पतझड़ अंत नहीं आरम्भ है,
ये शुरुआत है नई कोंपलों की।
ये दस्तक है नई कलियों के आने की।
ये आरम्भ है नए जीवन के पलने की।
कुछ पुरानी शाखें छोड़ देती हैं साथ।
झड़ जाते हैं पुराने पत्ते सूख कर।
दे जाते हैं निशान पेड़ के तने पर।
कुछ दिन की यादों के रूप में।
फिर निकल आती हैं नई कोंपलों।
उन्हीं निशानों के अंदर से।
भर जाते हैं वृक्ष फिर से नए जीवन से।
खिल उठते हैं सारे उपवन खुशी से।
भूलकर पतझड़ का दुःख।
पाकर नए फूल पत्तों का साथ।
जीवन रूकता नहीं पतझड़ आने से।
पतझड़ शुरुआत है नव जीवन की।।
नृपेंद्र शर्मा "सागर"