कोई सो साल पहले उत्तरप्रदेश के मोरादाबाद जिले में एक छोटे गाँव मे रहते थे पंडित बल्देव प्रसाद शर्मा।
जैसा नाम वैसा ही डीलडौल, छः फीट से ऊँचा निकलता कद, चौड़े कंधे गोरा रंग, ऊंचा मस्तिष्क। एक दर्शनीय मूर्ति स्वभाव ऐंसा की हर किसी की मदद को हरदम ततपर।
बचपन से ही पहलवानी का शौक था उनको। गाये भैंसे पालते खेती करते, ज्योतिष और वैधक के बहुत बड़े जानकार।
रोज सुबह चार बजे नदी पर जाते नित्यकर्मों से निवर्त होकर वहीं कसरत करते और पहलवानी का अभ्यास करते।
उनकी कहानिया मैंने गांव के लोगो से बचपन से ही सुनी थीं ,
गांव के सारे बुजुर्ग मुझे उनकी कहानिया बताते थे, किउंकि वह मेरे पिताजी के पूज्य दादाजी थे।
आज उनकी कुछ सच्ची कहानियां मैं लिख रहा हूँ।
1-
पूरे सूबे में उनका से पहलवान कोई नही था अपने समय मे बलदेव समकक्ष पहलवानों में सिरमौर थे। दूर दूर तक उनकी ख्याति फैली हुई थी।
एक बार दूर कहीं से कोई पहलवान उनकी ख्याति सुनकर उनसे मुकाबिला करने की इच्छा लिए गांव में आया। जैसा कि हर पहलवान(योद्धा) की दिली तमन्ना होती है कि उसका नाम सबसे ऊपर हो, तो ऐंसी ही उसकी भी तमन्ना थी।
सुबह भोर में गांव पहुंचा तो उसे बताया गया पंडित जी खेत पर मिलेंगे नदी किनारे,,,,
पहलवान तुरन्त चल दिया खेत पर किउंकि उसे अपना नाम ऊंचा करने की बहुत जल्दी थी।
नदी पहुंचकर उसने देखा कि एक आदमी एक पेड़ को झुका कर कुछ कर रहा है , उधर पहुंच कर इसने देखा शीशम का बहुत मजबूत मोटा पेड़ था उसे ज़मीन से लगाये थे वह।लेकिन वो उन्हें पहचानता नही था तो उन्हीं से पूछने लगा,वल्देब पहलवान कहाँ मिलेंगे? मुझे उनसे कुश्ती का मुकाबला करना है।
पंडित जी ने उसे ऊपर से नीचे तक गोर से देखा । फिर कुछ सोच कर बोले , यहीं कहीं खेत पर होंगे रुको मैं बुला लाता हूँ तनिक इस पेड़ को पकड़ कर रखना ये ऊपर नही जाना चाहिए।
,,इसमे को बड़ी बात है लाओ मैं पकड़ता हूँ इसे कहकर पहलवान ने पेड़ का तना थम लिया।
छोड़ दूँ ?पंडित जी ने पूछा।
हाँ छोड़ो।
पंडित जी ने जैसे ही पेड़ छोड़ा तो पहलवान हवा में लटकने लगा।
अरे कहाँ गया पहलवान ?पंडित जी ने हंस कर कहा।
यहां हूँ, कहकर पहलवान पेड़ से कूद।
क्या हुआ रोक नही पाया पेड़ की झोंक?
कहकर पंडित जी चल दिये।
एक बार बलदेव जी से तो मिला दो पहलवान पीछे से बोला।
अभी तक पहचान पाया, अरे जिस पेड़ को मैं घण्टों जमीन पर झुकाये रहता हूँ ,बो भी सिर्फ एक बार उसकी डाल मेरे सिर में लगने पर उसका घमंड तोड़ने के लिए।
उसे तू एक पल भी नही साध पाया, और हसरत है हमसे मुकाबले की।
जा चला जा नही तो गांव में पता लग जायेगा औ तेजी इज्जत,,,,, पंडित जी बात बीच मे छोड़कर हंसने लगे ।
पहलवान ने झुक कर उनके पांव छुए और चल गया।
2-
उस दौर में डाकुओं का बहुत आतंक रहता था । डाकू किसी के घर पर दिन में लिख जाते थे ,और रात को धावा बोलकर लूटपाट करते बीच मे कोई बोलता तो मर डालते।
एक दिन गांव के सुनार के घर पर्चा डालगये, कि आज तेरा नम्बर है।
उस दौर में अंग्रेज पुलिस को छकाना डंकुओं को खूब आता था।
सुनार गेंदामल की तो जान ही सुख गई क्या करे किस से मदद ले।
तो किसी ने कहा बलदेव महाराज के पास चला जा
गेंदामल आकर पंडित जी के पैरों में लिपटी गया, बोला अब तुम ही मेरे रक्षक हो महाराज अब बचाओ मुझे।
अरे क्या हुआ गेंदा इतना बदहवास कियूं है लगता ह जैसे आसमान टूट पड़ा।
आसमान ही तो टूटा है पंडत जी,कहकर उसने पर्चा उनके आगे रख दिया।
अच्छा ये बात है, डर मत मैं हूँ न आज रात अपने दुकान के बरांडे में एक नया बिस्तर लगा देना मैं वहाँ सोऊंगा।
अच्छी बात है देवता जी कहकर गेंदा मल कुछ आश्वस्त से होकर चला गया।
रात को उसने एक नया विस्तर दुकान के बाहर लगा दिया ।
रात को डाकू आये और आते ही पिल पड़े लाठियां लेकर विस्तर पर लेटे पहलवान पर। खूब लाठियां चलाने के बाद, ये पक्का करने के लिए कि, मरा या जीता है लाठियां रख कर चादर उठा कर देखने लगे , तभी बिजली की तेजी से लाठी घूमी और पांच में से तीन डकैत जमीन सूंघने लगे।
हुआ यूं था कि दादाजी(बलदेवप्रसाद) जी को इस बात का संदेह था की कोई गांव का आदमी डाकुओं में शामिल है इसी लिए उन्होंने योजना बनाई थी बिस्तर में तकिए लगाकर ऐंसे तैयार किया जैसे चादर में कोई सोया है , और अपना लाठी लेकर कोने में छिप गए ।
डाकुओं के बेखबर होते ही टूट पड़े ।
एक ही बार मे तीन को ढेर होता देख बाकी दोनो का हौसला हवा हो गया। और पंडित जी लगे इनकी हड्डियां सीधी करने । तबतक गांव वाले भी आ गए और डाकू बांध लिए गए।
3-
गांव में हर वर्ष सावन में जाहर देव के स्थान पर नवमी के मेला लगता उसमे अखाड़े के आयोजन भी होता था, हर वर्ष दादा जी अखाड़े के विजेता रहते थे।
लेकिन अब पिछले 3 चार साल से पंडित जी ने अखाड़े में भाग लेना बंद कर दिया था उनकी आयु चालीस पार कर चुकी थी।
वह कहते थे ये सब नई उम्र का काम है, अब जवान लोग अखाड़ा खेलो मैं बस देखूंगा।
और मेले के दो तीन दिन लोटा डोर लेकर कुएं पर बैठ जाते और लोगों को पानी निकाल कर पिलाते रहते।
वो कहते थे -
आ बैठ पी पानी ये तीन चीज़ मोल न लानी।
मतलब किसी किसी को बैठने और पानी के लिए पूछना बहुत पुण्य का कान होता है।
तो पंडित जी अब मेले में जल सेवा से पुण्यार्जन का लाभ कमाते थे।
मेला जोरों पर था ,अखाड़े में पहलवान खम्ब ठोक रहे थे ।
अंत मे पडीसी जिले बिजनोर का पहलवान विजयी रहा।
वह अखाड़े में लंगोट घुमा कर गर्व से चुनोती प्रस्तुत कर रहा था है कोई जो मुकाबले में आये।
लेकिन भीड़ में सन्नाटा था कोई आगे नही आता था।
तभी उसने कुएं पर बैठे बलदेव जी को देखा , और कहने लगा
अरे पंडित जी आओ हो जाये दो हाथ बहुत नाम सुना है आपका।
क्या हुआ भूल गए क्या दाव पेंच।
दादा जी हंस कर बोले अरे भाई मैं बुड्ढा तुम जवानों का मुकाबला कहाँ कर सकता हूँ।
तुम अखाड़ा जीत गए इनाम लो और खुशी से घर लौटो।
लेकिन वो हंस कर कहने लगा, क्या बलदेव जी इतनी कहानिया आपकी पहलवानी की सुनी लगता है सब हवा में गांठ ही हैं ।
पहलवानी दमखम का खेल है आप जैसे हलवा पूड़ी वाले पंडित कट जाने , कभी कोई असली पहलवान तुम्हे भेंटा नही होगा तभी मुकाबले जीत लिए होंगे।
या फिर आपके सम्मान में पहलवान यूँही हार जाते होंगे।
नही तो उस जाओ हो जाये आप आपकी पहलवानी का परीक्षण।
पंडित जी को उसकी चुनोती और घमंड पसंद नही आया सो कूद पड़े कुएं की जगत से सीधा अखाड़े में ।
और पता नही कट दांव लगाया कि पहलवान एक झटके में कुएं के अंदर।
लोगो ने बड़ी मशककत से उसे कुएं से निकला।
और इधर पंडित जी धीरे धीरे घर लौट आये।
कुछ समय बाद पंडित जी ने गृहस्थी से सन्यास ले लिया ओर हरिद्वार जाकर हरिभक्ति में लीन हो गए।