भोर के नौ बजने वाले थे और भगवान भास्कर अपने प्रचण्ड रूप में आकर ग्रीष्म का कहर बरपा रहे थे।शिवा और अनन्या धूप से बचने को अपने अपने सिर दुपट्टे से ढ़के ,रिक्शे के लिए सड़क के किनारे बने फुटपाथ पर खडी़ थीं।जो भी रिक्शा निकलता उसपर सवारी होती थी और उन्हें अपने काॅलेज जाने के लिए देर हो रही थी।
"उफ!! एक तो इतनी गर्मी ऊपर से एक रिक्शा न मिल रही है।"शिवा ने अनन्या से कहा।
सड़क के एक तरफ मंदिर था और मंदिर की सीढियों के दाईं तरफ एक व्यक्ति अपने ठेले पर प्रसाद,फूल,धूप,इत्यादि रखे हुए भक्तों के आने की प्रतीक्षा
कर रहा था ।
"चल ना शिवा,जब तक रिक्शा न मिलता,मंदिर की सीढियों पर बैठते हैं।"अनन्या ने पसीना पोछते हुए कहा और दोनों मंदिर की सीढियों की तरफ जाकर खडी़ हुईं ।
अकस्मात शिवा की निगाह मंदिर की सीढियों के सबसे नीचे पायदान पर बैठे एक बुजुर्ग पर गई--
घुँघराले सफेद बाल,गेहुआं रंग,बडी़-बडी़ मूँछें,हल्की दाढी़,झीना सा मैला सूती कुर्ता और लुंगी पहने गले में मैला सा लाल अँगौछा डाले बैठा हुआ बुजुर्ग बहुत मायूस सा लग रहा था ।
"देख न अनन्या,वो बुजुर्ग कितने उदास लग रहे हैं !!"शिवा ने उस बुजुर्ग की तरफ देखते हुए अनन्या से कहा।
"छोड़ ना शिवा,मुझे तो ये समझ न आ रहा कि एक भी खाली रिक्शा क्यों न निकल रहा है ??दस बजे से क्लास है और समय से न पहुँचे तो चोपडा़ सर क्लास में घुसने भी न देंगे !!एक तो उनका मुँह ही ऐसा है कि अच्छे-भले इंसान की भी उनको देखकर घिघ्घी बँध जाए ।" अनन्या उस बुजुर्ग की तरफ देखे बिना ही अपने दुपट्टे का कोना उमेठते हुए शिवा से बोली तब तक शिवा की नज़र मंदिर की दाईं तरफ प्रसाद वाले ठेले के कोने में खडे़ एक रिक्शे पर पडी़--" ऐ देखो,वो एक रिक्शा खडा़ है पर रिक्शा वाला कहाँ है ??"शिवा ने कहा और अनन्या ने देखा कि मंदिर के सबसे नीचे पायदान पर बैठा एक बुजुर्ग उनकी ही तरफ आने लगा ।
"बेटियों , आप दोनों को कहीं जाना है !! मेरा रिक्शा वो उधर खडा़ है ,मैं आप दोनों को लिए चलूँ !!" उस बुजुर्ग ने मंदिर के दाईं तरफ प्रसाद वाले ठेले के कोने में खडे़ अपने रिक्शे की तरफ इशारा करते हुए थरथराती आवाज में कहा ।
शिवा और अनन्या ने एक दूसरे को देखा और फिर शिवा ने कहा --"हाँ बाबा जाना तो है काॅलेज,आप ले चलोगे !!"
"हाँ ,मेरा तो यही कार्य ही है !" बुजुर्ग काँपते स्वर में कहते हुए अपना रिक्शा इन दोनों के पास लाने को चल दिया।
"यार , इन बुजुर्ग बाबा को देखो ,इस उम्र में इन्हें रिक्शा चलाना पड़ रहा है "अनन्या ने कहा तब तक वो बुजुर्ग अपना रिक्शा लेकर इन दोनों के पास आ गया था और दोनों उस पर बैठकर काॅलेज के लिए निकल लीं ।बुजुर्ग हाँफते हुए रिक्शा खींच रहा था और वो दोनों आपस में बात करती हुई जा रही थीं पर बार -बार उनका ध्यान हाँफते हुए रिक्शा चलाते बुजुर्ग पर चला जाता था ।उन्हें उस बुजुर्ग को इस उम्र में रिक्शा चलाते देखकर बहुत तरस आ रहा था ।
शिवा और अनन्या दोनों अपने-अपने शहर क्रमशःकानपुर और बरेली से दूर यहाँ लुधियाना में किराए पर कमरा लेकर कानून की पढा़ई पढ़ रही थीं ।
जहाँ शिवा साँवले रंग की,लम्बे बालों वाली,छरहरी काया की थी वहीं अनन्या गोरे रंग की घुँघराले कंधे तक बालों वाली आकर्षक व्यक्तित्व की लड़की थी।दोनों की मुलाकात किराए पर लिए कमरे पर ही हुई थी ।
जिनके घर में उन्होने किराए पर कमरा लिया था वो बहुत संभ्रांत दंपत्ति थे।
ऊपर की मंजिल में दंपत्ति रहते थे व नीचे किराए पर उठा दिया था ,वहीं एक कमरे में शिवा और अनन्या रहती थीं।
बातें करते हुए दोनों का काॅलेज आ गया था ।शिवा और अनन्या रिक्शे से उतरीं और बुजुर्ग रिक्शा चालक भी पसीना पोछता हुआ एक तरफ खडा़ हो गया।
शिवा ने अपना पर्स खोला तो देखा कि छुट्टे रुपए न थे ।
"अनन्या तेरे पास छुट्टे हैं क्या ??" शिवा ने पर्स खोले ही खोले अनन्या से पूछा ।
"नहीं यार,पाँच सौ की ही नोट है ,छुट्टे कराने थे पर ध्यान से ही उतर गया ।"अनन्या ने उत्तर दिया ।
"मेरे पास सौ की ही नोट है !!"शिवा ने कहते हुए सौ की नोट बुजुर्ग की तरफ बढा़ई ।
"बिटिया,छुट्टे तो मेरे पास भी नहीं हैं !!अभी आज तुम दोनों को ही रिक्शे पर बैठाकर लाया हूँ बस ।" बुजुर्ग रिक्शा वाला धीमे स्वर में बोला ।
"कोई बात नहीं बाबा , आप रख लो, आप इस उम्र में इतनी मेहनत कर रहे हो ।" शिवा बुजुर्ग रिक्शे वाले की तरफ नोट बढा़ते हुए बोली।
"नहीं बिटिया,मेरा जितना बनता मैं उतना ही लेता हूँ।"बुजुर्ग रिक्शे वाले ने हाथ जोड़कर कहा।
"बाबा देर हो रही है ,छुट्टे कहाँ से लाएं !!एक काम करिए,हमारा काॅलेज दो बजे छूटता है,आप दो बजे यहीं मिलना, हम लौटते में आपके साथ ही चलेंगे और फिर हिसाब कर लेंगे ।"कहते हुए अनन्या ने शिवा के हाथ से सौ की नोट बुजुर्ग को थमाई और दोनों तेजी से काॅलेज के भीतर चली गईं।बुजुर्ग दोनों को भीतर जाते हुए देखता रहा --एक अपनापन सा लगा उसे इन दोनों को देखकर ।
अब तो नित्य का क्रम बन गया था,दोनों उसी बुजुर्ग के रिक्शे से ही जाती और आती थीं।
उस दिन रविवार होने के कारण दोनों देर से सोकर उठीं फिर स्नान-ध्यान करके अपनी-अपनी चाय व नाश्ता अपने कमरे में लाकर बैठ गईं।
कमरे में दो बराबर से सिंगल बेड पडे़ हुए थे,दोनों बेड की तरफ एक कुर्सी व मेज थी और दोनों तरफ एक एक अलमारी रखी हुई थी।
कमरे में एक बडी़ सी खिड़की सड़क की तरफ खुलती थी,उसी तरफ का बेड शिवा का था और कमरे के दरवाजे की तरफ वाला बेड अनन्या का था।
"आ ना अनन्या !मेरे बेड पर।"शिवा ने अपनी चाय व नाश्ते की प्लेट अपनी मेज पर रखते हुए अनन्या से कहा और अनन्या ,शिवा की मेज पर अपने नाश्ते की प्लेट रखकर उसी के साथ उसके बेड पर बैठ गई।
"अनन्या,तू कुछ सोच में लग रही है !! क्या बात है !बता ना !"शिवा ने चाय का घूँट लेते व सैंडविच खाते हुए अनन्या से पूछा।
"कुछ नहीं यार ,बरबस ही वो रिक्शे वाले बाबा याद आ रहे हैं ।आज रविवार है ,पता नहीं उन्हें कोई सवारी मिली होगी या नहीं !" अनन्या ने सैंडविच खाते हुए कहा।
"हाँ तू कह तो सही रही है, पता है मेरा मन तो ये सोचने लगता है कि कौन होंगे वो बुजुर्ग !!कैसी परिस्थितियां रही होंगी जो उन्हें इस अवस्था में रिक्शा खींचकर जीविका चलानी पड़ रही है "शिवा बोली........शेष अगले भाग में।