कितना फ़र्क है
आदमी-आदमी में,
कोई क़तरा-कतरा
तो कोई समंदर सा,
रास्ते पथरीले,
रोशनी मद्धम
हवाओं में था
एक बवंडर सा...I
दिल जो मिले
उजाले मिल गए,
हर लम्हा हो गया,
ख़ुशी का पयम्बर सा I
28 दिसम्बर 2015
कितना फ़र्क है
आदमी-आदमी में,
कोई क़तरा-कतरा
तो कोई समंदर सा,
रास्ते पथरीले,
रोशनी मद्धम
हवाओं में था
एक बवंडर सा...I
दिल जो मिले
उजाले मिल गए,
हर लम्हा हो गया,
ख़ुशी का पयम्बर सा I
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आकाशवाणी के कानपुर केंद्र पर वर्ष १९९३ से उद्घोषक के रूप में सेवाएं प्रदान कर रहा हूँ. रेडियो के दैनिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त अब तक कई रेडियो नाटक एवं कार्यक्रम श्रृंखला लिखने का अवसर प्राप्त हो चुका है. D
अति सुन्दर भाव !
28 दिसम्बर 2015