ईश्वर की अदिवतीय कृति ,
हृदय में प्रेम अनंत लिए।
मेरे ख्यालों में रहती थी,
मूर्ति एक सदा हे प्रिये।
मैं उसे निरखता रहता था,
निशदिन अपने स्वप्नों में।
और मन मे चाहत रखता था,
कि मुझको उसका प्रेम मिले।
वह मेरे मन मे रहती थी,
जैसे कि, सुमन में सुगंध रहे।
मेरे मन की केवल इच्छा थी,
जीवन भर वो मेरे साथ रहे।
पर तुमको जब पाया हे प्रिये,
तो उसकी इच्छा खत्म हुई।
जब सामने तुम मेरे आये,
नख से शिख तक सम्पूर्ण वही।
मेरी ईश्वर ने विनती सुन ली,
मुझे स्वप्न परी से मिला दिया।
उस निरंकार अविनाशी की,
मुझे आज मिली सम्पूर्ण दया।