ,शिवा अपने कमरे में बैठी हुई अपने कपडे़ अपने वार्डरोब में लगा रही थी ,उसकी पीठ उसके कमरे में दरवाजे की तरफ थी ।
"कौन है कमरे में ?" एक कड़क आवाज शिवा को सुनाई दी ,वो पलटी तो देखा कि एक आदमी खडा़ था -- गेहुआं रंग,लम्बा,चौढा़ बडी़ बडी़ आँखें , रौबदार चेहरा जिसपर घनी मूछें थीं ।
इसके पहले कि वो कुछ कहती पीछे से अर्पिता ने आकर उस आदमी से कहा -" ये अपनी बेटी है, शिवा ।"
वो कुछ कहने चले मगर अर्पिता ने आँखों ही आँखों में जैसे उनसे मिन्नत की कि यहाँ कुछ न कहें और वो वहाँ से अर्पिता से ये कहकर निकल गए कि अपने कमरे में आओ।
शिवा ने नमस्कार करने को जो हाथ जोडे़ थे वो जुडे़ ही रह गए और वो सोचने लगी -कैसे पिता हैं जिनके चेहरे पर अपनी बेटी से मिलने की खुशी ही न दिखी !
अर्पिता और शिवा के पिता अपने कमरे में चले गए मगर उसके पिता की तेज आवाज उसके कमरे तक आ रही थी -" इतने समय तक मुझे मेरी बेटी से दूर रखा फिर आज क्यों उसे यहाँ बुलाया !! क्या जरूरत आन पडी़ जो उसे आज यहाँ बुलाया !! "
"मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ कृपया धीरे बोलिए और वो महीने भर के लिए यहाँ आई है तब तक उसे कुछ पता न चलना चाहिए ।"
" महीने भर के लिए !!उसके बाद !!"
"फिर वो चली जाएगी जहाँ से आई है ।"
"यही तो मैं जानना चाहता हूँ कि वो कहाँ से आई है ??उसे कहाँ भेज दिया गया था !! मैंने कितनी बार तुमसे पूछा मगर तुमने कभी भी मुझे न बताया ,, मैं अगर चाहता तो तुमसे जबरदस्ती करके उगलवा लेता मगर मैंने इसकी आवश्यकता न समझी !! "
शिवा के पिता अपने कमरे से बाहर निकले तो उन्हें वहाँ शिवा खडी़ दिखाई दी ,उन्होने उसकी तरफ एक निगाह डाली और फिर श्रीनिवास को आवाज दी -"श्रीनिवास!!"
श्रीनिवास दौड़ता हुआ आया और हाथ जोड़कर बोला -"जी सर ।"
" सर की औलाद ,चल अपनी ड्यूटी पर ।" शिवाके पापा ने श्रीनिवास से कहा और रसोंई के पास वाले कमरे से होते हुए बाहर निकल गए और श्रीनिवास रसोंई से एक कटोरी में तेल लेकर उनके पीछे भागा ।
अर्पिता अपने कमरे से बाहर निकली तो उसने शिवा को अपने कमरे के सामने खडे़ हुए पाया ।
"गो,गो,गोलू,,, त तुम यहाँ किकितनी देर से खखडी़ हो ?" अर्पिता ने लड़खडा़ई आवाज में अपने माथे से पसीना पोछते हुए शिवा से पूछा।
शिवा अर्पिता के चेहरे की ओर देखने लगी और सोचने लगी - माँ उसको यहाँ खडे़ देखकर घबरा गई हैं ये सोचकर कि कहीं गोलू ने सब सुन तो न लिया !!
माँ की कोई विवशता है तभी माँ सामने से उसे कुछ न बता पा रही हैं ,मगर मैं भी अब माँ से कुछ न पूछकर स्वयं ही पता लगाऊँगी कि आखिर बात क्या है ।
"गोलू ,, मैंने कुछ पूछा तुमसे !" अर्पिता ने शिवा को खोए हुए देखकर पूछा ।.......शेष अगले भाग में ।