देवराज का दरबार लगा हुआ है , सभी देवता अपने आसनों पैर एवं देवराज अपने इंद्रासन पैर आसन्न हैं।
वातावरण में मधुर संगीत स्वरलहरी गूँज रही है।
गंधर्व अपने वाद्ययंत्रों पर अपनी सम्पूर्ण कला का प्रदर्शन कर रहे हैं।
अप्सराएं सुर से सुर एवं ताल से ताल मिला कर थिरक रही हैं।
तभी देवराज के कानों में कुछ भिन्न स्वर स्फुरित हुआ,,,।
अरे ये कैसी ध्वनि है,,,,!!!! देवेन्द ने तनिक तेज़ स्वर में कहा।
सब शांत हो सुनने लगे।
तभी देवराज के गाल पर कोई सुई सी चुभी।
अरे देखो कोई गुप्त शत्रु घुस आया है ,अभी हमारे ऊपर उसने किसी गुप्त अस्त्र से वार किया है।
खोजो उसे कदाचित कोई राक्षस सूक्ष्म सीधी प्राप्त करके सूक्ष्म रूप में आक्रमण कर रहा है।
सभी देवता गुप्त शत्रु को खोजने लगे।
स्वर्ग में अफरातफरी मच गई तभी अग्नि देव के कोमल कपोल पर कुछ चुभा और वह कराह उठे।
सभी लोग खोजने में लगे थे तभी ।
वीणा की मधुर तान के साथ
नारायण - नारायण की की ध्वनि उच्चारित हुई।
देवऋषि आ गए देवऋषि आ गए सभी हरसमिश्रित स्वर में चहके।
प्रणाम देवऋषि , इंद्रा ने नारद के घुटनो के थोड़ा ऊपर तक ही झुकते हुए दंडवत की।
बाकि देवता यक्ष गंधर्व भी प्रणाम करने लगे ।
अंत में देवगुरु वृहस्पति ने नारद जी को गले लगाया।
आज स्वर्ग में ये उथल पुथल कियूं है देवेंद्र क्या हुआ जो सभी इतने व्यथित और भयभीत लग रहे हो।
क्या बताएं देवऋषि यहाँ किसी गुप्त शत्रु का आक्रमण हुआ है बस उसे ही खोजकर मारने के लिए सब प्रयास कर रहे थे।
देखिये हमारे और अग्नि देव के गाल उसने गमारे ऊपर किसी सूक्ष्म अस्त्र से आक्रमण किया है और हमें संसय है कि उसके अस्त्र में विष का प्रभाव अवश्य होगा।
तभी वायु देव की आवाज गूंजी ये देखिये हमारे गाल पैर बैठा है।
सभी उधर देखने लगे एक छोटा सा कीट उनके गाल पर बैठा था।
अरे ये तो मच्छर है, मृत्युलोक का कीट।
क्या कहा मच्छर ,
देवलोक में मच्छर,
सभी देव आश्चर्य करने लगे।
ये मृत्युलोक में पाया जाता है एवं रक्त चूसने में इसे बहुत आनंद आता है।
लेकिन ये यहाँ किस प्रकार आ गया ? वरूण देव ने शंका प्रगट की।
आ गया हिगा किसी यक्ष गंधर्व या देव के पृथ्वी परिभ्रमण के समय उनके वस्त्रादि या माला में छिपकर।
लेकिन ये सह शरीर स्वर्ग में बहुत आश्चर्य है। गुरुदेव ने कहा।
कदाचित इसने जिसके साथ आया है उसका रक्त पि लिया हो उस से ये अमरत्व पा गया हो।
और आपलोगों को स्वर्ग सुरक्षा जांच चक्र से भी नहीं गुजरना होता अतः ये आसानी से स्वर्ग पहुँच गया हो।
नारद जी ने बताया।
लेकिन पृथ्वी भ्रमण तो आपभी करते रहते हो नारद और अपनी पुष्प मालाओं में स्थान भी पर्याप्त होता है इस जैसे सूक्ष्म प्राणी के छिपने के लिए। राहु में व्यंगात्मक स्वर में कहा।
अपांग व्यक्ति अपबग सोच नारद जी ने मुस्कराकर कहा, क्या कहना चाहते हो राहु मई स्वर्ग से शत्रुता रखता हूँ , तुम शायद भूल गए हो मेरी तनिक तपस्या से तुम्हारा स्वर्ग कैसे डोल उठा था और कैसे मेनका रंभा उर्वसी कामदेव और बाकि सभी देवगन मेरे सन्मुख हाथ जोड़े खड़े थे। और हाँ आपभी तो राहु देव केतु का सहारा लिए मुझे दंडवत कर रहे थे।
यदि मुझे स्वर्ग से शत्रुता होती तो उसी क्षण से स्वर्ग मेरा होता।
राहु को क्षमा करे देवऋषि ये अभी भी अपना असुर स्वभाव नहीं छोड़ पाया है। गुरु वृहस्पति ने कहा।
इससे छुटकारा कैसे पाएं देवऋषि आप ही कोई उपाय सुझाये , इंद्र बे हाथ जोड़ते हुए कहा।
देखो पृथ्वी पैर मनुष्य इससे बचने को वायु अग्नि तड़ित सबका सहारा ले चुका है किंतु मच्छर से छुटकारा नहीं पा सका है।
और अव तो ये अमृत मिश्रित रक्त पी कर अमर हो गया लगता है।
अतः इसको अब आपको राहु केतु के साथ स्थान देकर देवत्व प्रदान कर देना चाहिए और बदले में ये देवलोक में किसी का रक्त भक्षण न करे इससे ये वचन ले लेना होगा।
अभी सब बातें कर ही रहे थे तभी देवराज के कानों में ,
भिन्न भिन्न भुन भून भम भम भुन्न भुन्न भन्न भन्न भायँ भांय का स्वर इंद्रदेव के कानों में गूंज उठा।।
अरे ये तो कितना मधुर गाता है किसी भी वाद्ययंत्र से मधुर स्वर में ।
कियूं न इसे प्रशिक्षण दिया जाये तब ये बहुत मधुर स्वर में गया सकेगा। आज से ये यही रहेगा और अपने मधुर स्वर से सबक मनोरंजन करेगा।
आज से हम इसे सौ गुना वंश बृद्धि का वरदान देते हैं।
और किसी भी प्राणी चाहे राजा हो या प्रजा किसी का भी रक्त पिने की आजादी।
तभी यमदेव ने देवराज के कान में कुछ कहा।
अभी अभी यमदेव ने बहुत उत्तम सुझाव् दिया है , जिसके अनुसार आज से ये यमदेव का कार्य करेगा और इसके सभी वंशजो को यमदूतों की श्रेणी में रखा जायेगा , आज से ये मलेरिया एक घातक रोग के विषाणुओं का वाहक होगा और मलेरिया फैलाकर प्राणियों को यमलोक भेजने का कार्य करेगा।
इसके लिए यमदेव इसे हज़ार गुना वंश वृद्धि का वरदान देते हैं।
सभा समाप्त।
और तभी से मानव मच्छर के मधुर स्वर का कष्ट उठा रहा है।
पंखे कूलर सभी वायु पड़ता इसके सामने वेअसर हो रहे हैं।
अगरबत्ती धुआँ मच्छर बत्ती सभी अग्नि उपकरण भी असरहीन हैं।
और कितने ही करंट बाले उपकरण भी तड़ित हिकर इसे प्रताड़ित नहीं कर पा रहे हैं।
इसका वंश हजार गुना बढ़ता जा रहा है। और हम बेवस देख रहे हैं।
मीठा बोलकर मच्छर भी अमर हो गया।
हम प्राणियों का चैन अमन खो गया।
तीन दिन से बुखार से पीड़ित हूँ इसी लिए ये ख्याल आया गया ।
मित्रों के विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।