चिंटू अरे ओ चिंटू,,,,
अस्सी बरस की रामकली बिस्तर पर लेटे लेटेअपने पोते को पुकार रही है।
रामकली बूढी अवश्य हो गई है किंतु जीवन जीने की आशा ने उसे कभी जीर्ण होने नहीं दिया।
खाल सिकुड़ अवश्य गई है किंतु मन की तरुणाई कहीं उसके मनन करते मन के किसी कोने में अभी भी जीवित है।
और जीवन की इसी आशा ने कभी उसके हाथ पांव को जड़ करने की जुर्रत नहीं की।
किन्तु अब हाथ पांव में कम्पन अवश्य होने लगा है।
क्या हुआ जो चन्द कदम चलने के प्रयास में साँस चढ़ जाती है।
इस से उसके मन के दौड़ते मनोभावों को तो विराम नहीं लगता।
बो पुनः अपनी खटिया में लेट कर मन की कल्पना के अश्व पर सवार हो चल पड़ती है अपनी विचार यात्रा पर।
उसका साठ साल का बेटा रामधन जो खुद भी बूढ़ा हो चला है , किन्तु माँ की दृष्टि उसे अभी भी तरुण ही समझती है , और अपनी नसीहत न मान ने पर मन ही मन खीझती है।
रामकली की कल्पना कभी उसे खेत पर ले जाती है जहाँ रामधन अपने खुद की तरह जीर्ण होते बैलों के कंधे पर जुआ रखे, उसमे हल बंधे इनके पीछे पीछे हाथ में लकड़ी लिए कभी पुचकरता कभी भद्दी गालियां देता कभी मरता हुआ चल रहा है।
रामकली सोचती कितने निकम्मे बैल हो गए हैं । मर से भी नहीं बढ़ते बेचारा रामधन इस गति से कैसे इतने बड़े खेत को जोत पायेगा अभी तो तीन हिस्सा बाकि है।
यही बैल रामधन के बापू की एक हांक पर कैसे हवा से आंधी बन जाते थे और आज देखो,,,
रामधन के बापू का ख्याल आते ही रामकली के झुर्रियो भरे गाल लाल हो गए और कुछ क्षण के लिए झुर्रियों के बीच से बीस वर्ष की लजाती हुई सोहनलाल को छिप कर देखती हुई रामकली प्रकट हो गई।
जो दोपहर को मटकती लहराती रोटी की पोटली बांधे पतली मेड़ो से होकर रास्ता छोटा करते हुए खेत पर जा रही है।
उसे मन मीत से मिलने की शिघ्रता है या उन्हें जल्दी खाना खिलाने की लालसा ये तो उसका मन ही बेहतर जाने।
इसे दूर से आता देख सोहन भी बैलों को हल से मुक्त कर पेड़ के नीचे घास पर बैठ जाता। बैल भी शायद उसके आने से प्रसन्न हो जाते ये कार्य मुक्ति की प्रसंता है,,, नहीं नहीं रामकली बैलों के लिए गुड़ के ढेले लेकर आती है उसी लालच में बैल पूंछ पटकते हैं।
सोहन जब तक भोजन करता रामकली उसके मुख को तकती लजाती रहती। कितना प्यार करते थे रामफल के बापू उसे।
और बो खो जाती प्रेम मिलान की उस अद्भुत कल्पना में जिसमे उसके पूरे बदन में जोश और लज्जा के साझा रक्त संचार से कुछ पल को जवान रामकली लौट जाती।
उस कल्पना में रामकली कभी मुस्कुराती कभी लजाती कभी खुद में ही सिमट जाती।कितने भाव उसके मुख की भाव भंगिमा की बदलते रहते।
अब रामकली अपने मन की कल्पना के घोड़े को एड लगाती चली जाती मोहन की दुकान पर ।
मोहन रामकली का पोता और रामफल का लड़का है पैंतीस बरस का मजबूत सुंदर जवान।
रामकली को उसमे सोहन की छवि दिखती बो उसे देख कर बलिहारी जाती।
जग जग जिए मेरा मोहन बिलकुल अपने दादा पर गया है।
आज अगर बो होते तो देखते रत्ती भर का बी फर्क नई पडा सूरत में बोही नयन नक्शा बैसे ही चौड़े कंधे।
और काश बो होते आज ,,,
सोचकर रामकली की आँखे गीली हो गईं यही मोहन दो बरस का था जब इसे बरसात की इस रात उलटी दस्त लग गए थे ।
गांव के हकीम जी ने कहा सोहन सहर ले जा बच्चे को यहाँ इलाज़ न है अब इस बीमारी का।
सारे गांव में बीमारी फैली है साफ सफाई बी न ह गांव में जल्दी कर ।
और सोहन रात में ही मोहन की छाती से कफए दौड़ गया था शहर की और । कोई सवारी का साधन नहीं था बस बही बैल गाड़ी।
और सोहन ने कहा बैलगाड़ी से जल्द तो मैं पहैन्च जाऊंगा बटिया से दौड़ कर ।
ओर भीगते भागते सब मोहन को तो बचा लिया लेकिन खुद को म्यादि बुखार से न बचा पाया और छोड़ गया रामकली को बेसहारा ।
तब से मोहन की रामकली ने अपना साया देकर पाला । अपनी सारी शक्ति अपना सारा सुख और मन के सारे कोमल भाव लगा दिए रामकली ने परिवार को पालने में।
चिंटू उसी मोहन का सात बरस का बेटा है आजकल रामकली सोचरही है रामफल के बापू ने जन्म लिया है चिंटू के रूप में ।
और अपना संपूर्ण बत्सल्य लूट रही है अपने इस पड पोते पर।
आज कोई उसे लड्डू दे गया था सुबह बस बही पल्लु के कोने में बांधे पुकार रही है,,
चिंटू अरे ओ चिंटू कहाँ है रे,,,
तभी कहूँ से चिंटू लौट आया,,
क्या गई दादी,,
हर बक्त चिंटू चिंटू बोल क्या काम है,,
ये बत्सल्य के परदे से बंद आँखे सब अनदेखा करती टटोल कर पल्लु खोलती लड्डू निकलती है।
हैं लड्डू,, कहाँ से लाई दादी मेरी प्यारी दादी कहते हुए चिन्टू उसकि गोद में घुसकर लड्डू में मुह मरने लगता है।