(जेनी का मकान। मिसेज गार्डन मुर्गियों को दाना चुगा रही है)
विलियम – मिस गार्डन का कोई पत्र आया थी?
मिसेज गार्डन – हाँ, वह खुद दो-एक दिन में आ रही है।
विलियम – मैं तो उसकी ओर से निराश हो गया हूँ, मिसेज गार्डन! मैं जो कुछ हूँ, वही रहूँगा। मैंने सब कुछ करके देख लिया। वह मेरे वश की नहीं। फिर अब वह खुद एक हजार महीना कमाती है। मेरे तीन सौ उसकी नजरों में क्या अँचेंगे। अब तो वह मुझसे विवाह भी करना चाहे तो न करूँ।
मिसेज गार्डन – सच! आखिर क्यों उससे नाराज हो गए? उसके एक हजार के साथ तुम्हारे तीन सौ मिलाकर तेरह सौ हो जाएँगे। इतना हिसाब भी नहीं जानते?
विलियम – लेकिन घर में मेरा पोजीशन क्या होगा, इसका भी आफ ख्याल करती हैं? मैं अपनी बीवी की नजरों में गिरना नहीं चाहता। आखिर वह किसलिए मेरा दबाव मानेगी, मेरा लिहाज करेगी। सब लोग यही कहेंगे कि अपनी बीबी की रोटियाँ खाता है, बीबी की कमाई पर शान जमाता है।
मिसेज गार्डन – (मुस्कराकर) तो इसमें क्या बुराई है? औरत अपने मर्द की कमाई खाती है, उस पर शान जमाती है, तब तो उसे जरा भी शर्म नहीं आती।
विलियम – अब मैं आपको कैसे समझाऊँ। मर्द मर्द है, औरत औरत है।
मिसेज गार्डन – अच्छा? आज मुझे यह नई बात मालूम हुई। मैं तो समझती थी, मर्द औरत है, औरत मर्द है।
विलियम - आप तो मजाक करती हैं। मेरे दिल में जो भाव है उसे कहने के लिए मेरे पास शब्द नहीं। मर्द चाहता है कि स्त्री उसका मुँह ताके, जिस चीज की जरूरत हो उससे कहे, उसका अदब और लिहाज करे। इसीलिए वह रात-दिन जी तोड़कर परिश्रम करता है, दगा-फरेब, छल-कपट सब कुछ केवल इसीलिए करता है कि स्त्री की निगाहों में उसकी शाख हो। उसकी सबसे बड़ी अभिलाषा यही होती है कि स्त्री की ज्यादा-से-ज्यादा खातिर कर सके, ज्यादा-से-ज्यादा आराम दे सके। वह स्त्री ही के लिए जीता है और स्त्री के लिए मरता है। वह उस पर न्यौछावर हो जाना चाहता है। लेकिन जब स्त्री खुद पुरुष से ज्यादा कमाती हो तो उसकी नजर में पुरुष का महत्त्व होगा?
मिसेज गार्डन – अच्छा, तुम्हारा यह मतलब है! लेकिन मैंने तो देखा है कि अक्सर पुरुषों को मालदार स्त्रियों की तलाश रहती है।
विलियम – ऐसे पुरुष बेहया है, मिसेज गार्डन! मैं उन्हें निर्लज्ज समझता हूँ। वह हमेशा स्त्री के मोहताज रहते हैं, उसकी खुशामद करते है, उसके इशारे पर चलते हैं। स्त्री उन पर शासन करती है, उनके काम पकड़कर जिस तरह चाहती है, उठाती और बैठाती है। मैं तो यह जिल्लत नहीं सह सकता।
मिसेज गार्डन – मैंने तो ऐसे मर्द भी देखे हैं, जो स्त्री के धन पर मजे उड़ाते हैं, और उस पर रोब भी जमाते हैं।
विलियम – उन लोगों को मैं भाग्यवान् समझता हूँ। मैं अपना शुमार उन भाग्यवानों में नहीं कर सकता। उनमें कुल-प्रतिष्ठा होगी, रूप-आकर्षण होगा, विद्या-गौरव होगा। मुझमें तो इनमें से एक गुण भी नहीं। मैं तो सीधा-साध गरीब मजदूर हूँ। मेरी हिमाकत थी कि मैंने जेनी का रोग पाला। वास्तव मे मैं उसके योग्य नहीं हूँ।
मिसेज गार्डन – इसीलिए कि वह तुमसे ज्यादा कमाती है?
विलियम – हाँ, प्यारी मिसेज गार्डन! मैंने अपनी गलती मालूम कर ली। इस बीच में मैंने एक बात और मालूम कर ली। देखिए, मेरी हँसी न उड़ाइएगा। मुझे मालूम हुआ है कि जीवन में मुझे ऐसी सहचरी की जरूरत है, जो मुझसे ज्यादा अनुभव, ज्यादा बुद्धि, ज्यादा धैर्य रखती हो, जो अपनी सलाहों से मेरी सहायता करती रहे, जिस पर मैं विश्वास कर सकूँ! मैं तुममें ये सभी गुण पाता। हूँ। (जमीन पर घुटने टेकता है) मैं आपसे प्रोपोज करता हूँ, मिसेज गार्डन! देखिए खुदा के लिए इंकार न कीजिएगा। मुझे अब ज्ञात हुआ कि जीवन के आनन्द के लिये रूप और यौवन की इतनी जरूरत नहीं है, जितनी अनुभव और सेवाभाव की। रूपवती युवती मुझमें हजारों त्रुटियाँ पाएगी। वह अपने साथ संदेह और ईर्ष्या लाती है। मुझे उसकी जासूसी करनी पड़ेगी। वह किससे बोलती है, किससे हँसती है, कहाँ जाती है, मुझे उसकी एक-एक गति पर निगाह रखनी पड़ेगी। यह झंझट मेरे मान का नहीं। आपके ऊपर मैं पूर्ण विश्वास कर सकता हूँ।
मिसेज गार्डन – (हर्षोन्मत्त होकर) भला सोचो तो विलियम, दुनिया क्या कहेगी, कि इस औरत को बुढ़ापे में यह हवस पैदा हुई है। यही करना था तो तीन साल पहले क्यों न किया। तब तो मैं इतनी बूढ़ी न थी। तब शायद तुम्हें कुछ अधिक संतुष्ट कर सकती।
विलियम – इसका तो मुझे भी खेद है।
मिसेज गार्डन – अच्छा बतलाओ, मुझ पर रोब तो न जमाओगे?
विलियम – नहीं, खुदा की कसम! मैं आपके हुक्म के बगैर एक कदम भी न चलूँगा।
(मिसेज गार्डन विलियम को छाती से लगती है)
मिसेज गार्डन – मैं तुम्हारी ओर से बहुत आशंकित थी विलियम, कि कहीं तुम किसी मायाविनी के जाल में फँस न जाओ। तुम इतने सरल, इतने निष्कपट, इतने भोले-भाले हो कि मुझे तुम्हारी ओर से बराबर यही खटका लगा रहता था। इसीलिए मैं तुम्हें जेनी से मिलाती रहती थी। जेनी में और चाहे कितनी बुराइयाँ हो, चंचलता नहीं है। तुम्हें याद है प्यारे विलियम, मेरी तुमसे पहली मुलाकात पार्क मे हुई थी। मैं गिरजे से लौट रही थी। उसी दिन तुमने मेरे हृदय में स्थान पा लिया था। मेरे दिल ने उसी दिन कहा था कि वह चिड़िया एक दिन तेरे पिंजरे में आएगी। आज वह सौभाग्य मुझे प्राप्त हो गया। चलो हम दोनों गिरजा में खुदा का शुक्र करें।
(पटाक्षेप)