फूलों की तरह
कलियों की तरह,
नदियों की तरह
झरनों की तरह,
तितली की तरह,
हिरनों की तरह,
सूरज की सुनहरी
किरणों की तरह,
तुम चलते रहना I
वक़्त की तह में
टिक-टिक करते
लम्हों की तरह,
चलते-चलते
किसी मोड़ पर
मिल जाऊंगा;
मिलोगे ना...?
10 अक्टूबर 2015
फूलों की तरह
कलियों की तरह,
नदियों की तरह
झरनों की तरह,
तितली की तरह,
हिरनों की तरह,
सूरज की सुनहरी
किरणों की तरह,
तुम चलते रहना I
वक़्त की तह में
टिक-टिक करते
लम्हों की तरह,
चलते-चलते
किसी मोड़ पर
मिल जाऊंगा;
मिलोगे ना...?
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आकाशवाणी के कानपुर केंद्र पर वर्ष १९९३ से उद्घोषक के रूप में सेवाएं प्रदान कर रहा हूँ. रेडियो के दैनिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त अब तक कई रेडियो नाटक एवं कार्यक्रम श्रृंखला लिखने का अवसर प्राप्त हो चुका है. D
धन्यवाद, चंद्रेश जी !
2 अप्रैल 2016
धन्यवाद, उषा जी !
2 अप्रैल 2016
बहुत प्रेरक रचना है, सर ।
12 अक्टूबर 2015
विजय जी, आभार !
12 अक्टूबर 2015
चलते-चलते किसी मोड़ पर मिल जाऊंगा - वाक्य में ही दिल को छू लेने वाली रचना
10 अक्टूबर 2015