सतगुरु शरण में लेलो ,हम दर पे आ पड़े हैं।
हम पर दया दिखादो,कर जोड़ कर खड़े हैं।।
हम जीव वे सहारा , तुम बिन कौन हमारा।
यम के नगर का फेरा,दिन चार का बसेरा।।
जन्मो जन्म का आना,कैसे छूटे हमारा।
ये चौरासी का चक्कर, गुरु बिन नहीं किनारा।।
इस फंद से छुड़ाना, यम जाल से बचाना।
हे सतगुरु हमारे, तुम बिन न कोई जाना।।
उस सच्चे नाम की हम, आशा लिए खड़े हैं।
सतगुरु शरण में लेलो , चरणों में आ पड़े हैं।।
ये देश काल का है, माया के जाल का है।
हैं लोभ मोह इतने, लाखों जंजाल का है।।
हम हैं यहाँ पराये, प्रभु नाम जपने आये।
ये काल खेल रचकर, हमे मार्ग से भटकाये।।
माया ने जाल डाला, हमे मोह में फंसाया।
फिर कर्म फल बताकर चौरासी में नचाया।।
ये काल है सयाना, दिखलाये खेल नाना।
सबको ये भ्रम में डाले, फेंके अचूक दाना।
हम जीव मोह के बस, बो दाना चर रहे हैं।
सतगुरु दया दिखादो तेरे दर पे आ पड़े हैं।।
मुक्ति का पथ बता दो,निज भेद अब बता दो।
इस देश से छुड़ाकर निज धाम अब पठा दो।।
हम जीव हैं तुम्हारे, बेघर हुए पड़े हैं।
सतगुरु शरण में लेलो,कर जोड़ कर खड़े है।।
श्री गुरुवे नमः।