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सातवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022

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(जेनी का मकान। मिसेज गार्डन मुर्गियों को दाना चुगा रही है)
विलियम – मिस गार्डन का कोई पत्र आया थी?
मिसेज गार्डन – हाँ, वह खुद दो-एक दिन में आ रही है।
विलियम – मैं तो उसकी ओर से निराश हो गया हूँ, मिसेज गार्डन! मैं जो कुछ हूँ, वही रहूँगा। मैंने सब कुछ करके देख लिया। वह मेरे वश की नहीं। फिर अब वह खुद एक हजार महीना कमाती है। मेरे तीन सौ उसकी नजरों में क्या अँचेंगे। अब तो वह मुझसे विवाह भी करना चाहे तो न करूँ।
मिसेज गार्डन – सच! आखिर क्यों उससे नाराज हो गए? उसके एक हजार के साथ तुम्हारे तीन सौ मिलाकर तेरह सौ हो जाएँगे। इतना हिसाब भी नहीं जानते?
विलियम – लेकिन घर में मेरा पोजीशन क्या होगा, इसका भी आफ ख्याल करती हैं? मैं अपनी बीवी की नजरों में गिरना नहीं चाहता। आखिर वह किसलिए मेरा दबाव मानेगी, मेरा लिहाज करेगी। सब लोग यही कहेंगे कि अपनी बीबी की रोटियाँ खाता है, बीबी की कमाई पर शान जमाता है।
मिसेज गार्डन – (मुस्कराकर) तो इसमें क्या बुराई है? औरत अपने मर्द की कमाई खाती है, उस पर शान जमाती है, तब तो उसे जरा भी शर्म नहीं आती।
विलियम – अब मैं आपको कैसे समझाऊँ। मर्द मर्द है, औरत औरत है।
मिसेज गार्डन – अच्छा? आज मुझे यह नई बात मालूम हुई। मैं तो समझती थी, मर्द औरत है, औरत मर्द है।
विलियम - आप तो मजाक करती हैं। मेरे दिल में जो भाव है उसे कहने के लिए मेरे पास शब्द नहीं। मर्द चाहता है कि स्त्री उसका मुँह ताके, जिस चीज की जरूरत हो उससे कहे, उसका अदब और लिहाज करे। इसीलिए वह रात-दिन जी तोड़कर परिश्रम करता है, दगा-फरेब, छल-कपट सब कुछ केवल इसीलिए करता है कि स्त्री की निगाहों में उसकी शाख हो। उसकी सबसे बड़ी अभिलाषा यही होती है कि स्त्री की ज्यादा-से-ज्यादा खातिर कर सके, ज्यादा-से-ज्यादा आराम दे सके। वह स्त्री ही के लिए जीता है और स्त्री के लिए मरता है। वह उस पर न्यौछावर हो जाना चाहता है। लेकिन जब स्त्री खुद पुरुष से ज्यादा कमाती हो तो उसकी नजर में पुरुष का महत्त्व होगा?
मिसेज गार्डन – अच्छा, तुम्हारा यह मतलब है! लेकिन मैंने तो देखा है कि अक्सर पुरुषों को मालदार स्त्रियों की तलाश रहती है।
विलियम – ऐसे पुरुष बेहया है, मिसेज गार्डन! मैं उन्हें निर्लज्ज समझता हूँ। वह हमेशा स्त्री के मोहताज रहते हैं, उसकी खुशामद करते है, उसके इशारे पर चलते हैं। स्त्री उन पर शासन करती है, उनके काम पकड़कर जिस तरह चाहती है, उठाती और बैठाती है। मैं तो यह जिल्लत नहीं सह सकता।
मिसेज गार्डन – मैंने तो ऐसे मर्द भी देखे हैं, जो स्त्री के धन पर मजे उड़ाते हैं, और उस पर रोब भी जमाते हैं।
विलियम – उन लोगों को मैं भाग्यवान् समझता हूँ। मैं अपना शुमार उन भाग्यवानों में नहीं कर सकता। उनमें कुल-प्रतिष्ठा होगी, रूप-आकर्षण होगा, विद्या-गौरव होगा। मुझमें तो इनमें से एक गुण भी नहीं। मैं तो सीधा-साध गरीब मजदूर हूँ। मेरी हिमाकत थी कि मैंने जेनी का रोग पाला। वास्तव मे मैं उसके योग्य नहीं हूँ।
मिसेज गार्डन – इसीलिए कि वह तुमसे ज्यादा कमाती है?
विलियम – हाँ, प्यारी मिसेज गार्डन! मैंने अपनी गलती मालूम कर ली। इस बीच में मैंने एक बात और मालूम कर ली। देखिए, मेरी हँसी न उड़ाइएगा। मुझे मालूम हुआ है कि जीवन में मुझे ऐसी सहचरी की जरूरत है, जो मुझसे ज्यादा अनुभव, ज्यादा बुद्धि, ज्यादा धैर्य रखती हो, जो अपनी सलाहों से मेरी सहायता करती रहे, जिस पर मैं विश्वास कर सकूँ! मैं तुममें ये सभी गुण पाता। हूँ। (जमीन पर घुटने टेकता है) मैं आपसे प्रोपोज करता हूँ, मिसेज गार्डन! देखिए खुदा के लिए इंकार न कीजिएगा। मुझे अब ज्ञात हुआ कि जीवन के आनन्द के लिये रूप और यौवन की इतनी जरूरत नहीं है, जितनी अनुभव और सेवाभाव की। रूपवती युवती मुझमें हजारों त्रुटियाँ पाएगी। वह अपने साथ संदेह और ईर्ष्या लाती है। मुझे उसकी जासूसी करनी पड़ेगी। वह किससे बोलती है, किससे हँसती है, कहाँ जाती है, मुझे उसकी एक-एक गति पर निगाह रखनी पड़ेगी। यह झंझट मेरे मान का नहीं। आपके ऊपर मैं पूर्ण विश्वास कर सकता हूँ।
मिसेज गार्डन – (हर्षोन्मत्त होकर) भला सोचो तो विलियम, दुनिया क्या कहेगी, कि इस औरत को बुढ़ापे में यह हवस पैदा हुई है। यही करना था तो तीन साल पहले क्यों न किया। तब तो मैं इतनी बूढ़ी न थी। तब शायद तुम्हें कुछ अधिक संतुष्ट कर सकती।
विलियम – इसका तो मुझे भी खेद है।
मिसेज गार्डन – अच्छा बतलाओ, मुझ पर रोब तो न जमाओगे?
विलियम – नहीं, खुदा की कसम! मैं आपके हुक्म के बगैर एक कदम भी न चलूँगा।
(मिसेज गार्डन विलियम को छाती से लगती है)
मिसेज गार्डन – मैं तुम्हारी ओर से बहुत आशंकित थी विलियम, कि कहीं तुम किसी मायाविनी के जाल में फँस न जाओ। तुम इतने सरल, इतने निष्कपट, इतने भोले-भाले हो कि मुझे तुम्हारी ओर से बराबर यही खटका लगा रहता था। इसीलिए मैं तुम्हें जेनी से मिलाती रहती थी। जेनी में और चाहे कितनी बुराइयाँ हो, चंचलता नहीं है। तुम्हें याद है प्यारे विलियम, मेरी तुमसे पहली मुलाकात पार्क मे हुई थी। मैं गिरजे से लौट रही थी। उसी दिन तुमने मेरे हृदय में स्थान पा लिया था। मेरे दिल ने उसी दिन कहा था कि वह चिड़िया एक दिन तेरे पिंजरे में आएगी। आज वह सौभाग्य मुझे प्राप्त हो गया। चलो हम दोनों गिरजा में खुदा का शुक्र करें।
(पटाक्षेप) 

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रचनाएँ
प्रेम की वेदी (नाटक)
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प्रेम की वेदी प्रेमचंद का एक सामाजिक नाटक है। वैसे तो प्रेमचंद मूलतः उपन्यासकार, कहानीकार हैं, लेकिन उन्होंने कुछ नाटक भी लिखे हैं। प्रेमचंद स्वभावतः सामाजिक-चेतना के लेखक हैं। यही सामाजिक-चेतना उनकी रचनाओं में अलग-अलग रूप में चित्रित हुई है। प्रेम की वेदी १९२०-१९२५ के बीच लिखा गया नाटक है। भारतीय सामाजिक सन्दर्भ में, आधुनिक विचार-विमर्श और चेतना का प्रवेश शुरू होने लगा था। कुछ नकल अंग्रेजी मेम साहिबाओं का था, कुछ सामाजिक सुधार आन्दोलनों का और कुछ अंग्रेजी उच्च शिक्षा का। इस सभी के संयोग ने सामाजिक व्यवस्था, धार्मिक संगठन, विवाह के स्वरूप और मर्यादाओं पर विचार-वितर्क आरम्भ किया। प्रेम की वेदी में हिन्दू विवाह पद्धति, उसके स्वरुप, उसमें स्त्री की स्थिति, पुरुष के मर्दवाद पर एक सपाट चर्चा है। जो एक निश्चित स्थिति को प्राप्त नहीं करता। विवाह जैसी संस्था पर समय-समय पर चर्चाएँ होती रही हैं और वह अपनी तमाम खामियों के बावजूद बना हुआ है। इस नाटक में जो दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष है, वह है अन्तर्जातीय विवाह में धार्मिक मर्यादा की रस्साकस्सी। चाहे वह हिन्हू हो, क्रिश्चन हो या मुसलमान एक बिंदु पर आ कर सभी इस धार्मिक-मर्यादा से निकलना चाहते हैं लेकिन निकल नहीं पाते। प्रेमचंद इस नाटक में ऐसी मर्यादा की सीमा को पार करते हैं, यह प्रेमचंद की प्रगतिशील चेतना की उपज का एक नमूना कहा जा सकता है।।
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प्रथम दृश्य

12 फरवरी 2022
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(एक बंगलानूमा मकान – सामने बरांडा है, जिसमें ईंटों के गोल खंबे हैं। बरांडे में दो-तीन मोढ़े बेदंगेपन के साथ रखे हुए है। बरामदे के पीछे तीन दरवाजों का एक कमरा है। कमरे में दोनों तरफ दो कोठरियाँ है। कमर

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दूसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
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(वही मकान, अन्दर का बावर्चीखाना। विलियम एक बेंत के मोढ़े पर बावर्चीखाने के द्वार पर बैठा हुआ है। मिसेज गार्डन पतीली में कुछ पका रहा है। विलियम बड़ा भीमकाय, गठीला, पक्के रंग का आदमी है, बड़ी मूंछे, चौड

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तीसरा दृश्य

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(वर्षा काल का एक प्रभात। बादल घिरे हुए हैं। एक शानदार बंगला। दरवाजों पर जाली लोट के परदे पड़े हुए हैं! उमा एक कमरे में पलंग पर पड़ी है। एक औरत उसके सिर में तेल डाल रही है। उमा का मुख पीला पड़ गया है।

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चौथा दृश्य

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(जेनी का मकान, संध्या का समय। विलियम टेनिस सूट पहने, मूंछे मुँडाए, एक रैकेट हाथ में लिए, नशे में चूर आता है।) जेनी – आज तो तुमने नया रूप भरा है विलियम। यह किस गधे ने तुमसे कहा कि मूंछे मुँडा लो! बिल्

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पाँचवा दृश्य

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(योगराज का बंगला। प्रातःकाल। योगराज और जेनी एक कमरे में बैठे बातें कर रहे हैं। योगराज के मुख पर शोक का गाढ़ा रंग झलक रहा है! आँख सूजी हुई है, नाक का सिरा लाल, कंठ स्वर भारी। जेनी सफरी कपड़े पहने हुए ह

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छटा दृश्य

12 फरवरी 2022
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(योगराज का बंगला। जेनी और योग बैठे बातें कर रहे हैं) जेनी – आयी थी दो दिन के लिए और रह गयी तीन महीने! माँ मुझे रोज कोसती होगी। मैंने कितनी ही बार लिखा कि यहीं आ जाओ, पर आती ही नहीं। मैं सोचती हूँ, दो

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सातवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
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(जेनी का मकान। मिसेज गार्डन मुर्गियों को दाना चुगा रही है) विलियम – मिस गार्डन का कोई पत्र आया थी? मिसेज गार्डन – हाँ, वह खुद दो-एक दिन में आ रही है। विलियम – मैं तो उसकी ओर से निराश हो गया हूँ, मि

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आठवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
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(जेनी का विशाल भवन। जेनी एक सायेदार वृक्ष के नीचे एक कुर्सी पर विचारमग्न बैठी है) जेनी – (स्वगत) मन को विद्वानों ने हमेशा चंचल कहा है। लेकिन मैं देखती हूँ कि इसके ज्यादा स्थिर वस्तु संसार में न होगी।

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