सावन की पुरवईया गायब ..पोखर, ताल, तलईया गायब...!
कट गये सारे पेड़ गाँव के.. कोयल और गौरईया गायब.....!
कच्चे घर तो पक्के बन गये.. हर घर से अंगनैया गायब.....!
सोहर, कजरी ,फगुवा भूले.. बिरहा नाच नचईया गायब....!
नोट निकलते ए टी म से....पैसा, आना, पईया गायब......!
दरवाजे पर कार खड़ी हैं.. बैल,, भैंस,,और गईया गायब...!
सुबह हुई तो चाय की चुस्की...चना-चबैना,लईया गायब...!
भाभी देख रही हैं रस्ता.... शहर गए थे, भईया गायब...!
-अशोक अनुराग