आज मेरा देश दुगुनी खुशियां मना रहा है।
एक और श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की धूम है वहीं हमारे अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति का दिन।
श्री कृष्ण एक संपूर्ण अवतार जो आये थे सोलह ललित कलाएं लेकर।
ईश्वर के यूं तो अनेकों अवतार हुए हैं , किन्तु सबसे अधिक पूजनीय एवं प्रसिद्ध है बाल गोपाल ,माखन चोर ,मदनगोपाल, गोपियों के मन मीत, श्यामवर्ण श्रीक्रष्ण।
श्रीक्रष्ण का जन्म जेल में हुआ था किंतु उनके अवतरण के साथ ही जेल के सम्पूर्ण ताले स्वतः खुल गए , ये प्रतीक है कि ये अवतार बंधन से मुक्ति दिलाने को ही हुए था।
आज भी यदि कोई जन्मजन्मांतर से मुक्ति चाहता है तो या तो स्वम् गीतापाठ करता है या उसके परिजन इसके लिए गीता पथ करवाते हैं। ये बात अलग है कि परिजन गीता पाठ उसके जन्मजन्मांतर की मुक्ति को सोचकर कम और बूढ़े बीमार की सेवा से उकताकर अपनी सेवा मुक्ति की कामना से अधिक करते है।
हम बात कर रहे है श्री कृष्ण के अधिक प्रसिद्ध अवतार की ।
श्रीक्रष्ण का ये अवतार हुआ था द्वापरयुग ओर कलयुग की संधि पर।
ये द्वापरयुग के जीवन नियमो के साथ ही कलियुग के जीवन नियमो को भी बताते हैं ।
अपने लाभ को सर्वोपरि करने के लिए आज लोग श्री कृष्ण की गीता का उद्धरण तुरंत पेश करता है।
श्री कृष्ण जी ने महाभारत में कितने ऐंसे उदाहरण दिए हैं जिनमे आज के जीवन मूल्यों का मार्गदर्शन दिया गया है।
और आज हम श्री कृष्ण जी को शायद इसी कारण से अधिक शक्तिशाली सर्वकालिक अवतार मानते हैं।
जय श्री कृष्ण।
और इसी पावन दिवस पर हम एक और गौरवपूर्ण पर्व मना रहे हैं,
जो प्रत्येक भारतवासी का पर्व है।
स्वतंत्रतादिवस जो किसी धर्म किसी जाति या किसी मर्यादा में नही बंधा है ये प्रत्येक भारतीय नागरिक के गौरव का पर्व है।
लंबी बिर्टिश परतन्त्रता के बाद , अनेकों भारतीय नौजवानों, बच्चो बूढ़ों, महिलाओं के प्राणाहुति के बाद हमे 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजी दासता से मुक्ति मिली। और ये हमारा राष्ट्रीय पर्व हो गया,किन्तु क्या हम पूर्ण स्वतंत्र हो पाए? आज भी हम अँग्रेजी शिक्षा नीति ,अंग्रेजी भाषा अंग्रेजी पहनावा, अंग्रेजी खानपान ,
अंग्रेजी ,अंग्रेजी, अंग्रेजी न जाने कितने अन्य स्थानों पर अंग्रेजी के गुलाम नजर आते हैं । या यूं कहें कि अंग्रेजी के आगे बेवस हो जाते हैं।
कियूं हम आजाद होकर भी अदृश्य रूप से मानसिक गुलामी की जंजीर बांधें घूमते हैं ।
हम कियूं ये अंग्रेजी मानसिक अस्वतंत्रता से खुद को मुक्त नही कर पाते? या शायद कभी प्रयास ही नही करते।
किउंकि हम कभी इस विषय पर चिंतन ही नही करते।
चन्द पंक्तिया पढ़े,
आज़ादी की दास्ताँ सुनना सुनाना छोड़ दो,
कैसे बचाएं देश को अब ध्यान कुछ इस ओर दो।
बाद के आज़ाद मुल्क आज विकसित हो गए।
आज भी खुद को विकासशील कह कर इतराना छोड़ दो।
सोचिए अब मिलकर सब बस एक भारत के लिए,
त्याग कर अपने अहम और धर्म जाति के नियम।
जो जले थे यज्ञे आज़ादी के हवन में सोचिए ,
क्या थी जाती क्या धर्म था उनका जरा बोलिए।
याद करते हैं उन्हें हर वर्ष लेकिन याद में,
कियूं नही अपनाते उनको भारतीय समाज में।
अंग्रेजी भाषा मे ढलना और पलना छोड़ दो,
जो भी हैं रुकावटें विकास मिलकर उनको तोड़ दो।
आज़ादी की दास्ताँ सुनना सुनाना छोड़ दो,
कैसे बढ़ाएं मुल्क को अब धयान कुछ इस और दो।