अपने पिछले भाग में पढ़ा के कैसे एक अँधेरी बरसाती रत में दो लोग एक डरावने खँडहर तक पहुँचते हैं। जहाँ उन्हें कुछ अजीब आवाजें आती हैं। और किसी की वेदनापूर्ण चीख उन्हें आकर्षित करती है।अब आगे पढ़िए-
यार अंदर पता नहीं भूत हैं जिन हैं या शायद राक्षस ही हों।
यार पंडित कियूं न रात उसी पेड़ के नीचे रह कर सुबह इसकी खोज की जाये।
तू भूल गया अर्जुन हमें ऐंसी भयानक रात में ही खजाना खोजना होगा ।देर न कर चल इस मकान का मुख्य द्वार खोजते हैं।
ठीक है चल यार अब शैतान से दोस्ती की ही है तो मारने से डरना बंद ही करना पड़ेगा न अर्जुन बुदबुदाया।
क्या कहा तुमने आएं,,,,,
कुछ नहीं यार तुम इस तरफ से चलो मैं इस तरफ से चलता हूँ ।
जिसको दरवाज़ा मिलेगा वह दूसरे को बुला लेगा ठीक है।
ठीक है चलो,,,
और दोनों उस गोल ईमारत के दरवाजे को खोजना एकदूसरे से विपरीत दिशा में चलने लगे।
जमीन पर बड़ी बड़ी जंगली घास और झाड़ियां थी , और बरसात के कारण पानी भी भरा था ।
जुगनू जैसे उन्हें रास्ता दिखाने के लिए ही जगमगा रहे थे ।
और मेंढक टर्र टर्र करके जैसे भाग जाओ घग जाओ का संदेश प्रसारित कर रहे थे।
आधा घंटा चलने के बाद दोनों अचानक आमने सामने आ गए।
क्या हुआ पंडित मिला द्वार?
नहीं यार ऐंसा लगता है जैसे रातभर किसी खंबे का चक्कर मारते रहे हम।
हाँ यही मै तो पहले ही समज़ह रहा था वीरवर की यहाँ कुछ मिलने वाला नहीं लेकिन हुजूर महाराज को तो हमेशा ये ही लगता है कि , मैं डर रहा हूँ।
हाँ तुम हमेशा डरते ही हो अभी भी देखो दर से कांप रहे हो।
अरे यार सोचो ऐंसा कैसे हो गया कि इतनी बड़ी ईमारत बो भी बिना द्वार की असंभव नहीं लगता तुम्हे।
हाँ लगता तो है लेकिन आपही बतादो पंडित जी फिर दरवाजा मिल कियूं नहीं रहा हमें।
शायद ये कोई तिलस्मी ईमारत हो जिसका दरवाजा किसी गुप्त रीती से खुलता हो।
या फिर दरवाजा गमारे सामने ही हो लेकिन हमें दिखाई न दे रहा हो।
क्या !!!क्या कहा तिलिस्म अब तुम डरा रहे ही न मुझे पंडित।
नहीं यार पुराने जमा मे लोग अपना धन छिपाने के लिए ऐंसे ही टिलिसम बनाते थे ।
डरो मत ये जादू टोना नहीं होता बस कुछ कालपुरजो का खेल होता है।
इस ईमारत के चरण और ध्यान से ढूंढो कोई खूंटी , कोई गड्ढा, कोई विचित्र चित्र या फिर कोई ऐंसा ईंट या पत्थर जो बेवज़ह निकला हो।
न भाई न अब मैं अकेला नहीं काटने वाला उसका चक्कर ।
दोनों भाई साथ में ढूंढते है ना।
अच्छा चलो दोनों साथ में ही ढूंढें।
और दोनों मित्र एकबार फिर उस रहस्यमय इमैट का चक्कर काटने लगे।
लेकिन इस बार भी असफलता ही हाथ लगी।
पंडित मई कहता हूँ न ये ईमारत एक ठोस मीनार है बस और कुछ नहीं अब खोजबीन बंद कर और घर चल यार।
नहीं तहँ कुछ तो है जरा बता तो हम घर से कब चले थे?
यही कोई रात 11 बजे।
और कितने घंटे हो गए?
पांच या छः।
और अभी भी यहाँ ऐंसा लगता है जैसे आधी रात ही रही हो।
प्रभात का दूर तक नीसाण नहीं है।
दिशाओं तक का पता नहीं लगता उस पर ये ईमारत पूरी गोल ।
सोचो कुछ तो यहाँ विचित्र प्रभाव है।
अच्छा एक अंतिम कोशिश करलेते हैं नहीं टी वापिस चलेंगे।
अबकी बार हर छोटी से छोटी चीज़ पर गौर करना कोई खिड़की कोई रोशनदान कोई जलनिकासी कुछ तो होना चाहिए यहाँ यार अर्जुन।
तुमने इसके अंदर से आती आवाजे सुनी हैं न और यदि कोई इसके अंदर है तो कहीं से तो गया होगा ।
और एक बार फिर दोनों अलग अलग दिशाओं में चल दिए।
लगभग दस मिनट ही बीते होंगे कि अर्जुन की प्रसन्नता भरी हर्ष ध्वनि सुनाई दी,,,,यहाँ आओ पंडित जल्दी देखो वह क्या है।
पंडित दौड़ कर इधर लौटा। क्या है?
वो देखो वहाँ शायद कोई खिड़की है ऊपर उसमेंसे हलकी प्रकाश रेखा भी आ रही है।
हाँ वही है , लेकिन इतना ऊपर उफ़ यार वहाँ पहुंचेंगे कैसे।
हमें उस खिड़की तक पहुंचने का कोई उपाय सोचना चाहिए यार।
किउंकि इसके अंदर जाने का कोई और मार्ग नहीं है।
पंडित अब हमें चुपचाप घर की राह पकडनी चाहिए।
एक तो खिड़की इतनी ऊंचाई पर इसपर चढ़ने का कोई रास्ता नहीं । और सोचो यदि किसी प्रकार हम उसमे प्रवेश कर गए और अचानक सामने कोई खतरा आ गया तो भाग भी न सकेंगे और अगर कूदे तो पक्का मारेंगे।
हाँ अब समझ आया बी सब कंकाल यहाँ से कूद कर ही मरे होंगे ।उफ़ कहा फंस गए यार।
अर्जुन यार कभी तो शांत होकर सोचा करो हमेशा नकारात्मक विचारों से भरे होते हो।
शांत होकर ढूंढो अगर खिड़की दिखी है तो कोई उसतक पहुँचने का उपाय भी होगा यार।
और हरा सोचो हम यहाँ आये नहीं है शायद लाये गए हैं ही सकता है कि वह खज़ाना हमारा ही इन्जार कर रहा है।
हाँ यार बात तो सही है पंडित।
ठीक है ढूंढते हैं ,और हाँ मैदान को तो हम तीन बारी खंगाल चुके हैं तो अब या टी झाड़ियों में ढूंढो या फिर उन कंकालों के पास।
वाह यार अर्जुन बहुत ठीक सोचा तुमने ऐंसा करते हैं मैं झाड़ियों में खोजता हूँ और तुम जाकर उन कंकालो की तलाशी ली। आज तो हम खजाना लेकर ही जायेंगे।
हाँ तुम हमेशा मेरी ही बलि चढ़ाने की सोचना खुद कियूं नहीं जाते कंकाली के पास ।
अरे यार मज़ाक कर रहा था पंडित मुस्कराकर बोला।
चाहे तुम्हारी मज़ाक से किसी की जान चली जाए अर्जुन धीरे से बुदबुदाया।
चलो दोनों साथ में ढूंढते हैं यार।
हाँ चलो।
और दिने मित्र झाड़ियों में बहुत सावधानी से अपने काम की कोई वस्तु तलाशने लगे।
अचानक आसमान से दामिनी दमक कर एक झड़ी पर गिरी जैसे इन्हें कुछ बताना चाहती हो।
चलो जल्दी वहाँ शायद हमारे लिए कुछ है अर्जुन चिल्लाया।
हाँ चलो ,पंडित भी दौड़ पड़ा।
ओह ये देखि रस्सी के दो बण्डल और मज़बूत लाठी के दो भाग ।
दोनों डंडे कोई चार, चार हाथ के होंगे और सस्सी हर बण्डल में कोई चालीस हाथ।
लेकिन यार ये दो दो कियूं हैं ? अर्जुन ने पूछा।
शायद हम दोनों के लिए।पंडित ने धीरे से कहा।
लेकिन यार खिड़की तक पहुंचेंगे कैसे अब।
चल ये सामान उठा कर वही चलकर सोचते हैं।
हाँ यार देख अगर हम ये डंडा रस्सी में बांध कर ऊपर फेंके तो शायद इस खिड़की में डंडा अटक जायेगा और ये रस्सी हमसर लिए कमंद का काम करेगी हम उसे पकड़ कर ऊपर जायेंगे।
पता नहीं क्या क्या करना पड़ेगा तुम्हारे साथ रहकर।
अर्जुन डंडा बंधने लगा। ली फेंको अब।
तुम्ही फेंको अर्जुन तुम्हारा निशाना ठीक है।
अर्जुन ने पूरे जोश से हरि स्मरण करके रस्सी घुमा कर फेंका।
और डंडा सच में खिड़की में अटक गया।
दोनों ने खूब खींच कर झटक कर उसकी पकड़ को परखा।
और पूरा यकीं होने पर दोनों उस रस्से पर चढ़ने लगे और कुछ देर में खिड़की के पास पहुँच कर पंडित जो की पहले चढ़ा था उसने देखा,कि खिड़की काफी बड़ी है किंतु उसके अंदर घना अंधकार है।
अतः उसने हाथ डालकर टटोला उसमे ऊपर से नीचे इतनी जगह थी की सीधे खड़ा होकर उसमे से जाया जा सके।अतः पंडित उसमे कूद गया।
और अर्जुन भी तब तक आ गया था , अरे कहाँ गायव हो गया यार।
यही हूँ अंडा कूद जाओ यहाँ रास्ता है।
क्या यार वेबकूफी की कोई सीमा होती है या नहीं कब तक ऐंसे अंधकार में,,
अरे यार अब आ भी जाओ ।और अर्जुन भी अंदर आ गया ।
अब ये रस्सी समेटो दंड कमर में बांधो और रस्सी कंधे में ।जैसे मेने दूसरी वाली ले रखी है।
अब कुछ देर अँधेरे में हाथों के सहारे चलते हुए दोनों एक ऐंसी जफह पहुंचे जहां दाईं ओर की दीवार में एक छोटा दरवाजा था और उसमें हलकी रौशनी हो रही थी।
दोनों दोस्त उस रास्ते पर कूद गए
क्रमशः