*सनातन
धर्म में तपस्या का महत्वपूर्ण स्थान रहा है | हमारे ऋषियों - महर्षियों एवं महापुरुषों ने लम्बी एवं कठिन तपस्यायें करके अनेक दुर्लभ सिद्धियां प्राप्त की हैं | तपस्या का नाम सुनकर हिमालय की कन्दराओं का चित्र आँखों के आगे घूम जाती है | क्योंकि ऐसा सुनने में आता है कि ये तपस्यायें घर का त्याग करके हिमालय या एकान्त में की गई हैं | यह तो सत्य है कि बिना तपस्या किये मनवांछित नहीं प्राप्त किया जा सकता , परंतु तपस्या करने के लिए हिमालय ही जाना पड़ेगा ! यह आवश्यक नहीं है | सबसे पहले तपस्या का मर्म जान लिया जाय | तपस्या का एक अर्थ है जहां इच्छाएं समाप्त हो जाए | हम लोग भूखे रहने की तपस्या तो काफी कर रहे हैं पर तपस्या के पीछे छिपे उद्देश्य को भूल रहे हैं | तप से आत्मा शुद्ध होती है, कष्ट मिट जाते हैं | तप का अर्थ क्या है इसे समझना आवश्यक है | यदि हमें मक्खन से घी बनाना है तो सीधे ही उसे आंच पर नहीं रख देते | उसे किसी बरतन में डालना होगा | यहां उद्देश्य बरतन को तपाना नहीं है बल्कि मक्खन को तपाकर उसे शुद्ध करना है | इसी तरह आत्मा का शुद्धिकरण होता है | हृदय में उठ रही अनैतिक इच्छाओं का शमन एवं स्वयं में स्थित काम , क्रोध , मद , लोभ , अहंकार , मात्सर्य आदि कषायों का वध करके समाप्त कर देना ही मूल तपस्या है |* *आजकल तपस्या का मूल उद्देश्य लगभग समाप्त सा हो रहा है | दिखावा, प्रदर्शन आदि पर अनाप-शनाप खर्च किया जा रहा है | इससे राग-द्वेष बढ़ रहा है | यह परिवार में क्लेश का कारण भी बन सकता है | ऐसे में यह तपस्या तप न रहकर मनमुटाव का कारण बन सकती है | आज हमारे पास सब कुछ अर्थात अपार धन, वैभव, सुख, साधन है , फिर भी हम न सुखी हैं न संतुष्ट | सद्गुरु हमसे कहते हैं थोड़ी तपस्या करो | अपने आपको तपाओ, तो तुम स्वयं संत, साधु, मुनि बन जाओगे | हमने सद्गुरु की बात सुनकर शरीर को तपा लिया मगर मन को नहीं तपा सके। मन तो अब भी वैसा ही है | भीतर क्रोध की ज्वाला धधक रही है | तपस्या करना भी आसान बात है, परंतु भीतर के कषायों को छोड़ना अधिक दुष्कर है | हमने तपस्या का संबंध शरीर से जोड़ लिया है | हम शरीर को तो सुखा लेते है, मगर भीतर के क्रोध, कषाय, मोह को नहीं सुखा पाते | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूँ कि हमारे यहां चतुर्मास में तपस्या की होड़ लग जाती है | यह अच्छी बात है परंतु क्या तपसाधना के साथ हम इंद्रिय संयम और कषाय मुक्ति का लक्ष्य रख पाते हैं ??इंद्रियों के उपशमन को ही उपवास कहते हैं | इंद्रिय विजेता ही सच्चा तपस्वी है | तपसाधना है शांति पाने का माध्यम | इच्छाएं जब तक समाप्त नहीं होगी तपस्या का अर्थ ही कहां रह जाएगा | तपस्या तो ऐसी होनी चाहिए कि किसी को पता ही न चले | तप प्रदर्शन का माध्यम नहीं है, वह तो कषाय मुक्ति और आत्मा शुद्धि का अभियान है | तप से आत्मा परिशुद्ध होती है | शरीर को तपाना तो पड़ेगा ही अपनी इच्छाओं पर अंकुश लगाने के लिए | ऐसा न हो कि ऊपर से तो उपवास कर रहे हैं और भीतर कुछ पाने की चाह बनी हुई है |* *तपस्या का संबंध बाह्य उपभोगों से न जोड़ें | अंतर्मन से आत्मा से जोड़ने की कोशिश करें | यह तो आत्मा की खुराक है न कि शरीर की | उपवास का अर्थ केवल इतना ही नहीं कि भोजन नहीं किया जाए | उपवास का अर्थ है शरीर की प्रवृतियों से मुक्त होकर मनुष्य आत्मावास का संकल्प लें |*