पूछ रहे हो क्या अभाव है
तन है केवल प्राण कहाँ है ?
डूबा-डूबा सा अन्तर है
यह बिखरी-सी भाव लहर है ,
अस्फुट मेरे स्वर हैं लेकिन
मेरे जीवन के गान कहाँ हैं ?
मेरी अभिलाषाएँ अनगिन
पूरी होंगी ? यही है कठिन
जो ख़ुद ही पूरी हो जाएँ
ऐसे ये अरमान कहाँ हैं ?
लाख परायों से परिचित है
मेल-मोहब्बत का अभिनय है,
जिनके बिन जग सूना सूना
मन के वे मेहमान कहाँ हैं ?
-गीतकार शैलेन्द्र