
दुनिया
की भीड़ में,
जाने क्या तलाशती
फिरती हैं दो आँखें,
रंग-बिरंगे
मुखौटों के पीछे से
झांकती, बेचैन,
अनमनी सी कभी,
और कभी घबराई सी!
तलाश...
मुसलसल तलाश;
उस शय की,
जो नहीं है,
दूर-दूर तक कहीं;
और जो करीब है,
बहुत करीब...
उससे रगबत ही नहीं...
तलाश...
मुसलसल तलाश,
जारी है अभी...