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आठवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022

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(जेनी का विशाल भवन। जेनी एक सायेदार वृक्ष के नीचे एक कुर्सी पर विचारमग्न बैठी है)
जेनी – (स्वगत) मन को विद्वानों ने हमेशा चंचल कहा है। लेकिन मैं देखती हूँ कि इसके ज्यादा स्थिर वस्तु संसार में न होगी। कितना प्रयत्न किया कि रंजन को भूल जाऊँ, लेकिन जितना ही उससे दूर भागती हूँ उतना फंदा और कठोर होता जाता है। महीनों से प्यानो पर नहीं बैठी। दिल जैसे मर गया है। वही सूरत आँखों में फिरती है, वही बातें कानों में गूंजती है। यही रंजन से रूपवान पुरुष पड़े हुए है, उनसे कहीं विद्वान्, पर किसी से बोलने की इच्छा नहीं होती। मैं जानती हूँ मैं जरा भी हिम्मत दिखाऊँ तो वे मुझ पर प्राण देने लगेंगे। कितने आसक्त, लुब्ध नेत्रों से मेरी ओर देखते हैं। किसी से दो एक बात कर लेती हूँ तो कितने निहाल हो जाते है, पर उस देवता के सामने सब ये खिलौने हैं। खिलौने में रंग है, रूप है कला है, उस देवता से कहीं ज्यादा, पर कुछ बात है जो देवता में श्रद्धा और प्रेम उत्पन्न करती है, खिलौनों के प्रति केवल विनोद का भाव। वह क्या बात है? प्यारे रंजन, तुमने मुझ पर क्या जादू कर दिया।
(मिसेज विलियम आती है)
मिसेज विलियम – तू यहाँ कब तक बैठी रहेगी, जेनी! अब तो शबनम पड़ने लगी?
जेनी – कमरे में तो मेरा दम घुटता है मामा!
मिसेज विलियम – मैं बहुत अच्छा पुडिंग बनाया है। चल थोड़ासा खा ले। तूने दिन-भर कुछ नहीं लिया। जरा आईने में अपनी सूरत देख। जैसे छः महीने की रोगिनी हो।
जेनी – मेरी अभी कुछ खाने की इच्छा नहीं है, मामा! क्षमा करो। इधर कई दिनों से रंजन को कोई खत नहीं आया। मेरा दिल धड़क रहा है। कहीं दुश्मनों की तबियत खराब न हो।
मिसेज विलियम – जब तेरी तबियत का यह हाल है तो क्यों रंजन से विवाह नहीं कर लेती? वह बेचारा हर तरह राजी है, पर तुझे न जाने क्या खब्त हो गया है। खुद भी मरती है और उस बेचारे को भी रुलाती है। जब वह धर्म की ओर संबंधियों की परवाह नहीं करता तो उससे क्यों नहीं कहती – प्रभु मसीह पर ईमान लाए। प्रेम का उद्देश्य जीवन का सुख है, या सारी उम्र रोते रहना?
जेनी – यही तो मैं भी सोचती हूँ। मुझे में तो कोई तब्दीली हो न जाती, हाँ उनके समाज को संतोष हो जाता। अगर मैं जानती, उनका हृदय इतना कोमल है तो उन्हें छोड़कर न आती। मुझे तो अब अपनी जिद्द पर पछतावा हो रहा है। धर्म और सिद्धांत आदमी के लिए हैं। आदमी उनके लिए नहीं हैं। मामा, मैं तुमसे अपनी विकलता क्या कहूँ। ऐसा मन होता है कि पर होते तो इसी वक्त उड़कर पहुँच जाती और कहती – डार्लिंग, मुझे क्षमा करो। यह तीन महीने मैंने जिस तरह काटे हैं, वह तुमने देखा है? एक क्षण के लिए भी उनकी सूरत आँखों से नहीं उतरी। ऐसे । प्रेम पर अपना सर्वस्व अर्पण कर देने वाले प्राणी भी संसार में हैं, वह मैंने उन्हीं को देखा । मुझे स्वर्ग की विभूति मिल रही थी, मामा! मैंने समाज के भय से उसे ठुकरा दिया। मैंने समझा था मामा, मेरे चले जाने के बाद भोग-विलास में उनका जी बहल जाएगा, फिर किसी युवती से विवाह करके इनका जीवन सुखी हो जाएगा। क्या जानती थी वह मेरे वियोग में अपने को घुला डालेंगे। कल अगर उनका पत्र न आएगा तो मैं चली जाऊँगी मामा! तब मुझे तुम्हारी बड़ी चिंता थी, मामा? मैं डरती थी कहीं मैं उनसे विवाह कर लूँ तो तुम जहर न खा लो। अब मैं तुम्हारी ओर से भी निश्चिंत हूँ।
मिसेज विलियम – क्या तू समझती है विलियम से शादी कर लेने से मेरे दिल में तेरी मुहब्बत नहीं रही?
जेनी – यह बात नहीं है मामा! कम-से-कम तुम्हारे साथ एक आदमी तो है, जो तुम्हारी रक्षा करता रहेगा।
मिसेज विलियम – विलियम मेरे पीछे पड़ गया, प्राण दिए देता था, नहीं, इस उम्र में मुझे शौहर की हवस नहीं थी।
जेनी – तो मैं तुम्हें कुछ कहती थोड़े ही हूँ मामा! विलियम में अगर दो-एक बुराइयाँ हैं तो हजारों खूबियाँ भी है। मैं तो ज्योंज्यों उसका परिचय पाती हूँ, उनके प्रति मेरी श्रद्धा बढ़ती है। वह सचमुच ही तुम्हारे योग्य थे, मामा!
(तार का चपरासी तार लाता है। जेनी का रंग उड़ जाता है। काँपते हुए हाथों से लेती है और पढ़ते ही मूर्छित होकर गिर पड़ती है –
Yograj breathed his last with Jenny's name on his lips to the last moment.)
मिसेज विलियम – या खुदा, या मेरे परवरदिगार, यह क्या गजब हुआ।
(जेनी के हृदयस्थल पर हाथ रखती है। फिर बदहवास दौड़ी अंदर जाती है और गुलाबजल लाकर जेनी के मुख पर छिड़कती है। समीप कोई पंखा न होने के कारण उस समाचार-पत्र से हवा करती है, जो जेनी ने पढ़कर कुर्सी के नीचे रख दिया था। बीचबीच में खुदा का नाम लेती है और इंतजार भरी आँखों से फाटक की ओर देखती है कि विलियम आता होगा। एक मिनट के बाद जेनी सचेत हो जाती है)
जेनी – मैं बिल्कुल अच्छी हूँ मामा, तुम जरा न घबराओ। न जाने कैसा जी हो गया था, जैसे दिल बैठ गया हो। अब बिल्कुल अच्छी हूँ। इसका भय तो मुझे पहले से था। जिस वक्त मैं वहाँ से चली उसी वक्त उनकी हालत देखकर मुझे शंका हुई थी, लेकिन मैंने सोचा मर्द है, दस-पाँच दिन में इनका जी बहाल हो जायगा। क्या जानती थी वह दिन देखना पड़ेगा।
(एक क्षण में उसकी आँखें फिर चंचल हो जाती हैं। हिस्टीरिया की-सी दशा हो जाती है) कौन कहता है वह मर गए? बिल्कुल झूठ है। वह मेरे सामने हैं, मेरी आँखों में हैं, मेरे हृदय में हैं। हाँ, उसी तरह खड़े मुझे प्रेमातुर नेत्रों से देख रहे हैं। जरा उनकी नटखटी तो देखो मामा, परदे की आड़ में छिप-छिपकर मुझे धोखा देते हैं। मुँह धो रखिए, मैं ऐसे धोखों में नहीं आने की। (यकायक उठकर कमरे की तरफ चलती है। उसकी माँ भी पीछे-पीछे आती है। जेनी अपनी मेज पर से योगराज का चित्र उठाकर उसे हृदय से लगाती है और उसका चुम्बन लेती है!)
मिसेज विलियम – जेनी खुदा के लिए दिल को समझाओ।
जेनी – दिल को समझाकर क्या होगा, मामा। अब वह किसके काम का है। फिर जब वह मेरे पास भी हो! वह तो रंजन के साथ गया, नहीं मैं इस तरह बैठी रहती? रंजन मर जाते और मैं इस तरह बैठी रहती? ऐं! मैं इस तरह बैठी रहती! आँखों से खून निकल पड़ता, मेरी लाश जमीन पर पड़ी होती। लेकिन मैं यहीं बैठी हूँ, जैसे मुझे कुछ हुआ ही नहीं है।
(वह तस्वीर को मेज पर रख देती है और योगराज के पत्रों को निकालती है जो एक मखमली केस में रखे हुए हैं) मेरी अच्छी मामा, जरा बैठ जाओ, मैं तुम्हें उनके पत्र सुनाऊँ - 'मेरी बेवफा जेनी!' मैं उस वक्त उनसे रूठ गई थी कि मुझे बेवफा क्यों कहा; लेकिन अब मालूम हुआ उन्होंने मुझे खूब पहचान लिया था। बेवफा तो मैं हूँ ही, नहीं उन्हें वहाँ छोड़कर चली आती। मैं बेवफा हूँ, बेदर्द हूँ, मायाविनी हूँ! हाय! ये गालियाँ कितनी प्यारी लगती हैं। तब मैंने उन्हें डाँट बताई थी! इस आक्षेप को स्वीकार न सकती थी। अब मुझे कौन बेवफा कहेगा? कौन बेदर्द कहेगा! कौन मायाविनी कहेगा? अब किसके साथ बेवफाई करूँगी? मामा, बताओ कैसे दिल को समझाऊँ? कैसे इस अभागे को समझाऊँ? (सिर से बाल नोचती है। मिसेज विलियम उसे छाती से लगाती है।
मिसेज विलियम – बेटा! जेनी, मेरा कलेजा।
जेनी – मामा मैं भूली जाती हूँ, उन्हें छोड़कर यहाँ क्या करने आई थी। बिल्कुल याद नहीं आता। बताओं मैं यहाँ क्या करने आई थी? मैंने क्यों उन्हें कत्ल किया? हाँ, याद आ गया। उनके कुल-मर्यादा और धर्म की रक्षा करने के लिए! अपने धर्म की रक्षा करने के लिए! सोचो इस अनर्थ को? जिसके चरणों पर अपने प्राणों को अर्पित कर देना मेरे जीवन की सबसे बड़ी अभिलाषा थी, उसे मैंने इन्हीं हाथों से कत्ल कर दिया। मैंने नहीं, मेरे धर्म ने कत्ल कर दिया। धर्म ने भी नहीं, मेरी अभिलाषा ने कत्ल किया। लोगों ने यह तरह-तरह के मत बनाकर संसार में कितना विष बोया है, कितनी आग लगाई है, कितनी द्वेष फैलाया है। क्या धर्म इसीलिए आया है कि आदमियों की अलग-अलग टोलियाँ बनाकर उनमें भेद-भाव भर दे? ऐसा धर्म लुटेरों का हो सकता है, स्वार्थियों का हो सकता है, ईश्वर का नहीं हो सकता।
मिसेज विलियम – बेटा, धर्म खुदा ने न भेजा होता, तो दुनिया अब तक तबाह हो गई होती। आदमी-आदमी को खा गया होता। बाइबिल तो खुदा का कलामे पाक है।
जेनी - खुदा के तो सभी कलामे पा हैं; लेकिन उन पाककलामों ने संसार का क्या उपकार किया, इंसान की इंसानियत को कितना सुधारा? आज दौलत जिस तरह आदमियों का खून बहा रही है, उसी तरह, उससे ज्यादा बेदर्दी से, धर्म ने आदमियों का खून बहाया है। दौलत कम-से-कम इतनी निर्दय, कठोर नहीं होती! लेकिन दौलत वही कर रही है, जिसकी उससे आशा थी, धर्म तो प्रेम का संदेश लेकर आता है और काटता है – आदमियों का गला! वह मनुष्य के बीच ऐसी दीवार खड़ी कर देता है जिसे पार नहीं किया जा सकता। आखिर सम्पूर्ण जगत की एक ही आत्मा तो है। धर्म का यह भेद क्या आत्मा की एकता को मिटा सकता है? वह खुदा जो एक-एक अणु में मौजूद है, उसे हम गिरजे और मसजिद और मंदिरों में बन्द कर देते हैं और एक-दूसरे को काफिर और म्लेच्छ कहते हैं। पूछो, उन विश्वात्मा को तुम्हारे इन झगड़ों से क्या मतलब? उसे इसकी क्या परवाह कि तुम गिरजे में जाते हो या मसजिद में। वह तो केवल इतना देखती है, कि तुम प्रेम से रहते हो या नहीं! उसके मुक्त प्रवाह में जो कोई भी मेंड़ बाँधेगा, वह प्रकृति के नियम को तोड़ेगा और उसे इसकी सजा जरूर मिलेगी। हम आए दिन वह सजा पा रहे हैं, फिर भी हमारी आँखें नहीं खुलती, आदमी की शक्ति है कि उस जगदात्मा को टुकड़ों में बाँट सके? उस व्यापक चेतना को! कभी नहीं। यह तो कोई धर्म नहीं।

मिसेज विलियम – खुदा ने केवल हमारे नबी को भेजा था।

जेनी - खुदा ने किसी नबी को नहीं भेजा, मामा। हमारे जितने धर्म हैं, सभी बिगड़े हुए समाज को सुधारने की तदबीरें हैं, लेकिन धर्मों पर खुदा की कुछ ऐसी मार है कि वह आते तो हैं सुधार के लिए; लेकिन उल्टे और बिगाड़कर जाते हैं। यह वही पुराने जमाने की गिरोह बन्दी है, जब गुफाओं में बसने वाला आदमी हिंसक पशुओं या अपनी ही जाति की दूसरी टोलियों में अपनी रक्षा करने के लिए गिरोह बनाकर रहता था। नबी आए, वली आए, अवतार हुए, खुदा खुद आया। बार-बार आया। नतीजा क्या हुआ? लड़ाई और कत्ल! रंग का भेद, नस्ल का भेद, इन सब भेदों को मिटाने का ठेका लिया था धर्म ने! लेकिन वह स्वयं भेद का कारण बन गया - ऐसे भेद का – जो सब भेदों से कठोर है। मैं तुम्हारी लड़की हूँ, मुझे तुमने अपने प्राणों का रक्त पिलाकर पाला है। मैं जानती हूँ तुम्हें संसार में मुझसे न्यारी कोई वस्तु नहीं हैं; लेकिन आज मैं गिरजे न जाकर मस्जिद में प्रार्थना करने जाऊँ तो तुम मेरी सूरत से नफरत करोगी। संभव है, अपने हाथों से मेरी हत्या कर डालो। मैं भी वही हूँ, तुम भी वही हो, फिर यह द्वेष कहाँ से आ गया। मैं कहती हूँ यह धर्म का प्रसाद है जिसने हमारे मन को संकीर्ण बना डाला है।
मिसेज विलियम – तू मुझे इतनी धर्मान्ध समझती है, बेटी! मुझे अफसोस जरूर होगा, मैं खुदा से तेरी मुक्ति के लिए दुआ करूँगी, लेकिन तेरा अहित नहीं कर सकती, कभी नहीं।
जेनी – मामा, खुदा तुझे जन्नत में जगह दे, तुमने मेरे हृदय का बोझ उतार दिया। अब मुझे कोई शंका नहीं, कोई बाधा नहीं। आज मैं इन सारे ढकोसलों को, इन सारे बनावटी बंधनों को, प्रेम की वेदी' पर अर्पण करती हूँ। यही ईश्वर का धर्म है। धन का धर्म है, विद्या का धर्म, राष्ट्र का धर्म संघर्ष हो सकता है। खुदा का धर्म प्रेम है और इसी धर्म को स्वीकार करती हूँ। शेष धोखा है। आप फौरन मोटर मँगवाइए। गाड़ी तो दो बजे रात को जाएगी। मैं उसका इंतजार नहीं सकती। मोटर से जाऊँगी। सबेरे तक पहुँच जाऊँगी। वहीं प्रभात के शुभ-मुहूर्त में रंजन से मेरा विवाह होगा, बड़ी धूमधाम के साथ, हवन कुंड की परिक्रमा करके, श्लोक और मंत्र पढ़कर। मेरे लिए आलटर और हवनकुंड में कोई अन्तर नहीं रहा। मुझे शक्ति दो ईश्वर! कि आजीवन इस व्रत को निभा सकूँ। परम पिता! मुझे बल दो, धैर्य दो, और बुद्धि दो। 

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रचनाएँ
प्रेम की वेदी (नाटक)
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प्रेम की वेदी प्रेमचंद का एक सामाजिक नाटक है। वैसे तो प्रेमचंद मूलतः उपन्यासकार, कहानीकार हैं, लेकिन उन्होंने कुछ नाटक भी लिखे हैं। प्रेमचंद स्वभावतः सामाजिक-चेतना के लेखक हैं। यही सामाजिक-चेतना उनकी रचनाओं में अलग-अलग रूप में चित्रित हुई है। प्रेम की वेदी १९२०-१९२५ के बीच लिखा गया नाटक है। भारतीय सामाजिक सन्दर्भ में, आधुनिक विचार-विमर्श और चेतना का प्रवेश शुरू होने लगा था। कुछ नकल अंग्रेजी मेम साहिबाओं का था, कुछ सामाजिक सुधार आन्दोलनों का और कुछ अंग्रेजी उच्च शिक्षा का। इस सभी के संयोग ने सामाजिक व्यवस्था, धार्मिक संगठन, विवाह के स्वरूप और मर्यादाओं पर विचार-वितर्क आरम्भ किया। प्रेम की वेदी में हिन्दू विवाह पद्धति, उसके स्वरुप, उसमें स्त्री की स्थिति, पुरुष के मर्दवाद पर एक सपाट चर्चा है। जो एक निश्चित स्थिति को प्राप्त नहीं करता। विवाह जैसी संस्था पर समय-समय पर चर्चाएँ होती रही हैं और वह अपनी तमाम खामियों के बावजूद बना हुआ है। इस नाटक में जो दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष है, वह है अन्तर्जातीय विवाह में धार्मिक मर्यादा की रस्साकस्सी। चाहे वह हिन्हू हो, क्रिश्चन हो या मुसलमान एक बिंदु पर आ कर सभी इस धार्मिक-मर्यादा से निकलना चाहते हैं लेकिन निकल नहीं पाते। प्रेमचंद इस नाटक में ऐसी मर्यादा की सीमा को पार करते हैं, यह प्रेमचंद की प्रगतिशील चेतना की उपज का एक नमूना कहा जा सकता है।।
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प्रथम दृश्य

12 फरवरी 2022
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(एक बंगलानूमा मकान – सामने बरांडा है, जिसमें ईंटों के गोल खंबे हैं। बरांडे में दो-तीन मोढ़े बेदंगेपन के साथ रखे हुए है। बरामदे के पीछे तीन दरवाजों का एक कमरा है। कमरे में दोनों तरफ दो कोठरियाँ है। कमर

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दूसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
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(वही मकान, अन्दर का बावर्चीखाना। विलियम एक बेंत के मोढ़े पर बावर्चीखाने के द्वार पर बैठा हुआ है। मिसेज गार्डन पतीली में कुछ पका रहा है। विलियम बड़ा भीमकाय, गठीला, पक्के रंग का आदमी है, बड़ी मूंछे, चौड

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तीसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
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(वर्षा काल का एक प्रभात। बादल घिरे हुए हैं। एक शानदार बंगला। दरवाजों पर जाली लोट के परदे पड़े हुए हैं! उमा एक कमरे में पलंग पर पड़ी है। एक औरत उसके सिर में तेल डाल रही है। उमा का मुख पीला पड़ गया है।

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चौथा दृश्य

12 फरवरी 2022
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(जेनी का मकान, संध्या का समय। विलियम टेनिस सूट पहने, मूंछे मुँडाए, एक रैकेट हाथ में लिए, नशे में चूर आता है।) जेनी – आज तो तुमने नया रूप भरा है विलियम। यह किस गधे ने तुमसे कहा कि मूंछे मुँडा लो! बिल्

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पाँचवा दृश्य

12 फरवरी 2022
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(योगराज का बंगला। प्रातःकाल। योगराज और जेनी एक कमरे में बैठे बातें कर रहे हैं। योगराज के मुख पर शोक का गाढ़ा रंग झलक रहा है! आँख सूजी हुई है, नाक का सिरा लाल, कंठ स्वर भारी। जेनी सफरी कपड़े पहने हुए ह

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छटा दृश्य

12 फरवरी 2022
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(योगराज का बंगला। जेनी और योग बैठे बातें कर रहे हैं) जेनी – आयी थी दो दिन के लिए और रह गयी तीन महीने! माँ मुझे रोज कोसती होगी। मैंने कितनी ही बार लिखा कि यहीं आ जाओ, पर आती ही नहीं। मैं सोचती हूँ, दो

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सातवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
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(जेनी का मकान। मिसेज गार्डन मुर्गियों को दाना चुगा रही है) विलियम – मिस गार्डन का कोई पत्र आया थी? मिसेज गार्डन – हाँ, वह खुद दो-एक दिन में आ रही है। विलियम – मैं तो उसकी ओर से निराश हो गया हूँ, मि

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आठवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
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(जेनी का विशाल भवन। जेनी एक सायेदार वृक्ष के नीचे एक कुर्सी पर विचारमग्न बैठी है) जेनी – (स्वगत) मन को विद्वानों ने हमेशा चंचल कहा है। लेकिन मैं देखती हूँ कि इसके ज्यादा स्थिर वस्तु संसार में न होगी।

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