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हा, कि मैं खो जा सकूँ! हा, कि उस के भाल पर अवतंस-पद मैं पा सकूँ हा, किस उस के हृदय पर एकाधिकार जमा सकूँ! टूट कर उस के करों, चिर-ज्योति में सो जा सकूँ हा, कि उस के चरण छू कर आत्मभाव भुला सकूँ! यदि

सब ओर बिछे थे नीरव छाया के जाल घनेरे जब किसी स्वप्न-जागृति में मैं रुका पास आ तेरे। मैं ने सहसा यह जाना तू है अबला असहाया : तेरी सहायता के हित अपने को तत्पर पाया। सामथ्र्य-दर्प से उन्मद मैं ने जब

बन्धुओं की सब बातें सुन। सकल प्रस्तुत विषयों को ले॥ समझ, गंभीर गिरा द्वारा। जानकी-जीवन-धन बोले॥81॥ राज पद कर्तव्यों का पथ। गहन है, है अशान्ति आलय॥ क्रान्ति उसमें है दिखलाती। भरा होता है उसमें

महर्षिकल्प, महामना, परमपूज्य कुलपति श्रीमान् पंडित मदनमोहन मालवीय के पवित्र करकमलों में सादर समर्पित वक्तव्य करुणरस करुणरस द्रवीभूत हृदय का वह सरस-प्रवाह है, जिससे सहृदयता क्यारी सिंचित, मानवता फ

"सत्य कथन के लिए लज्जा की आवश्यकता नहीं है।"  {91}  "सुधार एक दिन में नहीं होता... इसके लिए सतत प्रयत्न की आवश्यकता होती है।"   {92} "समय व्यक्ति का बुरा होता है समूह का नहीं।"   {93}

"गुरुत्वाकर्षण पर टिका... सितारों से टका... एक चंदोवा है आकाश। राह दिखाता पथ के पथिक को मेरा तुम्हारा सब का घर है आकाश।"   {39}    "सन्नाटे का शोर बड़ा भयानक होता है... हृदय को चीरकर मस्तिष्क क

"मंदिर,मस्जिद,गिरजा,गुरुद्वारे बिखरे एक ही स्वर के तार। पाहिमाम् पाहिमाम् की हो रही सर्वत्र पुकार।" {37}  "जो समय पर साथ दे जाए... वही सच्चा मित्र,भाई और पड़ोसी है।" {38}

"न रुकी वक्त की गर्दिंश और न ज़माना बदला। पेड़ सूखा तो परिन्दो ने ठिकाना बदला।"  {10}    "दुःख का कारण कर्म का अभाव है।  सुख का कारण कर्म का प्रभाव है  और शांति का कारण स्वयं का स्वभाव है।"  {11}

"जब दर्द शरीर में रच बस जाता है... तो दुख से ऊपर उठकर प्रेरणा बन जाता है।"  {1}  "वर्तमान की चौखट से झांकता भविष्य ...  वर्तमान से ही बनता अतीत अदृश्य।  परिप्रेक्ष्य से वर्तमान के बनता भूत भविष्य।

प्रेरक विचार या सुभाषित ऐसे शब्द-समूह, वाक्य या अनुच्छेदों को कहते हैं जिसमें कोई बात सुन्दर ढंग से या बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके से कही गयी हो। सुवचन, सूक्ति, अनमोल वचन, आदि शब्द भी इसके लिये प्रयुक्त हो

दुख के काले बादल बीच निकलेगा फिर सुख का चांद। करो प्रतीक्षा श्रमरत रहकर मत डालो आलस का बांध   शत्रु है यह जीवन का दीमक सम यह लगता है। धीरे-धीरे खाता मन को काया को यह हरता है। कमजोर इच्छा शक्त

कुछ तुम बदलो कुछ हम बदले... बदलेगा जमाना। जैसा सोचा-जैसा चाहा फिर आएगा जमाना।   आकाश को छूने चला किस बात का डर राही। हौंसला ले डर से अपने चूम बुलंदियों को राही।   घबरा मत राह-रोड़ो से सुपथ

ये बात उस जमाने की है जब नहीं था बेतार का तार। पर जुड़े थे मन के तार मन से मन के लिए मन को मिल जाता था संदेश। तार जुड़ते थे आत्मीयता के हिलोरों से हृदय हरिया जाता था।   ये बात उस जमाने की है

तुम चले हो मिटाने नारी का वजूद। कहाँ तक मिटा पाओगे कहाँ-कहाँ नहीं है उसका वजूद।   दरवाजों की चरमराहट में खिड़कियों की खड़खड़ाहट में बरतनों के ठनकने में चूड़ियों के खनकने में। कहाँ तक मिटा पाओ

हे ग्राम देवता नमस्कार  धरती का करते उपकार।  किसने ये उत्पात किया।  धरती को आहत किया।     देख उसके कुकृत्यों को  सुखदेव भगत रो रहा आज।  शेखर सुभाष की कुर्बानी की  ना रखी उसने तनिक लाज।     क

तूफान सिर्फ दूर बैठे समुंदर में नहीं मेरे तुम्हारे सबके अंदर उठता है एक तूफान तूफान अरमानों का तूफान उम्मीदों का तूफान जज्बातों का तूफान जागीरों का।   होश में जोश खोने का गिरती दीवारों को उठ

हम मनुज हैं मनुज का सहारा बनें। डरे-डूबे हुओं का                      किनारा बनें।   नर से नारायण बनकर              हम सेवा करें। दीन-दुखियों के दुख को                  हम दूर करें। हम चलें आ

काम कितना हो कठिन सबको करना चाहिए। राष्ट्र सेवा के लिए सबको बढ़ना चाहिए। जन्म लेकर इस धरा कुछ तो मोल चुकायिए। काम कितना हो कठिन सबको करना चाहिए।   ध्येय मार्ग पर चल करके हिम्मत कभी न हारिए।

दौड़ो ना तुम चांद पार के धरती पर ही कदम बढ़ाओ। उड़ती चिड़िया से लेकर हौंसला तन मन से कर्म में जुट जाओ।   लेकर सूरज से आंतरिक ऊर्जा पहले तन मन स्वस्थ बनाओ। होकर समर्पित राष्ट्र भूमि पर जीवन अपन

कौन कहता है?    2020 बुरा था।  वह तो शुभचिंतक था   हमारा तुम्हारा।  आया था जगाने  कलियुगी नींद में सोये  हम सबको।   हर चीज की  अति बुरी होती है।  स्वार्थी बनकर  हम कर रहे थे खिलवाड़  नेचर क

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