आओ चलें....
सूरज
के सिर पर,
बादल
की छतरी रख दें;
मुट्ठी
में भर कर
नदी
ले चलें--
आसमान की
छत तर कर दें.
धूप के धागे
एक-एक कर,
चढ़ा लें चाँद की
चरखी पर
पूस की ठिठुरी
रातों में,
फिर खोलेंगे उन्हें
जी भर कर.
ताल किनारे
बरगद पर
गौरैया का
छोटा सा घर
सतरंगी धागों में लिपटी
गाए तराना
हँस-हँस कर--
आओ चलें
सूरज के सिर पर......