पिछले सप्ताह हमारे टाउन में जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में झांकी का आयोजन किया गया।
झांकियां मंत्रमुग्ध कर रही थीं ।
मैं भी अपने 8 वर्ष के बेटे के बहुत जिद करने के कारण उसे झांकी दिखाने ले गया।
हम एक दुकान के ऊंचे चबूतरे पर खड़े होकर झांकियीं के आकर्षण में खोए थे , मेरा बेटा बहुत प्रसन्न था और बार बार मुझसे सवाल पूछ कर मानो मेरी परीक्षा ले रहा था , या कि अपना ज्ञानवर्धन कर रहा था।
पापा ये काली माता के गले मे हेड्स कियूं पहने हैं,,
पापा पापा ये इनका tounge इतना रेड कियूं है।
पापा वह देखो कृष्ण भगवान सांप के ऊपर, my गॉड कितने सारे heads उस स्नैक के।
और मैं उसकी जिज्ञासा को अपने स्तर से सुलझा रहा था।
तभी मेरा ध्यान सामने की दुकान पर खड़े एक सज्जन पर गया।
मैं जैसे अटक ही गया , बहुत ही चिर परिचित चेहरा बहुत पहचानी भाव भंगिमा।
को हैं ये , कियूं इतने आत्मीय लग रहे हैं ।
मैं अपने विचारों में उलझ गया , बेटे के शब्द अब मुझे बहुत धीमी आवाज लगने लगे ।उनसे मेरा ध्यान अब नही हट रहा था ।
कहीं तो देखा है इनको लेकिन कहां ??कब?? कुछ याद नही आ रहा था।
पास जा कर देखता हूँ शायद कुछ स्मरण हो जाये।
मन मे निश्चय कर बेटे का हाथ पकड़ा, यहां से साफ नही दिखता देखो सारी झांकी उधर से ही घूम रही हैं। बेटे से कहा।
हां पापा चलो उसी दुकान पर चलते हैं , वहाँ चॉक्लेट भी हैं , पापा मुझे भी दिलाओगे ना।
हाँ चलो ,, दिला दूँगा , मैं अपनी धुन में बोला।
मैं तो दो लूँगा।बेटा चहकते हुए बोला।
हैं ले लेना मैंने इसका हाथ पकड़ा और दौड़ कर सामने की दुकान पर जा पहुंचा ।
बहुत कठिनाई से भीड़ में अपने लिए उनके पास जगह बनाई।
बेटा दुकान के अंदर खड़ा हो गया और दुकानदार से चॉकलेट मांगने लगा मैंने उसे दे देने का इशारा किया।
अब मैं उनके एकदम पास खड़ा मस्तिष्क में जमा यादों के समुंदर में गोते लगा कर उन्हें खोजने लगा।
और उनके चेहरे की झूर्रियों को मिटा कर उनके वजन को थोड़ा घटाकर एक छवि उभरी।
नर्सरी टीचर!!!!!!
30 साल बाद,,,,,,,
हां वही तो हैं ये,
मेरे पहले टीचर।
एक से तीन तक पढ़ने वाले।
अब मुझे सारी धुंधली यादें स्पस्ट दिखने लगीं।
हम तब गांव में रहते थे , पिताजी खेती के साथ ही पूजा पाठ और वैध का काम करते थे।
एक दिन हमारे पड़ोसी सुनार जिनकी सोने चांदी के आभूषण की दुकान थी पिता जी से कह रहे थे , पंडित जी आपको पता है गांव में टाउन के दो लड़कों ने पांचवी तक का अंग्रेजी का स्कूल खोला है।
आप भी अपने लड़के को भेज दो ।में भी भेज रहा हूँ।
और दूसरे ही दिन से मैं अंग्रेजी स्कूल में जाने लगा।
ये बही राजकुमार सर है। जिन्होंने सक्सेना सर के साथ मिलकर वह स्कूल खोला था। मेरा पहला स्कूल।
मेरा रोम रोम पुलकित हो रहा था ,मन उनसे बात करने को उतावला।
किन्तु एक अनजान भय कदमों को रोके हुए था, यदि वे न हुए तो!!!
तीस साल हो गए, यदि पहचानने में भूल हुई तो।
नही नही पक्का राजकुमार सर ही हैं, अंदर से विस्वासपूर्ण आवाज आगे बढ़ने को कहती।
इसी उहापोह के चलते कुछ समय और बीत गया झांकी भी अब अंतिम दृश्य दिखा रही थी , कृष्ण सुदामा गुरु सांदीपनि के चरणों मे बैठे उनके पैर दबाते हुए और गुरु सांदीपनि उन्हें आशीष देते हुए।
और मैं भी आगे बढ़ रहा था,,,
नमस्ते सर, आसपास एक बात पूछनी थी ।
हां कहो!!
क्या आपने अमुक गांव में कभी स्कूल में पढ़ाया है??
हाँ सन नव्वे के आस पास,,
रोम रोम खिल उठा मेरा सही पहचान लिया मैने सर,, मैं उनके पैरों में झुक गया।
उन्होंने मेरे सर पर हाथ रखा,, लेकिन बेटा मेने आपको नही पहचाना।
कैसे पहचानेंगे सर, मैं नृपेंद्र आपका वही साल 85 का नर्सरी का विद्यार्थी। गांव के पंडितजी का लड़का।
अरे तुम ,,, कितने बड़े हो गए हो।
सर मेरा बेटा , मुझे देखकर बेटा भी उनके पांव छू रहा था ।
बेटा ये हैं मेरे पहले टीचर, मेरे नर्सरी टीचर मैने गर्व से कहा।
उन्हीने मेरे बेटे को गोद मे उठा लिया और हम बातें करते हुए घर की ओर लौटने लगे।
उनके चेहरे पर आत्मीयता की मुस्कान थी और आँखे प्रेमाश्रुओं से गीली।
ये सत्य घटना है कोई कहानी नही।
शिक्षक दिवस पर सभी शिक्षकों को सम्मानपूर्ण प्रणाम।
एवं सभी विद्यार्थियों को योग्य एवं ज्ञानी बनाने वाले शिक्षक पाने पर बधाई।
श्री गुरुवे नमः।