संकल्प का दूसरा नाम,'' प्रतिज्ञा ''भी है ,जैसे भीष्म पितामह ने ली थी किंतु उसके कारण उन्हें और उनके राज्य को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा। तभी आज के समय में यदि कोई कहता है -मैं यह कार्य नहीं करूंगा मैंने ''संकल्प ''लिया है। तब उसके संकल्प को तुड़वाने के लिए ,कह देते हैं -कुछ नहीं होता ,तूने क्या ''भीष्म प्रतिज्ञा ''ले ली है ?
''संकल्प ''लेना कोई बुरी बात नहीं है ,किंतु उसे निभाना बहुत ही मुश्किल है। उसको निभाने के लिए कई बार अनेक कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ जाता है। अनेक परेशानियां उठानी पड़ती हैं, किंतु यदि वह सफल हो जाता है , तो उससे बेहतर कोई इंसान नहीं। अपने किये ' संकल्प 'को निभाने के लिए, कई बार लोग , विपत्तियों को देखते हुए 'संकल्प' ही त्याग देते हैं। छोटे-छोटे संकल्प तो हर कोई ले लेता है -जैसे मैं शराब नहीं पियूंगा, सिगरेट छोड़ दूंगा , मांसाहारी भोजन नहीं करूंगा। आज मैं मेहनत से पढ़ूंगा, और अबकी बार कक्षा में प्रथम आऊंगा। आज मुझे अपना बाकी का कार्य पूर्ण कर लेना है या जैसे हम भी कह सकते हैं, अब मैं यह अपनी कहानी के, संपूर्ण भाग पूर्ण कर लूंगी, किंतु क्या ऐसा हो पाता है ? हो सकता है, मनुष्य में संकल्प लिया हो और वह प्रयासरत भी है किंतु वह बीमार हो गया। शारीरिक अस्वस्थता के कारण वह अपने संकल्प को पूर्ण करने में, अपने को सक्षम नहीं पाता है। किंतु कई लोगों का दृढ़ संकल्प, इतना कठोर होता है ,उन्हें अपने स्वास्थ्य की भी परवाह नहीं रहती और अपने कार्य में तल्लीन रहता है।
पुराने समय में ऋषि -मुनियों का दृढ़ संकल्प ही , उन्हें वर्षों तक कठोर तपस्या करने देता था। हर आदमी का, संकल्प लेने का तरीका अलग है, कई लोग ,अपने देश के हित के लिए 'संकल्प ''लेते हैं ,देश की भलाई में ही सबका हित समझते हैं। चिकित्सक भी ,सेवा का संकल्प लेते हैं। एक सेनानी भी ,जान की बाज़ी लगाकर देश की आजादी का संकल्प लेता है ,उनके कर्त्तव्य बहुत ही ,महत्वपूर्ण होते हैं और उस 'संकल्प 'को पूर्ण करने के लिए प्रयासरत रहते हैं। कई बार अपने को समझाने के लिए ही,इंसान अपने आप से ही संकल्प ले लेता है ,किंतु यदि उसे अपना संकल्प पूर्ण करना है, तो उसे अपनी बात पर दृढ़ रहना होगा। अधिकतर बुराइयों को छोड़ने के लिए ही, संकल्प लिए जाते हैं। अच्छाइयों और सही राह पर चलने के लिए , ''दृढ़ संकल्प ''होना ही पड़ता है।