जीतने ओवर ऐज ब्याह ते हो रे, बात सुनो तोल की ,
तीस पैंतीस का जुगाड़ करो और बहु ले आओ मोल की
मोल की बहुओं के नाम से यह एक गाना है यूट्यूब पर. मोल की बहुएं वो बहुएं होती हैं जिनको खरीद कर लाया जाए. दहेज़ नहीं लेकर आती. इनके परिवार वाले पैसे लेकर इन्हें बेच देते हैं. और ऐसे ये मोल की बहुएं बन जाती हैं.
मोल की बहुओं पर बहस छिड़ी बीजेपी नेता बयान से. हुआ यूं था कि नेता जी ने हरियाणा विधान सभा चुनावों में कह दिया था कि हम हरियाणा के कुंवारों के लिए बिहार से बहुएं लाएंगे. और उनका घर बसाएंगे. नेता थे बीजेपी ओपी धनखड़. टॉपिक मिलते ही सबने राजनीति क रोटियां सेक लीं. और थोड़े दिन में मामला रफा-दफा हो गया. इस बात को ऐसे भी बताया गया कि उनका मतलब ‘ बिहार से खरीदकर बहुएं लाएंगे’ था.
इस बार घर गई तो फिर से एक मोल की बहू दिख गई. फिर से दिमाग में आ गया. हमारे पड़ोस में ही रहती है. हम सबको उसका नाम याद नहीं है. पहले मोल की बहू थी. अब मुन्ने की बहू है. बच्चे नहीं हुए उसको. खेतों में जाते हैं तो रस्ते में मिल जाती है. हमारी बोली सीख ली है. अब वो हिंदी और हरियाणवी मिक्स करके बोलती है.
वैसे तो गाने में ‘बहू लाकर दो वोट लो’ जिक्र है. लेकिन जाने-अनजाने में हमें यह गाना बहुत सच्चाइयां बताता है. सच्चाई हरियाणा के कुंवारों की टफ जिंदगी की नहीं, बल्कि खरीद कर लाई इन बहुओं की.
तीस-पैंतीस हज़ार में लाई गई इन बहुओं का दर्जा ‘दहेज’ लाने वाली बहुओं के जितना नहीं होता है. मरने को मर जाती हैं, इनके बच्चों को भी इनके नाम नहीं पता होते. पढ़िए एक-दो कहानियां ऐसी ही :
1. किस्सा हमारे पड़ोसी गांव का है. किसी के घर में खरीद कर लाई गई बहू का. उसको थोड़े दिन बाद बच्चा पैदा हो गया. बच्चे को मां के पास नहीं छोड़ा गया.
“गेल्या रहेगा तै उसके बरगा (जैसा) हो जाएगा “. कहकर दादी ने पोते पर हक़ जमा लिया. और उससे बस भैंसों, खेतों और घर के काम करवाए.
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