हिय पल-छिन
नव निर्माण करे,
जग की डाली पर
मन-पाखी के
स्वप्निल नीड़ धरे।
नई आस-उम्मीदों
नव स्वप्नों के,
नवकल्पना
नवसृजन के,
दाने-तिनके
नए पात लिए ।
सुख-दुःख के
अविरल रंगों के,
उन्मुक्त उड़ान
नव पंखों से,
साहस उमंग
उत्साह लिए !
2 सितम्बर 2015
हिय पल-छिन
नव निर्माण करे,
जग की डाली पर
मन-पाखी के
स्वप्निल नीड़ धरे।
नई आस-उम्मीदों
नव स्वप्नों के,
नवकल्पना
नवसृजन के,
दाने-तिनके
नए पात लिए ।
सुख-दुःख के
अविरल रंगों के,
उन्मुक्त उड़ान
नव पंखों से,
साहस उमंग
उत्साह लिए !
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आकाशवाणी के कानपुर केंद्र पर वर्ष १९९३ से उद्घोषक के रूप में सेवाएं प्रदान कर रहा हूँ. रेडियो के दैनिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त अब तक कई रेडियो नाटक एवं कार्यक्रम श्रृंखला लिखने का अवसर प्राप्त हो चुका है. D
आपकी यह कविता मैंने आईआईटी की 'अंतस' में पढ़ी है ! बहुत सुन्दर कविता !
20 अप्रैल 2016