कहते हैं कि कलयुग है, पर किसी को भी कल नही है।
हर किसी के पास कल है , फिर भी सबको बेकली है।
जितनी बनती कल नई है, उतनी बढ़ती बेकली है।।
काम होता सभी कल से ,फिर भी कल पर टल रहा है।
कल से मानव आलसी ,दिनपर दिन होता जा रहा है।
काम बिगड़ा कल से, मानव खुद पर गुस्सा खा रहा है।।
कल का क्षेत्र आज बढ़ता जा रहा है।
पर मानव का कल तो घटता जा रहा है।
कल से उतपन्न प्रदूषण से दम घुटता जा रहा है।।
कल-कल करती थीं जो नदिया, कल स्वतंत्र रूप से।
आज कल ने बन्द कर दी ,उनकी कल-कल।
निर्जल हो अब रहती नदिया,नही तनिक लहरों की हलचल।।
देख मानव ऐंसा ही कल, होगा तेरे साथ।
इसलिए तू बैठ मत ,रखकर हाथ पर हाथ।
स्वामी बन कर चल ,रख नियंत्रण अपने हाथ।
जाग मानव ,कल का करदे बन्द बनाना।
वरना कल तुझको ,कलें बनाएंगी गुलाम अपना।
काम कल पर टालना ,तू बन्द करदे।
वरना शिथिल हो जाएगा ,ये बदन तेरा।
चेत जा हे मानव आज, वरना कल तुझपर करेंगी कलें राज।