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शाम बेच दी है

24 फरवरी 2016

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शाम बेच दी है

भाई, शाम बेच दी है

मैंने शाम बेच दी है!


वो मिट्टी के दिन, वो धरौंदों की शाम,

वो तन-मन में बिजली की कौंधों की शाम,

मदरसों की छुट्टी, वो छंदों की शाम,

वो घर भर में गोरस की गंधों की शाम

वो दिनभर का पढना, वो भूलों की शाम,

वो वन-वन के बांसों-बबूलों की शाम,

झिडकियां पिता की, वो डांटों की शाम,

वो बंसी, वो डोंगी, वो घाटों की शाम,

वो बांहों में नील आसमानों की शाम,

वो वक्ष तोड-तोड उठे गानों की शाम,

वो लुकना, वो छिपना, वो चोरी की शाम,

वो ढेरों दुआएं, वो लोरी की शाम,

वो बरगद पे बादल की पांतों की शाम

वो चौखट, वो चूल्हे से बातों की शाम,

वो पहलू में किस्सों की थापों की शाम,

वो सपनों के घोडे, वो टापों की शाम,


वो नए-नए सपनों की शाम बेच दी है,

भाई, शाम बेच दी है, मैंने शाम बेच दी है।


वो सडकों की शाम, बयाबानों की शाम,

वो टूटे रहे जीवन के मानों की शाम,

वो गुम्बद की ओट हुई झेपों की शाम,

हाट-बाटों की शाम, थकी खेपों की शाम,

तपी सांसों की तेज रक्तवाहों की शाम,

वो दुराहों-तिराहों-चौराहों की शाम,

भूख प्यासों की शाम, रुंधे कंठों की शाम,

लाख झंझट की शाम, लाख टंटों की शाम,

याद आने की शाम, भूल जाने की शाम,

वो जा-जा कर लौट-लौट आने की शाम,

वो चेहरे पर उडते से भावों की शाम,

वो नस-नस में बढते तनावों की शाम,

वो कैफे के टेबल, वो प्यालों की शाम,

वो जेबों पर सिकुडन के तालों की शाम,

वो माथे पर सदियों के बोझों की शाम

वो भीडों में धडकन की खोजों की शाम,


वो तेज-तेज कदमों की शाम बेच दी है,

भाई, शाम बेच दी है, मैंने शाम बेच दी है।

-डॉ. केदारनाथ सिंह 

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शाम बेच दी है

24 फरवरी 2016
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शाम बेच दी हैभाई, शाम बेच दी हैमैंने शाम बेच दी है!वो मिट्टी के दिन, वो धरौंदों की शाम,वो तन-मन में बिजली की कौंधों की शाम,मदरसों की छुट्टी, वो छंदों की शाम,वो घर भर में गोरस की गंधों की शामवो दिनभर का पढना, वो भूलों की शाम,वो वन-वन के बांसों-बबूलों की शाम,झिडकियां पिता की, वो डांटों की शाम,वो बंसी,

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खोल दूं यह आज का दिन

24 फरवरी 2016
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खोल दूं यह आज का दिनजिसे-मेरी देहरी के पास कोई रख गया है,एक हल्दी-रंगेताजेदूर देशी पत्र-सा।थरथराती रोशनी में,हर संदेशे की तरहयह एक भटका संदेश भीअनपढा ही रह न जाए-सोचता हूँखोल दूं।इस सम्पुटित दिन के सुनहले पत्र-कोजो द्वार पर गुमसुम पडा है,खोल दूं।पर, एक नन्हा-साकिलकता प्रश्न आकरहाथ मेरा थाम लेता है,क

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जे.एन.यू. में हिंदी

24 फरवरी 2016
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जी, यही मेरा घर हैऔर शायद यही वह पत्थर जिस पर सिर रखकर सोई थीवह पहली कुल्हाड़ीजिसने पहले वृक्ष का शिकार किया थाइस पत्थर से आज भीएक पसीने की गंध आती हैजो शायद उस पहले लकड़हारे के शरीर कीगंध है--जिससे खुराक मिलती हैमेरे परिसर की सारी आधुनिकता कोइस घर से सटे हुएबहुत-से घर हैंजैसे एक पत्थर से सटे हुए बह

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नदी

24 फरवरी 2016
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अगर धीरे चलोवह तुम्हे छू लेगीदौड़ो तो छूट जाएगी नदीअगर ले लो साथवह चलती चली जाएगी कहीं भीयहाँ तक- कि कबाड़ी की दुकान तक भीछोड़ दोतो वही अंधेरे में करोड़ों तारों की आँख बचाकरवह चुपके से रच लेगीएक समूची दुनियाएक छोटे से घोंघे मेंसच्चाई यह हैकि तुम कहीं भी रहोतुम्हें वर्ष के सबसे कठिन दिनों में भीप्यार

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दिशा

24 फरवरी 2016
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हिमालय किधर है?मैंने उस बच्‍चे से पूछा जो स्‍कूल के बाहरपतंग उड़ा रहा थाउधर-उधर-उसने कहाँजिधर उसकी पतंग भागी जा रही थीमैं स्‍वीकार करूँमैंने पहली बार जानाहिमालय किधर है?-डॉ. केदारनाथ सिंह 

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