16/7/22
प्रिय डायरी,
आज मैंने शब्द.इन में वक़्त शीर्षक पर कविता लिखी।
हम सब छोटे थे तब का वक़्त कुछ और ही था। जो मम्मी डैडी ने कह दिया तो उनकी बात को टाल नहीं सकते थे जो कह दिया तो आज्ञा शिरोधार्य होती थी भले चाहे अंदर से मन न करे किन्तु इनकार नहीं कर पाते थे।
पहले हम लोग के वक़्त में मंहगाई भी इतनी नहीं थी जितनी आज के वक़्त में है। दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। चाहे वह राशन हो चाहे वह गैस सिलेंडर हो दिन प्रतिदिन दाम बढ़ते ही जा रहे हैं।
आज के वक़्त में घूमने के लिए मॉल सबसे उपयोगी जगह जहां हर वस्तु मिल जाती है। शॉपिंग सेंटर, रेस्टोरेंट, पिक्चर हॉल सभी कुछ एक छत के नीचे मिल जाता है। किन्तु घूमने के लिए आमदनी भी उतनी ही अधिक होनी चाहिए। सिर्फ देखना हो तो सब देख कर आ जाओ। आज कल आमदनी अट्ठनी और खर्चा रुपया हो गया है।
धन्यवाद
अनुपमा वर्मा ✍️✍️