नदी किनारे गांव के एक छोर पर एक छोटे से घर में रहती थी गांव की बूढी दादी माँ।
घर क्या था उसे बस एक झोंपडी कहना ही उचित होगा।
गांव की दादी माँ, जी हां पूरा गांव ही यही संबोधन देता था उन्हें।
नाम तो शायद ही किसी को याद हो, 70/75 बरस की नितान्त अकेली अपनी ही धुन में मगन।
कहते हैं पूरा परिवार था उनका नाती पोते बाली थीं वो, लेकिन एक काल कलुषित वर्षा की अशुभ रात की नदी की बाढ़ ,,, उनका सब समां ले गई अपने उफान में ।
उसदिन सौभाग्य कहो या दुर्भाग्य कि, बो अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ बच्चा होने की खुशियां मानाने गई हुई थीं।
कोण जनता था कि बो मनहूस रात उनके ही नाती बेटों को उनके जीवन भर के गहन दुःख दे कर उनसे दूर करने को आएगी।
उस दिन से सारे गांव को ही उन्होंने अपना नातेदार बना लिया और गांव बाले भी उनका परिवार बन कर खुश थे।
किसी के घर का छीटे से छत उत्सव भी उनके बिना न शुरू होता न ख़तम।
गांव की औरतें भी बड़े आदर से पूछती अम्मा ये कैसे करें बो कैसे होता है।
और अम्मा बड़े मनुहार से कहती इतनी बड़ी हो गई इत्ती सी बात न सिख पाई अभी तक ।
सब खुश थे सबके काम आसान थे ।
किसी के तहँ शादी विवाह में तो अम्मा 4 दिन पहले से ही बुला ली जाती थीं।
हम बच्चे रोज शाम जबतक अम्मा से दो चार कहानियां न सुन ले न तो खाना हज़म होता और न नींद ही आती।
अम्मा रोज नई नई कहानियां सुनाती राजा रानी परी राक्षस चोर डाकू न जाने कितने पात्र रोज अम्मा की कहानियों में जीवंत होते और मारते थे।
समय यूँही गुजर रहा था और अम्मा की उम्र भी।
आजकल अम्मा बीमार आसक्त हैं उनको दमा और लकवा एक साथ आ गया।
चलने फिरने में असमर्थ , ठीक से आवाज भी नहीं लगा पाती ।
कुछ दिन तो गांव बाले अम्मा को देखने आते रहे, रोटी पानी दवा अदि पहुंचते रहे।
लेकिन धीरे धीरे लोग उनसे काटने लगे बच्चे भी अब उधर नहीं आते कि, कहीं अम्मा कुछ कसम न बतादे।
बो अम्मा जिसका पूरा गांव परिवार था अब बच्चों टास्क को देखने को तरसती रहती।
बी लोग जिनका अम्मा के बिना कुछ कम नहीं होता था , अब उन्हें भूलने लगे।
औरते अब बच्चो को उधर मत जाना नहीं तो बीमारी लग जाएगी की शिक्षा दे ने लगी।
अम्मा बेचारी अकेली उदास गुनगुना रही है-
सुख में सब साथी दुःख में न कोई।
अब तो कोई उधर से गुजरता भी नहीं ।
अम्मा आवाज लगा रही है
अरे कोई रोटी देदी। थोड़ा पानी ही पिला दो।।।।
नदी किनारे रहकर भी अम्मा पानी के घूँट को तरसती उस रात मर गई।
सुबह किसी ने देखा और गांव में खबर फैली की बुढ़िया जो नदी किनारे रहती थी आज मर गई।
लोग आये दो चार बूँद आंसू गिराये औरतों में चर्चा थी वेचारी सब के कितना कसम आती थी।
और आज मर गई।
कुछ देर में बुढ़िया का शरीर आग के घेरे में पड़ा था लोग अपने घर लौट रहे थे।
और अब कहीं चर्चा नहीं थी कि
वह मर गई।
यही दुनिया है यही इसकी रीत है।
जीवित हैं तो सबके हैं ।
मर गए तो भूत हैं।
और कोई याद तक नहीं करता
कि वह मर गई।