1980-90 का दौर भारत में बड़ा ही उथल-पुथल वाला था. राजनीति एकदम से बदल रही थी. राम का नाम बेचा रहा था. वहीं बॉलीवुड से कूड़ा आ रहा था. सिनेमा के लिहाज से इसको बॉलीवुड का सबसे ख़राब वक़्त माना जाता है. उसी वक़्त हमारे बबलू भैया जवान हो रहे थे. राजनीति और सिनेमा में विशेष रूचि. नेतागिरी का मौका हो और सिनेमा की बात तो बबलू भैया विहान कर दें.
रामनवमी चल रही थी. चेले-चपाटी सब रामलीला देखने का प्लान बनाए थे. शाम को सभी बबलू भैया के पास आये. भैया, चलते हैं. अब देर काहे महामानव? बबलू भैया विचार में पड़े थे. बोले, तुम लोग चलो हम आते हैं. हुआ ये था कि एक तरफ रामलीला हो रही थी, वहां नेतागिरी दिखाने का मौका था. दूसरी तरफ ‘चालबाज़’ लगी थी कृष्णा टॉकीज में. ‘किसी के हाथ ना आएगी ये लड़की’. भैय्या कन्फ्यूजन में थे. एक तरफ श्री राम थे, दूसरी तरफ श्री देवी.
भैया रामलीला नहीं गए. कृष्णा टॉकीज में श्री देवी के दर्शन कर लिए. अगले दिन अड्डे पर लौंडा-लफाड़ी सब भैय्या के चरित्र से नाखुश लग रहे थे. सब चुप थे. भैय्या मौका खोज रहे थे. तभी एक ने बोल दिया: अबकी रामलीला में ड्रेस पर खर्चा हुआ है. बस भैय्या ने धर लिया पॉइंट. अबे, चुप बे. का घूर रहे हो? मंदोदरी की बात कर रहे हो? कल जो श्री देवी नाची है ना….जो नाची है… गुरु! हम तो उसकी जांघ पर फ़िदा हो गए. लौंडों का मुंह स्याह हो गया. भैय्या फिर गुरु साबित हुए.
माधुरी बन सकते हो, श्री देवी नहीं
तो बॉलीवुड की कड़की के दौर में सिक्का चलता था श्री देवी का. उनकी जांघों पर फ़िदा रामगोपाल वर्मा ने अपनी आत्मकथा‘Guns & Thighs’ में बड़ी तफसील से इसका जिक्र किया है. ‘चालबाज़’ उस दौर की फिल्म थी जब श्री देवी को लेडी अमिताभ बच्चन कहा जाता था. पर ये सही नहीं था. श्री देवी ने खुद अमिताभ के साथ काम करने से मना कर दिया था! श्री देवी बस श्री देवी थीं. अमिताभ भी श्री देवी नहीं हो सकते थे उस वक़्त.
आज के दौर की हीरोइनें ‘नारी-प्रधान’ रोल खोजती हैं. आज से 30 साल पहले श्री देवी हर फिल्म में हर हीरो के ऊपर रहती थी. यश चोपड़ा ने कहा था कि अगर श्री देवी को फिल्म में ले लो तो फिर हीरो के बारे में नहीं सोचना पड़ता. सलमान खान ने उस वक़्त कहा था: श्री देवी के साथ फिल्म करना अच्छा तो है. पर वो अपनी फिल्म के हीरो को कच्चा चबा जाती हैं.
‘सदमा’ नहीं देखा कभी?
बाजीगर पहले श्री देवी को लेकर लिखी गई थी. इसमें वो काजोल और शिल्पा दोनों का रोल करतीं. पर डायरेक्टर डर गए कि श्री देवी को मरता देख पब्लिक फिल्म को मार देगी. यही हुआ फिल्म ‘डर’ में. पर यहां वजह कुछ और थी. श्री देवी ने कहा शाहरुख़ वाला रोल मुझे चाहिए. मेरे रोल में पोटाश नहीं है. इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि उस वक़्त श्री देवी से बढ़िया वो रोल कोई नहीं निभा सकता था.
जिनको शक हो वो ‘जुदाई’ और ‘सदमा’ देख लें. जुदाई जैसी खबीचड़ फिल्म आप सिर्फ श्री देवी के लिए देखेंगे. वो रोल, जिसमें श्री देवी को देख के खुन्नस भी आती है, तरस भी आता है और प्यार भी. आप बस उनको देखते रह जाते हैं. सदमा फिल्म में आप उनकी एक्टिंग पर फ़िदा हो जाते हैं. बॉलीवुड की बेहतरीन फिल्मों के जिक्र में सदमा बहुत ऊपर है.
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