मेरे प्यारे हिंदी भाषियों,
मैं हिंदी हूँ, जी हाँ आपकी बोलचाल के शब्द मेरे ही शरीर के अंग हैं।
आप लोग मुझे पहचान तो गए ही होंगे।
वही हिंदी जिसकी लिपि देवनागरी है। संस्कृत जिसकी जननी है।
किन्तु एक विशाल एवं उन्नत राष्ट्र की मातृभाषा होकर भी मैं पूर्णतया उपेक्षित हूँ। ऐसा लगता है कि मेरा प्यारा देश अंग्रेजों के जाने के बाद भी मानसिक गुलामी की जंजीरे नही तोड़ पाया है। मेरे प्यारे बच्चे आज भी अंग्रेजी भाषा के गुलाम हैं।
14 सितंबर, जी हाँ आज... यानी के "हिंदी दिवस" आज के दिन भी मेरे सम्मान समारोह के मुख्य अतिथि अपना संदेश अंग्रेजी में कह जाते हैं।
सच बहुत दुख !!होता है अपनी ये दशा देख कर।
किन्तु मेरे कुछ बच्चे हैं जो मुझे सच में प्यार करते हैं जिन्होंने मुझे जीवित रखा हुआ है, अन्यथा मुझे मिटाने की कोशिश करने वाले कुछ कम नही हैं। मेरे देश की सरकारें भी कभी मेरे लिए नहीं सोच पाती हैं।
'हिंदी दिवस' मनाकर कर्तव्य पूर्ण मान लेने वालों! मेरी उन्नति में ही देश की उन्नति निहित है। आशा है मेरे बच्चे इस तथ्य को शीघ्र समझेंगे एवं मेरे उत्थान के लिए कार्य करेंगे।
धन्यवाद
आपकी कथित मातृ भाषा हिंदी।
नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद