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तीसरा दृश्य

12 फरवरी 2022

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(वर्षा काल का एक प्रभात। बादल घिरे हुए हैं। एक शानदार बंगला। दरवाजों पर जाली लोट के परदे पड़े हुए हैं! उमा एक कमरे में पलंग पर पड़ी है। एक औरत उसके सिर में तेल डाल रही है। उमा का मुख पीला पड़ गया है। देह सूख गई है। कमरे के पीछे की तरफ दो खिड़कियाँ हैं जो बाग में खुलती हैं।
उमा – (आईने की ओर देखकर) यौवन इतना अस्थिर है, इसकी मैंने कल्पना भी न की थी। मानो एक स्वप्न था कि आँख खुलते ही गायब हो गया! मगर कितना मधुर स्वप्न था! मैं स्वर्ग की अप्सरा की भाँति विमान पर बैठी आकाश में विहार करती थी। अब वह न वह विमान है, न स्वर्ग। मैं अपनी सारी निधि खोकर दया की भिक्षा पर पड़ी हुई हूँ। क्यों चम्पा, तू भी कुछ देखती है बाबूजी के स्वभाव में कितना परिवर्तन हो गया है। मुझे ऐसा जान पड़ता है कि अब उन्हें मेरे समीप बैठने में आनन्द नहीं आता।
चम्पा – नहीं बहूजी, ऐसा न कहें। बाबूजी को मैंने कई बार आपके सिरहाने खड़े रोते देखा है। मुझे देखते ही उन्होंने रूमाल से आँखें छिपा ली और बाहर चले गए। आप वहाँ लेटी रहती हैं और वह दबे पाँव कमरे के द्वार पर टहलते रहते हैं। शायद उन्हें शंका होती है कि उनके आने से आपको कष्ट होगा।
उमा – (अविश्वास से देखकर) मुझे उनके आने से कष्ट होगा! यह उनका प्रेम है, जो मुझे जिन्दा रखे हुए है चम्पा! वही ज्योति मुझे जीवन प्रदान कर रही है। नहीं अब तक यह दीपक कब का बुझ गया होता।
(लेडी डाक्टर के साथ योगराज कमरे में आता है और उसे कुरसी पर बैठाकर बाहर चला जाता है)
लेडी डाक्टर – आज तो आपकी तबियत अच्छी मालूम होती
उमा – होगी! मुझे तो कोई फर्क नहीं मालूम होता।
लेडी डाक्टर – रात को नींद आई थी?
उमा – जी नहीं। पलक तक नहीं झपकी।
लेडी डाक्टर – मैंने तो आपसे पहले ही कहा था, कुछ दिनों के लिये पहाड़ पर चली जाइए। आप राजी न हुई। कम-से-कम सुबह को हवा खाने तो चली जाया करो।
उमा – इच्छा ही नहीं होती मेम साहब! सोचती हूँ, जब मरना ही है तो क्या छः महीने पहले और क्या छः महीने पीछे।
लेडी डाक्टर -नहीं-नहीं, तुम बहुत जल्दी अच्छी हो जाओगी, उमा देवी! अगर तुम पहाड़ों पर चली जाओ, तो एक महीने में चंगी हो जाओगी। मैं आज बाबूजी से कहती हूँ, तुम्हें कल ही भेज दें।
उमा – आप मुझे अकेले जाने को कहती हैं। मैं अकेली नहीं रह सकती।
लेडी डाक्टर –नहीं, अब मैं अकेली जाने को न कहूँगी। बाबूजी तुम्हारे साथ जाएँगे।
उमा – (प्रसन्न होकर) हाँ! तह मुझे जाने में कोई इंकार नहीं है।
(लेडी डाक्टर थर्मामीटर लगाकर ज्वर देखती है और नुस्खा लिखकर चली जाती है। द्वार पर योगराज खड़े हैं।)
लेडी डाक्टर – इनकी हालत खराब होती जाती है। आप इन्हें पहाड़ पर ले जाएँ। मैंने पहले इस पर ज्यादा जोर न दिया था। मैंने समझा था, दवाओं से काम चल जायगा! लेकिन अब मालूम होता है, पहाड़ों पर जरूर ले जाना पड़ेगा।
योगराज – मैं कल ही चला जाऊँगा।
(दोनों योगराज के कमरे में आकर बैठते हैं)
लेडी डाक्टर – हाँ जाइए! मगर आपने किसी तरह का कुपथ्य किया, तो आपको इनसे हाथ धोना पड़ेगा। अब मैं साफ-साफ कहती हूँ, आपके ही कारण इनकी यह दशा हुई। सालभर में दो गर्भपात और तीसरा गर्भ! एक कमसिन, कोमल प्रकृति की बालिका कितना अत्याचार सह सकती है! आप शिक्षित हैं, दुनिया देख चुके है, आपको विवाह करने के पहले इस विषय का ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिए था। पहले गर्भपात के बाद आपको कम-से-कम सालभर के लिए उन्हें मैके भेज देना चाहिए था। इनसे पृथक् रहना जरूरी थी, पर आपने जरा भी परवाह न की। जिस वक्त उमादेवी आई थीं, मैंने उन्हें देखा था। खिले हुए गुलाब का-सा चेहरा था। एक साल के अन्दर उनकी यह दशा हो गई, कि देह में रुधिर का नाम नहीं। इसके जिम्मेदार आप है।
योगराज – लेडी विलसन, ईश्वर के लिए मुझे क्षमा कीजिए। मैं आपसे कसम खाकर कहता हूँ, कि मुझे कुछ न मालूम था।
लेडी डाक्टर – तो यह किसका दोष है? अगर कोई आदमी तैरना न जानने पर भी दरिया में कूदे, तो यह किसका दोष है? जिसने । घोड़े पर सवारी करना न सीखा हो, उसे क्या अधिकार है कि वह घोड़े दौड़ावे? उमादेवी बालिका थी। अपने कर्तव्य का उसे ज्ञान न था। इस विषय में न उसने कुछ पढ़ा, न किसी से बात-चीत की। वह तो इतना ही जानती थी कि आप उसके स्वामी है, आपकी इच्छाओं के आगे सिर झुकाना उसका कर्तव्य है। उसे क्या मालूम था कि वह आपकी कामुकता के सामने सिर झुकाकर अपने लिए विष बो रही है। आपको भी चाहे अभी कुछ न मालूम होता हो, पर जल्द या देर में इसका असर अवश्य होगा। प्रकृति उन लोगों को कभी क्षमा नहीं करती, जो उसके नियमों को तोड़ते हैं।
(योगराज निस्पंद बैठा रहता है, मानो निप्राण हो। जब लेडी विलसन टोपी उठाकर जाने लगती हैं, तो वह चौंककर खड़ा हो जाता है)
योगराज – लेडी विलसन, ईश्वर के लिए इन्हें किसी तरह बचा लीजिए। मैं उम्र भी आपकी गुलामी करूँगा। आप मुझसे मेरा सब कुछ ले लें, केवल इन्हें बच्चा लें, मुझ पर दया कीजिए।
लेडी डाक्टर – लाला योगराज बच्चों की-सी बातें न करो। बचाना मेरे वश की बात नहीं हैं। मैं यथाशक्ति यत्न करूँगी, यह मेरा धर्म है। इससे ज्यादा मैं और कुछ नहीं कर सकती आपने भी वही नादानी की जो आपके दूसरे भाई किया करते हैं। स्त्री उनके लिए केवल विषय-भोग का यन्त्र है। वह स्त्री पर जितना अत्याचार चाहें कर सकते हैं। अगर स्त्री की ओर से कुछ । अरुचि हो, तो उसके शत्रु हो जायेंगे। वह बेचारी पति को प्रसन्न रखने के लिए सब कुछ झेलने को तैयार रहती है। सभी घरों में यही तमाशा देखती हूँ। अगर क्षय रोग न फैले, तो क्या हो; लेकिन अब भी घबराने की कोई बात नहीं। कल आप इन्हें पहाड़ पर ले जाइए और पूरा विश्राम दीजिए। नहीं तो आपको पछताना पड़ेगा।
(लेडी विलसन चलती जाती है। योगराज फिर उमा के पास आता है।
उमा – क्या कहती थीं लेडी विलसन? तुमसे अलग-अलग बातें कर रही थीं?
योगराज – कुछ नहीं, वह पहाड़ पर जाने की बातचीत थी। मैंने निश्चय किया है, कल हम लोग चल दें।
उमा – तो मेरे घर एक खत लिख दो। अम्माँ और दादा से मुलाकात तो कर लूँ। जेनी से भी मिलने को जी चाहता है। उसे भी एक खत लिख दो।
योगराज – इसमें कई दिन लग जायेंगे, उमा!
उमा – जैसी तुम्हारी इच्छा। कहीं मर गई तो उन लोगों को देख भी न सकूँगी!
(उसकी आँखों से आँसू की दो बूंदें गिर पड़ती हैं। योगराज झुककर उसके माथे का चुम्बन लेता है)
योगराज – (भर्राई हुई आवाज में) नहीं, नहीं, उमा! ईश्वर ने चाहा, तो तुम वहाँ से स्वस्थ होकर आओगी। वहाँ के जलवायु का जरूर असर होगा।
उमा – (चम्पा) अब रहने दे चम्पा! बाहर जा, फिर बुलाऊँ, तो आ जाना। (चम्पा चली जाती है।) मेरे पास आ जाओ राजा। कुछ याद है तुम्हें, आज हमारे विवाह की पहली वर्ष-गाँठ है। आज ही के दिन तुम मेरे घर गए थे। ज्योंही मुझे बारात आने की खबर मिली, मैं कोठे पर चढ़कर तुम्हें देखने गई थी। तुम नहीं देख सकते थे! पर मैंने तुम्हें खूब देखा था। कितनी जल्द एक साल बीत गया! आज उसका उत्सव मनाऊँगी। तुम भी दफ्तर न जाना। आज मेरा जी कुछ हलका मालूम होता है। तुम्हारे साथ खूब बातें करूँगी। तुम चले जाते हो, तो घर फाड़ खाने लगता है। एक छन भी तुम्हें नहीं देखती तो जी घबरा उठता है। आज मैं अपना कमरा फूलों से सजाऊँगी, लेकिन नहीं। फूलों को न तोड़ना (बाग की ओर देखकर) अपनी डालियों पर कितने सुन्दर लगते है। तोड़ने से मुरझा जाएँगे। (चम्पा को बुलाती है, वह आकर खड़ी हो जाती है) तुम्हें छोड़कर मुझे संसार में उससे प्रिय और कोई वस्तु नहीं है। उसकी याद बनाए रखना।
(योगराज मुँह फेरकर रुमाल आँखों पर रख लेता है और आँसुओं को रोकता हुआ कमरे के बाहर चला जाता है। एक मिनट तक वह सामने के अशोक-वृक्ष के नीचे खड़ा फूट-फूटकर रोता है। फिर उमा की पुकारना सुनकर द्वार की ओर चलता है! पर अश्रुविह्वल हो जाने के कारण द्वार पर रुक जाता है।)

(परदा) 

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रचनाएँ
प्रेम की वेदी (नाटक)
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प्रेम की वेदी प्रेमचंद का एक सामाजिक नाटक है। वैसे तो प्रेमचंद मूलतः उपन्यासकार, कहानीकार हैं, लेकिन उन्होंने कुछ नाटक भी लिखे हैं। प्रेमचंद स्वभावतः सामाजिक-चेतना के लेखक हैं। यही सामाजिक-चेतना उनकी रचनाओं में अलग-अलग रूप में चित्रित हुई है। प्रेम की वेदी १९२०-१९२५ के बीच लिखा गया नाटक है। भारतीय सामाजिक सन्दर्भ में, आधुनिक विचार-विमर्श और चेतना का प्रवेश शुरू होने लगा था। कुछ नकल अंग्रेजी मेम साहिबाओं का था, कुछ सामाजिक सुधार आन्दोलनों का और कुछ अंग्रेजी उच्च शिक्षा का। इस सभी के संयोग ने सामाजिक व्यवस्था, धार्मिक संगठन, विवाह के स्वरूप और मर्यादाओं पर विचार-वितर्क आरम्भ किया। प्रेम की वेदी में हिन्दू विवाह पद्धति, उसके स्वरुप, उसमें स्त्री की स्थिति, पुरुष के मर्दवाद पर एक सपाट चर्चा है। जो एक निश्चित स्थिति को प्राप्त नहीं करता। विवाह जैसी संस्था पर समय-समय पर चर्चाएँ होती रही हैं और वह अपनी तमाम खामियों के बावजूद बना हुआ है। इस नाटक में जो दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष है, वह है अन्तर्जातीय विवाह में धार्मिक मर्यादा की रस्साकस्सी। चाहे वह हिन्हू हो, क्रिश्चन हो या मुसलमान एक बिंदु पर आ कर सभी इस धार्मिक-मर्यादा से निकलना चाहते हैं लेकिन निकल नहीं पाते। प्रेमचंद इस नाटक में ऐसी मर्यादा की सीमा को पार करते हैं, यह प्रेमचंद की प्रगतिशील चेतना की उपज का एक नमूना कहा जा सकता है।।
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प्रथम दृश्य

12 फरवरी 2022
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(एक बंगलानूमा मकान – सामने बरांडा है, जिसमें ईंटों के गोल खंबे हैं। बरांडे में दो-तीन मोढ़े बेदंगेपन के साथ रखे हुए है। बरामदे के पीछे तीन दरवाजों का एक कमरा है। कमरे में दोनों तरफ दो कोठरियाँ है। कमर

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दूसरा दृश्य

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(वही मकान, अन्दर का बावर्चीखाना। विलियम एक बेंत के मोढ़े पर बावर्चीखाने के द्वार पर बैठा हुआ है। मिसेज गार्डन पतीली में कुछ पका रहा है। विलियम बड़ा भीमकाय, गठीला, पक्के रंग का आदमी है, बड़ी मूंछे, चौड

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तीसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
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(वर्षा काल का एक प्रभात। बादल घिरे हुए हैं। एक शानदार बंगला। दरवाजों पर जाली लोट के परदे पड़े हुए हैं! उमा एक कमरे में पलंग पर पड़ी है। एक औरत उसके सिर में तेल डाल रही है। उमा का मुख पीला पड़ गया है।

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चौथा दृश्य

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(जेनी का मकान, संध्या का समय। विलियम टेनिस सूट पहने, मूंछे मुँडाए, एक रैकेट हाथ में लिए, नशे में चूर आता है।) जेनी – आज तो तुमने नया रूप भरा है विलियम। यह किस गधे ने तुमसे कहा कि मूंछे मुँडा लो! बिल्

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पाँचवा दृश्य

12 फरवरी 2022
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(योगराज का बंगला। प्रातःकाल। योगराज और जेनी एक कमरे में बैठे बातें कर रहे हैं। योगराज के मुख पर शोक का गाढ़ा रंग झलक रहा है! आँख सूजी हुई है, नाक का सिरा लाल, कंठ स्वर भारी। जेनी सफरी कपड़े पहने हुए ह

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छटा दृश्य

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(योगराज का बंगला। जेनी और योग बैठे बातें कर रहे हैं) जेनी – आयी थी दो दिन के लिए और रह गयी तीन महीने! माँ मुझे रोज कोसती होगी। मैंने कितनी ही बार लिखा कि यहीं आ जाओ, पर आती ही नहीं। मैं सोचती हूँ, दो

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सातवाँ दृश्य

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(जेनी का मकान। मिसेज गार्डन मुर्गियों को दाना चुगा रही है) विलियम – मिस गार्डन का कोई पत्र आया थी? मिसेज गार्डन – हाँ, वह खुद दो-एक दिन में आ रही है। विलियम – मैं तो उसकी ओर से निराश हो गया हूँ, मि

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आठवाँ दृश्य

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(जेनी का विशाल भवन। जेनी एक सायेदार वृक्ष के नीचे एक कुर्सी पर विचारमग्न बैठी है) जेनी – (स्वगत) मन को विद्वानों ने हमेशा चंचल कहा है। लेकिन मैं देखती हूँ कि इसके ज्यादा स्थिर वस्तु संसार में न होगी।

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