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श्याम बबलू को बाद में बात करने का
बोलकर, कॉलेज के अंदर चला गया। डिपार्टमेंट में सभी बात कर रहें है पर राजेश जी थोड़ा सुस्त है। सबने पूछा तो उन्होंने
तबीयत ठीक न होने का कारण बताया। अब सबके क्लॉस में जाने के बाद, उन्होंने श्याम
को अपने पास बुलाकर पूछा, “उस ड्रिंक में
क्या था? क्या था, मतलब?” “ उसे पीने के बाद, एक अजब
सी फुर्ती आ गई।“ “यह तो अच्छी बात है।“ उसके बाद तो मैं और अंग्रेजी डिपार्टमेंट
की ममता मैडम अपनी हद ही पार गए,” उन्होंने श्याम के कान में धीरे से कहा। “सर, हद मतलब, वो सब ????” झा जी के हाँ में सिर हिलाते ही श्याम का मुँह खुला का खुला रह गया।
“सर, मुझे तो वो ड्रिंक फाइनल ईयर की स्टूडेंट शालू ने दिया था। इन नूमने
बच्चों से तो कुछ पूछ भी नहीं सकते, खैर रात गई, बात गई। रेडलाइट
एरिया की कोई फुलझड़ी नहीं तो वो मोटी-मुताली ममता ही सही।“ “सर, ममता मैडम ठीक है?” वो तो मेडिकल लीव पर है।“ झा जी तो कहकर चले गए पर श्याम का सिर
घूमने लगा।
जब वो फाइनल ईयर की क्लॉस में गया तो
सभी स्टूडेंट्स को घूरकर देखा शालू तो आज नहीं आई और संजू एंड ग्रुप ऐसे बैठा हुआ है जैसे इनसे शरीफ क्लॉस
में कोई है ही नहीं। “ज़रूर इन्होने ही कुछ
किया है,” वह मन ही मन सोचने लगा। अब अपनी ड्यूटी करते
हुए, उसने क्लॉस में हिटलर के बारे मैं
पढ़ाना शुरू कर दिया।
दोपहर को कॉलेज से निकलने के बाद, श्याम ने अपनी गाड़ी में गायत्री को बैठते देखा तो
वह उसके पास जाकर उससे बात करने लगा,
गायत्री! तुम्हारी गाड़ी ठीक हो गई ??
क्या नज़र आ रहा है!!! उसने चिढ़कर ज़वाब दिया।
इस बार भी किसी और का गुस्सा मुझ पर निकाल रहीं हो ?
“नहीं, जो तुम्हारा है, तुम्हीं को दे
रही हूँ।“ अब उसने गाड़ी स्टार्ट की और वहाँ से निकल गई। उसकी गाड़ी से उड़ी धूल से श्याम का चेहरा सन्न गया।
गायत्री ने विकास के घरवालों के लिए गिफ़्ट खरीदेँ। घर पहुँचने पर उसके पापा ने
उसे टोका,
“मुझे लगा, कॉलेज से आएगी?” बच्चे कम आये थें, इसलिए क्लास नहीं थी, अब कल
संडे है, सोमवार से ही बच्चों की संख्या आएगी। उसने अब
बाज़ार से लाए, गिफ्ट्स अपने पापा को दिखाए तो वह उसकी पसंद की तारीफ करने लगें। “तुम
दोनों भाई बहनो की शादी हो जाये तो मैं अपने दोस्त के पास हरिद्वार उसके आश्रम में
चला जाओ। जबसे दुकान बंद की है, घर में मन ही नहीं लगता।“ ओह !! पापा आपको मोबाइल पर फिल्म देखना सिखाया तो है।“ “आजकल
की फिल्मो में कहानी के अलावा सबकुछ है” “तो फिर किसी एप्प पर जाकर कहानियाँ पढ़ लिया कीजिए।“ अब उसने पापा के फ़ोन में कहानी के दो-तीन एप्प डाउनलोड कर
दिए।
शाम को श्याम ने बबलू की दुकान पर जाते हुए देखा कि गायत्री का पूरा परिवार तैयार होकर कहीं जा रहा है। संदीप के हाथो में गिफ्ट्स देखकर वो समझ गया कि शायद विकास के घर जा रहें हैं।बबलू की बेकरी पर
पहुँचते ही उसने, उसे डाँटते हुए कहा,
तुझे क्या पड़ी थीं? ये सब करने की?
उस माधुरी को क्या पड़ी थी, तुझसे पैसे ऐंठकर, तुझे ही वो सब सुनाने की।
उसे पता चल गया तो मेरे पीछे पड़ जाएगी।
अरे !! तू घबरा मत, मेरे होते हुए, तुझे कुछ नहीं होगा। श्याम ने
मुँह बना लिया।
भाभी ठीक है?
हम्म !!! अब तो वो बहुत खुश नज़र आती है।
मैंने कहा था न ध्यान हटाने से हर बीमारी ठीक हो जाती है।
वो जल्दी से ठीक हो और मैं अपना उपवास तोड़ो।
शर्म कर !!! उनका ठीक होना, उनकी
ज़िन्दगी के लिए भी अच्छा है न कि सिर्फ तेरी
ज़रूरत के लिए।
“अरे !! यार वो भी अपने पति की बाँहो में आने के लिए मरी जा रही होगी।“ इमरती
ने कैफ़े के दरवाजे की ओट से यह सुना तो मन
ही मन बोली, “मोटे !! मैं मरी तो जा रही हूँ, मगर तेरी बाँहो में आने के लिए नहीं।“