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प्रथम दृश्य

12 फरवरी 2022

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(एक बंगलानूमा मकान – सामने बरांडा है, जिसमें ईंटों के गोल खंबे हैं। बरांडे में दो-तीन मोढ़े बेदंगेपन के साथ रखे हुए है। बरामदे के पीछे तीन दरवाजों का एक कमरा है। कमरे में दोनों तरफ दो कोठरियाँ है। कमरे में दरी का फर्श है जो कई जगह फटा हुआ है। बीच में एक गोल मेज है, जिस पर मेजपोश पड़ा हुआ है और एक गुलदस्ता पड़ा हुआ है, जिसके फूल सूख गए हैं। पाँच बेंत की कुर्सियाँ हैं, जिन पर गर्द पड़ी हुई है, मैली और फटी हुई दीवारों पर कई ईसाई धर्म-विषय के पुराने चित्र हैं, जिन पर गर्द पड़ी है। एक कैलेन्डर है और एक तरफ एक बड़ा शीशा हैं। दाहिनी तरफ वाली कोठरी में दो कोच हैं, बेंत के मगर टूटे हुए। बायीं तरफ वाली कोठरी में एक कुर्सी और प्यानो है। कमरे के पीछे वाली दीवार में एक दरवाजा है, जो अंदर जाता है। भीतर एक छोटा-सा आंगन है, आंगन में पानी का नल और मुर्गियों का दरबा है, एक कोने में बावर्चीखाना है। सभी दरवाजों पर मैले परदे पड़े हुए है)
(मिस जेनी बायीं तरफ वाली कोठरी में प्यानो पर बैठी गा रही है। उसकी उम्र 18-20 साल की होगी, साँवला रंग, बड़ी-बड़ी आँखें, हल्के गुलाबी रंग की साड़ी पारसी फैशन से पहने हुए रहन-सहन से ऐसा मालूम होता है, औसत दरजे की ईसाई परिवार है। फर्नीचर, फर्श सब कुछ उसी तरह का है, जैसा गुदड़ी बाजार में मिला करता है। मिस जेनी गाती है – 'कभी हमसे तुमसे भी प्यार था, तुम्हें याद हो कि न याद हो।')
(मिसेज गार्डन अन्दर से आँखें मलती हुई आती है। वह अधेड़ स्त्री है, गोरी, सिर के बाल खिचड़ी, मुख से चिन्ता झलक रही है। वह स्कर्ट पहने हुए है। स्कर्ट मैला हो गया है, जो उसके निर्बल शरीर पर खिलता नहीं)
मिसेज गार्डन – आज विलियम आता होगा। तू अभी तक यूँ ही बैठी हुई है?
जेनी – तो क्या करूँ, नाचूँ, या ढोल बजाऊँ?
मिसेज गार्डन – इसी तरह मेहमानों का स्वागत किया जाता है? अभी तक न मुँह धोया, न कुछ मेक-अप किया।
जेनी – मैंने कह दिया, मेरी तबीयत उनसे नहीं मिलती। आप बरबस उनके पीछे पड़ी हुई है।
मिसेज गार्डन – तुम तो बेटी, कभी-कभी ऐसी बातें करने लगती हो, जैसे घर का हाल कुछ जानती ही न हो। विलियम में क्या बुराई है, जरा सुनें? या यह भी कोई जिद है कि मेरी तबीयत उससे नहीं मिलती। अच्छा-खासा जवान है। शक्ल-सूरत भी बुरी नहीं, बड़ा ही हँस-मुख, बड़ा नेक चलन, बड़ा चरित्रवान, न शराब से मतलब, न किसी और शौक़ से, और मुझे कैसा आदमी चाहिए चार पैसे कमाता है, घर में भी कुछ जायदाद है, और आदमी में क्या चाहिए। फैशनेबल नहीं है, यही ऐब है। मगर तू इसे ऐब समझ, मैं तो हुनर समझती हूँ। मैं सच कहती हूँ, बूढ़ी न होती, तो उससे जरूर शादी कर लेती। तुम्हारे पापा को गुज़रे आज पाँचवाँ साल है। हाथ में जो कुछ था, वह सब निकल गया। अब काम कैसे चले? माना अब तू ग्रेजुएट हो गयी;! लेकिन ऐसी कौन-सी बड़ी नौकरी तुझे मिली जाती है। ज्यादा-से-ज्यादा सौ की। तेरे पापा पाँच सौ लाते थे, तब गुज़र होता था, और चार पैसे हाथ में रह गये। विलियम की आमदनी चार-पाँच सौ से कम नहीं है। फिर यह अच्छा भी तो नहीं लगता, कि औरत अपनी गुज़र-बसर के लिए नौकरी करे। मैं इसे पसन्द नहीं करती। मुझे सौ रुपये की जगह मिलती थी, लेकिन तेरे पापा कभी राज़ी न हुए।
जेनी – मैं तो आप से कह चुकी, मैं शादी नहीं करना चाहती।
मिसेज गार्डन – आख़िर क्यो, वही तो पूछती हूँ।
जेनी – इसलिए कि मैं किसी मर्द की गुलामी पसन्द नहीं करती।
मिसेज गार्डन – शादी करना गुलामी है? वे सभी औरतें जो शादी करती हैं, गुलाम है?
जेनी – गुलाम नहीं तो और क्या है। रानियाँ है, वह भी गुलाम है। मजदूरिने हैं, वह भी गुलाम हैं। मर्द की दुनिया वह है, जहाँ नाम है, धन है, सम्मान है। स्त्री की दुनिया वह, जहाँ पिसना और घुलना और कुढ़ना है। हर काम में औरत को मर्द की जवाबदेही करनी पड़ती है। अगर उसने चार पैसे ज्यादा खर्च कर दिये, तो मर्द की त्योरियाँ चढ़ गयीं। मर्द के नाश्ते में ज़रा देर हो गयी, तो औरत के सिर आफ़त आ गयी। अगर वह बगैर मर्द से पूछे कहीं चली गयी, तो मर्द उसके खून का प्यासा हो गया। अगर किसी मर्द से हँसकर बोली, तो फिर समझ लो कि उसकी कुशल नहीं। दिखाने को तो मर्द स्त्री की बड़ी इज़्ज़त करता है, मोटर पर अच्छी जगह स्त्री की है, सलाम पहले मर्द करता है, स्त्री का ओवरकोट पुरुष सँभालता है, स्त्री का हाथ पकड़कर गाड़ी से उतारता है, पहले स्त्री को बिठाकर आप बैठता है; लेकिन यह सब दिखावे का शिष्टाचार है। पुरुष दिल में खूब समझता है कि उसने स्त्री की वह चीज़ छीन ली जिसकी पूर्ति में वह जितनी ख़ातिरदारी करे, वह थोड़ी है। वह चीज़ स्त्री की आज़ादी है।
मिसेज गार्डन – तेरे विचार बड़े विचित्र है जेनी!
जेनी – विचित्र नहीं, यथार्थ है। हम अपने टामी की कितनी ख़ातिर करते है। उसे ताँगे पर साथ बैठाते है, गोद में उठाते है, उसका मुंह चूमते है। गले से लगाते है, उसे साबुन से नहलाते हैं; लेकिन क्या बराबर हमारे मन में यह भाव नहीं रहता, कि वह हमारा कुत्ता है? उसने ज़रा भी कोई काम हमारी इच्छा के विरुद्ध किया और हमने उस पर हंटर जमाया। पुरुष विवाह करके स्त्री का स्वामी हो जाता है। स्त्री विवाह करके पुरुष की लौंड़ी हो जाती है। अगर वह पुरुष की खुशामद करती रहे, उसके इशारों पर नाचती रहे, तो उसके लिए रुपये है, गहने हैं, रेशमी कपड़े हैं, उस पर जान छिड़की जाती है, हृदय न्योछावर किया जाता है; लेकिन स्त्री न ज़रा भी स्वेच्छा का परिचय दिया, ज़रा भी आत्मसम्मान प्रकट किया, फिर वह त्याज्य हैं, कुलटा है। पुरुष उसे क्षमा नहीं कर सकता। पुरुष कितना ही दुराचारी हो, स्त्री जबान नहीं हिला सकती। उसका धर्म है, पुरुष को अपना खुदा समझे। मैं यह नहीं बरदाश्त कर सकती।
मिसेज गार्डन – मैं समझती हूँ, तेरी बातों में कुछ सच्चाई है; लेकिन गुज़ारे की तो कोई फ़िक्र करनी ही पड़ेगी।
जेनी – तो क्या तुम समझती हो, मैं निश्चिंत हूँ, पर यह न समझना। मैं सौ-पचास की टीचरी करके लड़कियों को ग्रामर रटाऊँगी। अगर तक़दीर ने मदद की तो मैं दिखा दूंगी कि मैं कितना कमा सकती हूँ; विलियम कभी उसका स्वप्न भी नहीं देख सकता।
(मिस उमा आती है। बड़ी रूपवती है। माँग का सिन्दूर और भाल-तिलक बतला रहा है कि वह विवाहित है। उनकी गोल कलाई पर जड़ाऊ कंगन है, गले में जड़ाऊ हार, मूल्यवान बनारसी साड़ी पहने हुए, बहुत प्रसन्न बदन, मानो संसार में वसन्त-ही-वसन्त, फूल-ही-फूल हैं)
जेनी – (कुर्सी पर बैठे-बैठे) मैं पहले कुरसी से उठकर तुम्हारा सत्कार करती थी, लेकिन आज न उठूगी। इसलिए कि तुम मेरी निगाह में वह नहीं रहीं, जो पहले थीं।
उमा – क्यों? क्या मैं कुछ और हो गयी हूँ?
जेनी – बेशक! पहले तुम स्वतन्त्र कुमारी थीं। अब तुम एक पुरुष की दासी हो।
उमा – (मुस्कराकर) लेकिन तुम्हारी सहेली तो हूँ। तुम्हारे साथ पढ़ी तो हूँ, तुम्हारे साथ खेली तो हूँ। यदि मैं अपने पद से गिर गयी हूँ, तब तो तुम्हें मेरा और सत्कार करना चाहिए जिसमें मुझे दुःख न हो।
जेनी – अगर तुम्हारे ऊपर कोई विपत्ति आ गयी होती – ईश्वर न करे – तो मैं तुम्हारे पैरों-तले आँखें बिछाती; लेकिन तुमने । जान-बूझकर अपने पैरों में बेड़ियाँ डाली है, अपनी स्वाधीनता को, अपनी आत्मा को, सोने और रेशम पर बेचा है।
उमा – (हँसकर) अच्छा, ईमान से कहना, मैं पहले से ज़्यादा खूबसूरत नहीं मालूम हो रही हूँ?
जेनी – अपने स्वामी की आँखों में मालूम होती होगी। मेरी आँखों में तो तुम्हारा रूप-लावण्य इस सोने और रेशम के नीचे दबा-सा मालूम होता है।
उमा – देखो यह कंगन, कितना बारीक़ काम है!
जेनी – (मुँह फेरकर) गुलामी की हथकड़ी है।
उमा – यह हार देखो, हीरे जड़े हैं।
जेनी – गुलामी का तौक़ है।
उमा – (कुछ चिढ़कर) जिसे तुम गुलामी की हथकड़ी और गुलामी की तौक़ कहती हो, उसे मैं व्रत और कर्तव्य और आत्मसमर्पण का चिह्न समझती हूँ।
जेनी – यह व्रत यह कर्तव्य और यह आत्म-समर्पण एकतरफा क्यों? तुम्हारे ही लिए क्यों इन चिह्नों की ज़रूरत है? तुम्हारे पति के लिए क्यों ज़रूरी नहीं? जहाँ तक मेरा अनुभव है, उसके हाथों में न चूड़ियाँ हैं, न कंगन है, न गले में हार है, न माथे पर सिन्दूर का टीका है। यह क्यों? तुम्हें अपने व्रत पर स्थिर रखने के लिए बन्धन चाहिए, उसे बन्धन की ज़रूरत नहीं?
(उमा निरुत्तर हो जाती हो जाती है और उपालंभ की दृष्टि से मिसेज गार्डन की ओर देखती है)
उमा – सुनती है मामा, आप इनकी बातें? मिसेज – मैं इसे कुबुद्धि कहती हूँ। निरी मूर्खता।
जेनी – (विजय के भाव से) जवाब दो न। क्यों तुम्हारे पति ने इन बन्धनों को स्वीकार नहीं किया? क्यों तुम्हारे लिए इन बन्धनों को लाज़िम समझा गया? कर्तव्य और प्रेम उसके लिए भी उतना ही आवश्यक है, जितना तुम्हारे लिए। तुम्हें अपने कर्तव्य की याद दिखाते रहने के लिए निशानियों की ज़रूरत है, उसे क्यों नहीं? इसका कारण इसके सिवा और क्या हो सकता है, कि तुम गुलाम हो, वह आज़ाद है।
उमा – (एक जवाब सूझता है) पुरुष अपने कर्तव्य की ओर से आँखें बन्द कर ले, तो क्या स्त्री भी बन्द कर ले? अगर पुरुष अपने व्रत का पालन न करे, अपनी आत्मा को भूल जाय तो क्या स्त्री भी भूल जाय? मेरा विचार है कि स्त्री परिवार का मुख्य अंग है, इसलिए उसे बन्धनों की ज़्यादा ज़रूरत है। उसी तरह जैसे शूद्रों के लिए किसी निशानी की ज़रूरत नहीं, पर द्विजों के लिए यज्ञोपवीत अनिवार्य है।
जेनी – लचर दलील है। असली बात यह है कि आदि में स्त्री पुरुष की सम्पत्ति समझी जाती थी, उसी तरह जैसे पशु, अनाज या घर। जैसे आज जायदाद पर डाके पड़ते हैं, चोरियाँ होती है, उसी तरह उस समय भी होता था। लड़की बहुधा सबसे बहुमूल्य सम्पत्ति समझी जाती थी। इसलिए ज्यों ही वह सयानी हो जाती थी, उस पर डाके पड़ने लगते थे पुरुष अपने सूरमाओं को लेकर अस्त्र-शस्त्र के साथ, लड़की के ऊपर छापा मारता था। दोनों दलों में खूब लड़ाई होती थी,खूब रक्तपात होता था। लुटेरे विजय पाते, तो लड़की को ले भागते और उसके साथ घर में जो चल सम्पत्ति मिल जाती, उसे भी उठा ले जाते। लड़की वाले रोपीटकर रह जाते थे। कन्या विजेताओं के घर में कैद कर दी जाती थी। उसके हाथों में हथकड़ियाँ डाल दी जाती थीं, पैरों में बेड़ियाँ, गले में तौक़ और उस संग्राम के स्मृति-स्वरूप उसके माथे पर रक्त का टीका लगा दिया जाता होगा, जिससे कन्या समझती रहे कि उसके कभी भागने का प्रयत्न किया, तो उसकी भी वही दशा होगी जो उसके घरवालों की हुई है। कन्या को कभी घरवालों की याद न आये, वह इन नये स्वामियों को ही अपना सर्वस्व समझने लगे, इसलिए कन्या को उपदेश दिया जाता था कि पति ही तेरी स्वामी है, तेरा देवता है, उसको प्रसन्न रखकर ही तू स्वर्ग में जाएगी। यह है इन निशानियों का तथ्य। आज उन पाशविक प्रथाओं का रूप कुछ बदल गया है अवश्य; किन्तु मूलाधार वहीं है। नयी संस्कृति ने कुछ लेप-थोप की है; लेकिन पुरुषों की मनोवृत्ति अब भी वही है और समाज-संस्था का आचार भी वही है। बिलकुल वही।
मिसेज गार्डन – यह तुम्हारे मस्तिष्क की उपज है या तुमने कहीं पढ़ा है?
जेनी – यह एक बड़े फ्रांसीसी तत्त्ववेत्ता के विचार हैं।
मिसेज गार्डन – तो उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गयी होगी। स्त्री-पुरुष दोनों अपनी रुचि के अनुसार अपना-अपना बनाव-सिंगार करते है। स्त्री पुरुष को आकर्षित करना चाहती है, पुरुष स्त्री को। पुरुष में पशुबल अधिक है, स्त्री में बुद्धिबल अधिक है, इसलिए बाहर की कड़ी मेहनत-मजूरी, लड़ाई-दंगा मर्द के हिस्से पड़ा, भीतर का काम औरत के हिस्से आया। मैंने तो बड़े-बड़े राजाओं को हीरों के हार और मोतियों के कंगन पहने देखा है। फिर देस-देस की रिवाज़ अलग-अलग है। भूटान में तो स्त्री-पुरुष एक-से जान पड़ते हैं। पता नहीं चलता, कौन स्त्री है, कौन पुरुष। मज़दूर औरतें भी बहुत कम गहने पहनती है योरप में साधारणतः स्त्रियाँ गहने पहनती ही नहीं है। केवल ऊँचे कुलवाली महिलाएँ दो-एक चीज़ पहन लेती है। भारत में पोर-पोर गहनों से लदा होता है। अपने-अपने देश की प्रथा है।
जेनी – आप इसे स्वीकार नहीं करतीं कि पुरुष स्त्री पर शासन करता है?
मिसेज गार्डन – नहीं। अगर ऐसे पुरुष हैं जो स्त्री पर शासन करते हैं, तो ऐसी स्त्रियाँ भी है जो पुरुष पर शासन करती है। मैं खुद तुम्हारे पापा पर शासन करती थी। वह मुझसे पूछे बिना किसी से मिलने भी न जाते थे। उन्हें लौटने में एक मिनट की भी देर हो जाती थी, तो मैं उनकी बुरी तरह ख़बर लेती थी। यह मैं मान लँगी कि पुरुष में यह प्रवृत्ति अधिक होती है लेकिन इसका कारण यही है कि पुरुष ने पशुबल के साथ बुद्धिबल में उन्नति की, हमने आलस्य और विलास में पड़कर हर तरह से अपनी मिट्टी ख़राब कर ली। समाज की यह जो वर्तमान अधोगति है, इसकी जिम्मेदारी स्त्री-पुरुष दोनों ही पर जाती है। केवल पुरुषों को इलजाम देना अन्याय है।
जेनी – यह तो आप मानेंगी ही कि नब्बे फ़ीसदी पुरुष व्यभिचारी होते हैं। ऐसा कोई बिरला ही पुरुष संसार में होगा, जिसने स्त्री पर निगाह न डाली हो।
मिसेज गार्डन – अगर ऐसे दगाबाज़ मर्द है तो ऐसी दगाबाज़ औरतें भी कम नहीं है। हो सकता है, मरदों की संख्या अधिक हो; लेकिन इसका कारण यह नहीं है कि औरतें स्वभावतः विदुषी होती है; बल्कि उसे प्रकृति ने जकड़ रखा है। मैं तो मोटी बात यह जानती हूँ कि जो स्त्री-पुरुष सुख-शान्ति से ज़िन्दगी बसर करना चाहते है, वह जानते हैं कि पूर्ण विश्वास और प्रेम से ही यह सिद्धि हाथ आ सकती है। जो स्त्री-पुरुष वासना-तृप्ति के उपासक हैं, वह दोनों रोकर और झींककर ज़िन्दगी के दिन काटते हैं।
जेनी – आप तो मामा, आज मरदों की वकालत करने पर तुली हुई है। आपका यही निर्णय है कि पुरुष स्त्री को बराबर समझता है और उस पर किसी तरह का दबाव नहीं डालता?
मिसेज गार्डन – हाँ, जो पुरुष जीवन का सच्चा अर्थ समझता है, उसका यही व्यवहार होता है। सुशिक्षित जोड़ों में इसका विचार ही नहीं आने पाता कि कौन छोटा है, कौन बड़ा। स्त्री से कोई भूल हुई, पुरुष ने डाँटा। पुरुष से कोई ग़लती हुई, स्त्री ने गरदन नापी। दोनों हर हालत में सन्तुष्ट रहते हैं। मैं यह नहीं कहती कि ऐसा पुरुष सच्चा साधु हो जाता है और उसका मन किसी स्त्री पर चंचल नहीं होता, अथवा हरेक विवाहित स्त्री देवी होती है, लेकिन उन्हें अपने ऊपर निग्रह करना होता है, और कभी-कभी गुप्त प्रेम की आँच में जलकर मर जाता होता है। यदि मुझे अपने पति से अधिक रूपवान् पुरुष को देखकर दिल पर हाथ रखने का अधिकार है, तो मेरे पति को भी मुझसे अधिक रूपवती स्त्री को देखकर यह अधिकार समान रूप से प्राप्त है; लेकिन हम दोनों समझते हैं कि इस विश्वासघात से हमारे सुख-शान्ति में बाधा पड़ेगी। इसलिए ज़ब्त करते है। कुलीन और विचारशील स्त्रीपुरुषों में यह भावना आने ही नहीं पाती।
उमा – (प्रसन्न होकर) अब कह जेनी, मामा ने तुम्हारी ज़बान बन्द कर दी या नहीं?
जेनी – वाह! इन पुराने विचारों से मेरी ज़बान बन्द हो जाती, तो अब तक मेरी शादी विलियम से हो गयी होती। मेरा तो विचार है, जिन स्त्रियों में कोई व्यक्तित्व नहीं है, कोई उत्साह नहीं, आदर्श नहीं हैं, उन्हें विवाह कर लेना चाहिए। लेकिन जिनमें अपने विचार हैं, अपना व्यक्तित्व है, अपनी इच्छा है, जिन्हें कीर्ति और ख्याति की लालसा है, उन्हे अविवाहित रहना चाहिए। अपनी हस्ती को पति की हस्ती में डूबा देना, इतना बड़ा त्याग है, जो मैं नहीं कर सकती।
(मोटर का हार्न सुनाई देता है)
उमा – लो, यह महाशय आ पहुँचे। इनके मारे घर से निकलना मुश्किल है।
(मोटर द्वार पर आकर रुकती है और उमा का पति योगराज उतरकर अन्दर आता है। उमा दोनों महिलाओं का अपने पति से परिचय कराती है) योगराज - तुमने मुझसे क्यों न कहा, मिस गार्डन के पास जा रही हूँ, मैं भी तुम्हारे साथ आता।
उमा – तुमने भी तो अपने मित्रों से मेरा परिचय नहीं कराया। मैं क्यों कराती?
योगराज – मेरे मित्रों में शायद ही कोई ऐसा हो, जो तुम्हें देखकर मेरा शत्रु न हो जाता। मेरे विचार में तुम्हें अपनी सहेलियों से यह शिकायत न होगी।
उमा – आप अपने मित्रों की जिस चंचलता से डरते हैं, क्या आप उससे मुस्तसना हैं?
योगराज – था तो नहीं, लेकिन तुमने कर दिया।
(मुस्कराता है)
उमा – मेरी यह बहन कहती हैं, स्त्री विवाह करके पुरुष की गुलाम हो जाती है। क्या तुम मुझे अपना गुलाम समझते हो?
जेनी – (झेंपकर) यह इस बहस का अवसर नहीं उमा, आप हमारे मेहमान हैं। हमें आपका कुछ स्वागत करने दो। आपके लिए चाय बनाऊँ। (जेनी योगराज को सिर से पाँव तक अनुरक्त नेत्रों से देखकर आँखें झुका लेती है)
योगराज – जी नहीं, मैं चाय पी चुका हूँ, आप कष्ट न करें।
जेनी – उमा शायद डर रही है कि मैं चाय में कोई जादू कर दूंगी।
योगराज – मैं तो चाहता हूँ, आप मुझ पर जादू करें, उमा ने मुझ पर जो वशीकरण डाल रखा है, उससे जरा छुटकारा तो मिले।
जेनी --आप हैं बड़े भाग्यवान कि उमा जैसी स्त्री पाई।
योगराज – मैंने उस जन्म में कोई बड़ी तपस्या की थी।
उमा – तु दोनों मिलकर मुझे बनाओगे तो मैं चली जाऊँगी।
(जेनी की आँखें फिर योगराज से मिलती हैं। वह आँखें झुका लेता है। उमा जेनी को तीव्र नेत्रों से देखती हैं)
योगराज – (प्यानो देखकर) अच्छा, आपको प्यानो का भी शौक है? फिर तो मेरा जी चाहता है, यहाँ कुछ देर बैठकर संगीत का आनन्द उठाऊँ। क्यों मिस गार्डन, आप हमें निराश तो न करेंगी?
जेनी – आप तो तकल्लुफ की बातें करते है, बाबूजी, आइए जो कुछ कहिए सुनाऊँ।
(दोनों प्यानो वाली कोठरी में जाते हैं)
उमा – (अधीर होकर) भाई गाना-वाना सुनाने लगेगी, तो देर होगी। मैंने अम्माँ से कहा भी नहीं, चली आई। वह मुझ पर नाराज होने लगेंगी।
जेनी – (मुस्कराकर) तो तुम जाओ न। बाबूजी मेरी एक चीज सुनकर जायेंगे।
उमा – (खिसियाकर) मुझे ड्राइव करना नहीं आता।
जेनी – तो जरा देर बैठ जाओ न, अम्माँ मार न डालेंगी।
योगराज – नहीं मिस गार्डन, इस वक्त क्षमा कीजिए। यह दोष मुझ पर आ जायगा। फिर कभी।
(वह जेनी और मिसेज गार्डन से हाथ मिलता है। उमा भी दोनों से हाथ मिलाती है)
जेनी – कल आना उमा, और बाबूजी को लाना।
(उमा कोई जवाब नहीं देती। दोनों चले जाते हैं)
मिसेज गार्डन – बड़ा सुशील लड़का है।
जेनी – एक यह आदमी है एक आपका विलियम। सूरत से उजड्डपन बरसता है। चेहरे पर सौम्यता की परछाई तक नहीं।
मिसेज गार्डन – बेटी सभी आदमी एक-से नहीं होते। यह लोग कुलीन हैं। विलियम का बाप रेलवे गार्ड था। हाँ, उसने बेटे को अच्छी शिक्षा दिलाई।
जेनी – और आप चाहती है कि मैं उस गँवार से विवाह कर लूँ।
मिसेज गार्डन – मेरे पास भी दस हजार देने को होते, तो मैं भी कोई ऐसा ही वर खोजती। जितना गुड़ डालोगी, उतना ही मीठा तो होगा।
जेनी – इसीलिए तो मैंने निश्चय कर लिया है, विवाह न करूँगी। तुमने देखा मामा उमा कितनी जली जाती थी।
मिसेज गार्डन – अभी नई मुहब्बत है न?
जेनी – देख लेना इन दोनों में बहुत दिन पटेगी नहीं। उमा अल्हड़ छोकरी है। योगराज रसिया है। महीने-दो-महीने में वह उसकी तरफ से ऊब उठेगी।
मिसेज गार्डन – नहीं जेनी, देख लेना दोनों जीवन-पर्यन्त सुखी रहेंगे।
जेनी – मैं तो कभी पसन्द न करूँ कि कोई मेरे गले में रस्सी डाले फिराया करे।
(मिसेज गार्डन चली जाती है। जेनी प्यानो पर बैठकर गाने लगती है – कभी हमसे तुमसे भी प्यार था!) (पटाक्षेप) 

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रचनाएँ
प्रेम की वेदी (नाटक)
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प्रेम की वेदी प्रेमचंद का एक सामाजिक नाटक है। वैसे तो प्रेमचंद मूलतः उपन्यासकार, कहानीकार हैं, लेकिन उन्होंने कुछ नाटक भी लिखे हैं। प्रेमचंद स्वभावतः सामाजिक-चेतना के लेखक हैं। यही सामाजिक-चेतना उनकी रचनाओं में अलग-अलग रूप में चित्रित हुई है। प्रेम की वेदी १९२०-१९२५ के बीच लिखा गया नाटक है। भारतीय सामाजिक सन्दर्भ में, आधुनिक विचार-विमर्श और चेतना का प्रवेश शुरू होने लगा था। कुछ नकल अंग्रेजी मेम साहिबाओं का था, कुछ सामाजिक सुधार आन्दोलनों का और कुछ अंग्रेजी उच्च शिक्षा का। इस सभी के संयोग ने सामाजिक व्यवस्था, धार्मिक संगठन, विवाह के स्वरूप और मर्यादाओं पर विचार-वितर्क आरम्भ किया। प्रेम की वेदी में हिन्दू विवाह पद्धति, उसके स्वरुप, उसमें स्त्री की स्थिति, पुरुष के मर्दवाद पर एक सपाट चर्चा है। जो एक निश्चित स्थिति को प्राप्त नहीं करता। विवाह जैसी संस्था पर समय-समय पर चर्चाएँ होती रही हैं और वह अपनी तमाम खामियों के बावजूद बना हुआ है। इस नाटक में जो दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष है, वह है अन्तर्जातीय विवाह में धार्मिक मर्यादा की रस्साकस्सी। चाहे वह हिन्हू हो, क्रिश्चन हो या मुसलमान एक बिंदु पर आ कर सभी इस धार्मिक-मर्यादा से निकलना चाहते हैं लेकिन निकल नहीं पाते। प्रेमचंद इस नाटक में ऐसी मर्यादा की सीमा को पार करते हैं, यह प्रेमचंद की प्रगतिशील चेतना की उपज का एक नमूना कहा जा सकता है।।
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प्रथम दृश्य

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(एक बंगलानूमा मकान – सामने बरांडा है, जिसमें ईंटों के गोल खंबे हैं। बरांडे में दो-तीन मोढ़े बेदंगेपन के साथ रखे हुए है। बरामदे के पीछे तीन दरवाजों का एक कमरा है। कमरे में दोनों तरफ दो कोठरियाँ है। कमर

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दूसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
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(वही मकान, अन्दर का बावर्चीखाना। विलियम एक बेंत के मोढ़े पर बावर्चीखाने के द्वार पर बैठा हुआ है। मिसेज गार्डन पतीली में कुछ पका रहा है। विलियम बड़ा भीमकाय, गठीला, पक्के रंग का आदमी है, बड़ी मूंछे, चौड

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तीसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
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(वर्षा काल का एक प्रभात। बादल घिरे हुए हैं। एक शानदार बंगला। दरवाजों पर जाली लोट के परदे पड़े हुए हैं! उमा एक कमरे में पलंग पर पड़ी है। एक औरत उसके सिर में तेल डाल रही है। उमा का मुख पीला पड़ गया है।

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चौथा दृश्य

12 फरवरी 2022
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(जेनी का मकान, संध्या का समय। विलियम टेनिस सूट पहने, मूंछे मुँडाए, एक रैकेट हाथ में लिए, नशे में चूर आता है।) जेनी – आज तो तुमने नया रूप भरा है विलियम। यह किस गधे ने तुमसे कहा कि मूंछे मुँडा लो! बिल्

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पाँचवा दृश्य

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(योगराज का बंगला। प्रातःकाल। योगराज और जेनी एक कमरे में बैठे बातें कर रहे हैं। योगराज के मुख पर शोक का गाढ़ा रंग झलक रहा है! आँख सूजी हुई है, नाक का सिरा लाल, कंठ स्वर भारी। जेनी सफरी कपड़े पहने हुए ह

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छटा दृश्य

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(योगराज का बंगला। जेनी और योग बैठे बातें कर रहे हैं) जेनी – आयी थी दो दिन के लिए और रह गयी तीन महीने! माँ मुझे रोज कोसती होगी। मैंने कितनी ही बार लिखा कि यहीं आ जाओ, पर आती ही नहीं। मैं सोचती हूँ, दो

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सातवाँ दृश्य

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(जेनी का मकान। मिसेज गार्डन मुर्गियों को दाना चुगा रही है) विलियम – मिस गार्डन का कोई पत्र आया थी? मिसेज गार्डन – हाँ, वह खुद दो-एक दिन में आ रही है। विलियम – मैं तो उसकी ओर से निराश हो गया हूँ, मि

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आठवाँ दृश्य

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(जेनी का विशाल भवन। जेनी एक सायेदार वृक्ष के नीचे एक कुर्सी पर विचारमग्न बैठी है) जेनी – (स्वगत) मन को विद्वानों ने हमेशा चंचल कहा है। लेकिन मैं देखती हूँ कि इसके ज्यादा स्थिर वस्तु संसार में न होगी।

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